Tuesday, March 29, 2016

Hello Uncle, Faisla, Tasweer:ہیلو انکل ؛فیصلہ ؛ تصویر ;UrduAfsancheاردو افسانچے ; HindiLaghu Kahaniyanहिन्दी लघु कहानियां

       Hello Uncle; Faisla;Tasweer
ہیلو انکل ؛فیصلہ ؛ تصویر 
UrduAfsancheاردو افسانچے 
HindiLaghu Kahaniyanहिन्दी लघु कहानियां 
हेलो अंकल  

जिन दिनों मैं नैनीताल में ट्रेनिंग कर रहा था मुझे स्थानीय प्रशासन से एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने का न्योता मिला। यद्यपि मेरा विवाह हाल ही में हुआ था मगर पत्नी साथ में नहीं थी और मैं खुद को अविवाहित ही समझता था। 
मेरी बाईं तरफ स्थानीय कॉलेज की कुछ लड़कियां आपस में हंसी मज़ाक़ कर रही थीं। कभी कभी मेरी ओर देख कर मुस्करा देतीं। मैं भी कन-अँखियों से उन्हें देखता और हलके से चोरी छुपे मुस्करा देता। उनमें से एक लड़की बार-बार मुझे ख़ुमार भरी अध्-खुली आँखों से ऐसे देखती जैसे निमंत्रण दे रही हो। जी चाहता था की उठकर उसको अपना परिचय दूँ परन्तु पास ही बैठे मातहत के कारण ऐसा संभव न था। सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ और बात आई गई हो गई। 
दुसरे दिन मैं मॉल रोड पर अकेला टहल रहा था कि वही चार लड़कियां मस्ती से कुलांचें मारती हुई दूसरी ओर से चली आ रही थीं। ह्रदय प्रफुल्लित  हुआ। सोचा चलो आज अकेले हैं, बात करने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी। मुझे देखकर उन्होंने सड़क पार कर ली और मेरे नज़दीक आने की कोशिश की। मन ही मन में बहुत प्रसन्न हो रहा था कि अभी तो मैं जवान हूँ। पास आते ही वह लड़की जिसने एक दिन पूर्व सबसे अधिक दिलचस्पी दिखाई थी मुझ से संबोधित हो गई, "हेलो अंकल, आप कैसे हैं? कल तो आप जाते समय ना जाने कहाँ ग़ायब हो गए।" 
मैं ठिठका मगर जल्दी ही अपने आप को संभाल लिया। वह फिर बोल उठी, "अंकल आप कहाँ से आए हैं और कितने दिन ठहरें गे? हम यहाँ हॉस्टल में रहती हैं।  हर रोज़ शाम को टहलने के लिए निकलती हैं।"
"ग्रेट, मैं भी दो महीने की ट्रेनिंग पर आया हूँ। दुसरे सप्ताह वापस चला जाऊँ गा।"
"ओके अंकल, इट वाज़ नाईस टु मीट यू। गुड बाई।" हाथ मिला कर वह सब चली गईं। 
मैंने आगे जाने का इरादा बदल दिया और वापस अपने गेस्ट हाउस में चला आया।  
आते ही मैं ड्रेसिंग टेबल के मानव आकार दर्पण के सामने खड़ा हो गया और अपने शरीर के हर कोण और वक्र को देखने लगा ताकि यह पता लगाऊँ कि विवाह के बाद मुझ में ऐसी कौन सी तब्दीली आई है कि लड़कियों ने मुझे पहली बार अंकल कहकर सम्बोधित किया।
 
फैसला
 
शिक्षा.....व्यवसाय.....जीवनसाथी.....! यह सब फैसले हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। परन्तु ज़िन्दगी ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए हमें फुर्सत ही नहीं देती। माता-पिता की ख़ुशी, रुतबा, प्रतिष्ठा और सामाज की अपेक्षाएं आड़े आती हैं। 
खैर उसने यह तीनों अड़चनें पार की थीं और अब आराम की ज़िन्दगी बसर करने की सोच रहा था। अचानक उसकी पत्नी ने अपना चूल्हा अलग करने के लिए आग्रह किया। बूढ़े माँ-बाप थे और दो अविवाहित बहनें थीं जिनकी शादी में माता-पिता का हाथ बटाना उसका कर्तव्य बनता था। स्वयं उसके भी तीन छोटे-छोटे बच्चे थे। पत्नी ने अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए घर को कुरुक्षेत्र में तब्दील कर दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। परिस्थितियों की संवेदनशीलता को समझने के लिए कोई तैयार ना था।
धीरे-धीरे पानी सिर से ऊंचा हो गया। वह तिलमिला उठा। रात को सोते समय उस ने चुप-चाप बहुत सारी नींद की गोलियां खा लीं और फिर ऐसी  नींद सोया कि कभी जाग ही ना पाया। 
प्रातः उठकर पत्नी रोने-धोने और छाती पीटने लगी। माता-पिता और बहनें रो-रो कर अधमरे हो रहे थे। बच्चे कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ। वह भी बड़ों को देख कर फूट-फूट कर रोने लगे। दोनों दल पश्चाताप से ग्रस्त थे मगर निष्फल। जो फैसला हो चूका था अब उसको बदलना असंभव था।

तस्वीर
 
लगभग एक वर्ष के बाद उसकी पत्नी वापस शिलांग आई थी। वह सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए आगरा गई थी। पूरा दिन घर की सफाई में व्यतीत हो गया। सफाई के दौरान कहीं कंडोम और कहीं अश्लील पुस्तकें मिल गयीं। उसे अपने पति पर शक तो हुआ लेकिन फिर खुद को दिलासा देने लगी, "बेचारा एक वर्ष से अकेला पड़ा था, हो सकता है इन पुस्तकों और तस्वीरों से दिल बहलाता रहा होगा।" उसे अपने पति की वफ़ादारी पर पूरा भरोसा था। इसलिए किसी शंका को सिरे से ही ख़ारिज कर दिया।
दुसरे रोज़ लंच करने के बाद मेजर खन्ना वापस अपने दफ्तर चला गया। कुछ देर के बाद एक खासी लड़की घर का दरवाज़ा खटखटाने लगी। पूनम खन्ना ने दरवाज़ा खोल दिया और अजनबी लड़की को देखकर हैरान हो गई। फिर धैर्य करके पूछने लगी, "कौन हो तुम? यहाँ किस लिए आई हो?" 
"मेजर है? मुझे उसे मिलना है।"
"यहाँ कोई मेजर वेजर नहीं है। तुमको कोई ग़लतफ़हमी हुई है।" 
"नो मैडम, मैं राइट जगह पर हूँ। कोई मिश्टेक नहीं। तुम मेजर का वाइफ है ना?"
"किस मेजर की बात कर रही हो तुम? मैंने कहा ना यहाँ कोई मेजर वेजर नहीं है। हुंह जहाँ जी चाहा वहां घुस गए।" पूनम ने दरवाज़ा बंद करना चाहा मगर खासी लड़की ने उसे रोक लिया। "नो मैडम, तुम मेजर का वाइफ है। मुझे मालूम है। अंदर ड्राइंग रूम में फायर प्लेस के ऊपर कोर्निस पर तुम दोनों का ब्यूटीफुल फोटो लगा हुआ है। यू आर रियली वैरी ब्यूटीफुल !"
पूनम आश्चर्यचकित हो गई। उसे अत्तर ही नहीं सूझ रहा था। बस इतना कह सकी, "इस वक़्त वह यहाँ नहीं हैं। दफ्तर चले गए हैं। मालूम नहीं कब आएं गे।" 
खासी लड़की वापस चली गई। पूनम की आँखें दूर तक उस का पीछा करती रहीं।         




Saturday, March 26, 2016

Krishan Chander Ki Zehni Tashkeel: کرشن چندر کی ذہنی تشکیل ;(Urdu/Tabsera); Author: Mohd Owais Qarni: Reviewer: Deepak Budki

Krishan Chander Ki Zehni Tashkeel:
کرشن چندر کی ذہنی تشکیل 
Author: Mohd Owais Qarni 
Reviewer: Deepak Budki