Thursday, May 17, 2018
Tuesday, February 20, 2018
Urdu Ke Ghair Muslim Afsana Nigar (Book Review): (اردو کے غیر مسلم افسانہ نگار (تبصرہ ; Author: Deepak Budki; Reviewer:Dr Renu Behl
Urdu Ke Ghair Muslim Afsana Nigar;Book Review
(اردو کے غیر مسلم افسانہ نگار (تبصرہ
Author: Deepak Budki;Reviewer: Dr Renu Behl
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Ab Main Wahan Nahi Rehta (Book Review): اب میں وہاں نہیں رہتا ؛تبصرہ ; Author: Deepak Budki; Reviewer:Quasim Rasa
Ab Main Wahan Nahi Rehta;Book Review
اب میں وہاں نہیں رہتا ؛تبصرہ
Author: Deepak Budki;Reviewer: Quasim Rasa
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Wednesday, January 10, 2018
Sarabon Ka Safar: सराबों का सफर (Hindi); Afsana; कहानी ; Short Story; Author:Deepak Budki; Translator: Devi Nangrani
Sarabon Ka Safar;सराबों का सफर;
Afsana; कहानी ; Short Story
Author:Deepak Budki:Tranaslator:Devi Nangrani
सराबों का सफर
आज की ताज़ा खबर….. आज की ताज़ा खबर... “राहुल गाँधी ने दलित की झोपड़ी में रात गुज़ारी और उसके साथ ही रात को खाना भी खाया।’’
मेरी हैरानी की कोई हद न रही. समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे रईसज़ादे ने, जिसकी तीन पीढ़ियों ने हिंदुस्तान पर हुकूमत की थी, झोपड़ी में कैसे रात गुज़ारी होगी…? उसने रात भर मच्छरों और खटमलों से कैसे मुक़ाबला किया होगा? और फिर सूखी रोटियां, दाल और सब्जी कैसे खाई होगी? यह माना कि आज़ादी के बाद हमने लोकतंत्र को गले लगाया है, अपनी हुकूमतें
खुद ही चुन ली हैं, मगर आज भी हम राजा महाराजाओं के सामने सर झुका कर चलते हैं और ’हुकुम हुकुम’ कहते हुए हमारी जुबान नहीं थकती। .
खैर तजुर्बा कामयाब रहा. गरीबों की परेशानियों और समस्याओं का अंदाजा लगाने के लिए यह तरीका फ़ायदेमंद साबित हुआ। भरी लोकसभा में कलावती और उसके दयनीय स्थिति का बयान ऐसे मनभावन अंदाज में पेश किया गया कि लोग क़ायल हो गए और सभी अपने ज़ख्मों को कुत्तों की तरह चाटते रह गए। इधर आम आदमी की हालत को सुधारने के लिए सब पार्टी
वर्कर जुट गए।
अखबार खरीद कर मैं चंडीगढ़ वाली बस में बैठ गया। अभी बहुत सारी सीटें खाली थीं। मैं इसी इंतजार में था कि कब गाड़ी भर जाए और चंडीगढ़ की तरफ रवाना हो। मेरा उसी रोज वहां पहुंचना जरूरी था, क्योंकि दूसरे रोज़ वोटर पहचान कार्ड बनवाने की आखिरी तारीख थी। मैं उस
बुनियादी हक़ से वंचित नहीं होना चाहता था।
सामने वाले दरवाज़े से दस ग्यारह बरस का लड़का कंधे पर पानी की बोतलों का झोला लटकाए अंदर दाखिल हुआ और ‘ठंडा पानी, ठंडा पानी’ कहता हुआ बस के पिछले दरवाज़े की तरफ बढ़ता चला गया।
‘ क्या जमाना आया है बेटे। पहले तो हर स्टेशन पर साफ़-शफाफ पीने का पानी नलों में मुफ़्त प्राप्त होता था। अब तो पानी की भी कीमत वसूली जा रही है। कौन जाने कब हवा पर भी पहरे बिठाए जाएंगे। मालूम है बेटे, मेरी पहली तनख्वाह बारह रुपये थी। उतनी ही जितनी आज इस बोतल की कीमत है’ -बगल में बैठा हुआ बुजुर्ग आदमी मुझसे मुखातिब हुआ।
‘अंकल आप किस ज़माने की बात कर रहे हैं. यह भी तो सोचिए कि आज मामूली से मामूली क्लर्क की आमदनी पंद्रह हज़ार से कम नहीं होती। मेट्रिक फेल क्रिकेट खिलाड़ी भी साल भर में दो चार करोड़ कमाता है। फिल्म एक्टरों , मॉडलों, टी.वी आर्टिस्टों, न्यूज़ पढ़नेवालों, और बिजनेस मैनेजरों की तो बात ही नहीं. उनकी आमदनी का तो कोई हिसाब ही नहीं। आमदनी
इतनी ज्यादा बढ़ गई तो जरूरी है कि कीमतें भी बढ़ जाएंगी ,' मैंने बूढ़े आदमी के झुर्रियों वाले चेहरे का मुआइना करते हुए जवाब दिया।
‘आमदनी तो नौकरी करने वालों की बढ़ गई बेटे। किसानों, मजदूरों और ठेले वालों का क्या? फिर उन लोगों को भी तो देखो जो कभी एक मिल में काम करते हैं और कभी दूसरी मिल में। कभी हड़ताल के सबब नौकरी छूट जाती है और कभी लॉक आउट की वजह से। बेटे मेरी तरफ देखो, मुझे न पेंशन मिलती है और न ही महंगाई भत्ता. बच्चे रोज़ी रोटी की तलाश में दूसरे शहरों में जा बसे। खुद अपना पेट नहीं पाल सकते, मेरी मदद कैसे कर सकेंगे?’
मैंने बहस को बढ़ावा देना मुनासिब नहीं समझा, इसलिए अखबार खोलकर काली लकीरों का भेद जानने में व्यस्त हो गया। बूढा अनकही बातों को थूक के साथ निगल कर चुप हो गया।
इतनी देर में बस के इंजिन की आवाज मेरे कानों तक आने लगी और आहिस्ता आहिस्ता तेज़ तर होने लगी। मेरी टांगों में अजीब तसल्ली देने वाला अहसास पैदा होने लगा। कुछ मिनटों में गाड़ी फर्राटे भरती हुई चंडीगढ़ की तरफ रवाना हो गई।
अचानक मेरी नजर सामने वाली सीट पर बैठी औरत पर पड़ी जिसका चेहरा जाना पहचाना सा लग रहा था। उसको देख कर मैं इतना खुश हुआ जितना कोई छोटा बच्चा खिलौना देखकर
हो जाता है।
‘ अरे सुभद्रा तुम…. तुम यहां कैसे?’
‘ मैं पंचकुला अपने ससुराल जा रही हूं। और तुम... तुम यहां कैसे?’
‘ मैं दो साल से चंडीगढ़ में नौकरी करता हूँ। उससे पहले कटक उड़ीसा में पदस्थापित था.’
‘ सच, मुझे तो मालूम ही नहीं….’
सुभद्रा ने मुस्कुराते हुए बग़ल में बैठे हुए आदमी से अनुरोध किया कि वह मेरे साथ सीट बदल ले। वह आदमी मनोरम मुस्कुराहट का ताब न लाकर यकायक खड़ा हो गया, और अपनी सीट खाली कर दी। एक ज़रा सी मुस्कुराहट ने उसके इरादों पर पानी फेर दिया।
‘ सुभद्रा, लगता है तुम माता के दर्शन करने गई थी।’
‘ हां मन्नत जो मांगी थी, उसी को पूरा करने चली गई थी।’
‘ कैसी मन्नत……?’
‘ कैलाश, तुम्हें तो मालूम ही है कि मेरी शादी एक सियासी खानदान में हुई थी। तुम से बिछड़ने के बाद मैं पूर्ण रूप से सियासत बन गई। ससुर जी पंजाब गवर्नमेंट में दस साल मिनिस्टर रहे। घर में हमेशा दौलत की रेल
पेल रही। नौकर चाकर, गाड़ी बंगला सब कुछ उपलब्ध था। अगर कहीं कोई सूनापन था तो वह मेरी गोद में था। मेरे पति अपनी रंगरलियों में मस्त रहते, मगर मुझे हरदम खटका रहता कि कहीं किसी दिन वे मुझे छोड़कर दूसरी शादी न कर ले। इसलिए मैंने यतीम खाने से एक बच्चा गोद ले लिया, मगर उसकी रगों में न जाने किस नीच कुल का खून दौड़ रहा था। उसने तो मेरी
नाक में दम कर रखा है। अड़ोस-पड़ोस के सब लुच्चे लफंगे उसके दोस्त बन चुके हैं। पढ़ाई में उसका मन ही नहीं लगता। आधे सेशन के बाद ही कॉलेज जाना बंद कर दिया। बाप ने बिज़नेस में डालने की कोशिश की, वहां भी नाकाम रहा. भगवान का शुक्र है कि अब तक जेल की हवा नहीं खाई। बाप ने कई बार उसे पुलिस थाने से छुड़वा लिया। इसीलिए मैंने वैष्णव् माता से
मन्नत मांगी कि आने वाले इलेक्शन में उसे पार्टी की टिकट मिल जाए तो मैं साधारण श्रदालाओं की तरह उसके दरबार में हाज़री दूंगी।’
‘ तुम्हारा मतलब है कि उसे पार्लिमेंट इलेक्शन के लिए पार्टी की सीट मिल गई?’
‘हां, किशोर के पिताजी ने उच्चतम अधिकारी से साफ साफ कह दिया कि अगर मेरे बेटे को सीट नहीं दी गई तो वह पार्टी के लिए काम नहीं करेगा। पार्टी मजबूर थी, क्योंकि पंजाब में उनकी साख दाव पर लगी हुई है।’
‘लेकिन सुभद्रा उसको पार्टी की सीट मिली है ना कि उसका चुनाव हो चुका है। अभी तो असली पड़ाव पार होना बाकी है।’
‘ऐसा नहीं है कैलाश। वह पंजाब यूथ ब्रिगेड का सदस्य है। मेरे पति श्याम चौधरी ने अपनी सारी ताकत इलेक्शन में लगा दी है। रुपया-पैसा, आदमी जो कुछ भी उसके पास है सब दांव पर लगा दिया है। एक बार किशोर के पाँव सियासत में जम जाए तो फिर कोई परेशानी नहीं रहेगी.’
‘सुभद्रा, परेशानियों के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। इनका कोई अंत नहीं होता। खुद अपनी तरफ ही देखो। मां-बाप ने यह सोच कर शादी कर दी थी के अमीर घराने में वारे न्यारे हो जाएंगे। फिर यह रिक्तता, यह सूनापन कहाँ से उदित हुआ.’
‘तुम सच कहते हो, परेशानियों का कोई अंत नहीं होता। बाहर से यह सब सियासतदान कितने खुश नज़र आते हैं, मगर इनकी निजी जिंदगी में झांको तो हैरत होती है। किसी की लड़की भाग जाती है और किसी की बहू ज़हर खा लेती है, किसी का बेटा नशा करते हुए पकड़ा जाता है और किसी का भाई गुंडागर्दी के परिणामस्वरूप जेल की हवा खाता है.’
‘सुना है पार्टी के वरिष्ठ अधिकारीयों ने हुक्म दिया है कि सारे उम्मीदवार अपने चुनाव क्षेत्र में खास तौर आम लोगों के साथ रहकर उनकी कठिनाइयों के बारे में फर्स्ट हैंड मालूमात हासिल करेंगे। उनकी झोपड़ियों में दो-चार दिन गुज़ार कर उनके साथ का तजुर्बा हासिल करेंगे।’
‘तुमने ठीक सुना है लेकिन इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। दो चार रोज़ में कौन सा पहाड़ टूट जायेगा. उम्मीदवार हुकुम की तामील ज़रूर करेंगे मगर साथ में जंगल में मंगल मनाएंगे। उनके लिए पहले ही खाने पीने का इंतजाम किया जाएगा, बस्तियों में बिसलरी की बोतलें पहुंचा दी जाएंगी। जिन झोपड़ियों में रहना होगा वहां अच्छे बिस्तर का इंतजाम किया
जाएगा, मच्छरदानियां लगाईं जाएंगी, मच्छर मारने की दवाई छिड़की जाएगी. बिजली न हो तो जनरेटर से टेबल फैन चलाए जाएंगे। बस दो चार दिन यह असुविधा उठानी ही पड़ेगी, फिर पांच साल ऐश करो। एयर कंडीशन मकानों में रहो, एयर कंडीशन गाड़ियों में घूमो, फाइव स्टार
होटलों में खाना खाओ और ग्रीन टर्फ पर गोल्फ खेलो.’
‘यह सब इंतजाम कौन करेगा?’
‘कौन करेगा? जिला अधिकारी तब तक करेंगे जब तक इलेक्शन का ऐलान नहीं होगा. ऐलान हो गया तो पार्टी वर्कर इतने बेवक़ूफ़ तो होते नहीं कि ये छोटे मोटे प्रबंध नहीं करवा सकेंगे।’
‘मदिरा-पान का भी इंतजाम होगा क्या?’
‘नहीं यह मुमकिन नहीं। कुछ मान मर्यादा भी तो होती है। माना कि मौजूदा नस्लें गांधी जी के नाम से भी परिचित नहीं है, पब्लिक स्कूलों में सिर्फ जींस (jeans) और जैज़ (jazz) से परिचित हुई हैं, एयर कंडीशन कारों में सफर करती हैं, रातें क्लबों में गुज़ारती हैं, फिर भी राजनीती में रहना है तो जनता को प्रभावित करने के लिए कुछ गंधियाई ढब तो सीखने ही पड़ेंगे।’
‘तुम्हारी बातों में दम है सुभद्रा। गांधी और उस के उसूल इस पीढ़ी के लिए केवल खिलौने हैं, जिनसे वो आम आदमी को बेवक़ूफ़ बना सकते हैं। अलबत्ता मुझे तुमको देखकर हैरत हो रही है, कहां वह आदर्शवादी सुभद्रा और कहाँ यह अवसरवादी मिसेस चौधरी।’
‘कैलाश, आदमी को ज़माने के साथ बदलना पड़ता है वर्ना ज़माना उसको रौंद कर चला जाता है। मैंने अपनी ग़ुरबत से तंग आकर अपने तन-मन का सौदा कर लिया। तुम को छोड़ कर मिसेज़ श्याम चौधरी बन गई। अब मैं उसी गुरबत को फिर से गले नहीं लगाना चाहती।’
‘सुभद्रा मुझे तुम्हारे वो महान आदर्श याद आ रहे हैं। तुम रविंद्रनाथ टैगोर को अपना आदर्श मानती थी। तुम्हारे कमरे में जहां नजर पड़ती थी वहां गुरुदेव की तस्वीर लगी होती थी। तुमने बार-बार दर्शकगण को रविंद्र संगीत से बहुत प्रसन्न किया। कभी छांव में बैठकर गीतांजलि के छान्दोपद सुनाया करती थी. कैसे कैसे ख्वाब बुने थे तुमने और अब यह सब क्या है?’
‘अपना मन मार कर बिल्कुल बदल गई हूँ। अब यही ख्यालात मेरा ओढ़ना-बिछोना हैं। उन्हीं के सहारे मुझे बाकी सफर भी तय करना पड़ेगा। मेरी जिंदगी से संगीत विलीन हो चुका है। अब उन विचारों में कहीं कोई मृगजल भी नजर नहीं आता।’
रास्ते में गाड़ी कई बार रुकी। कभी नाश्ते के लिए और कभी लंच के लिए। हम दोनों नज़दीकी रेस्टोरेंट में बैठ कर आर्डर दे देते।बैठते ही एक-दूसरे की जांच-परख करते हुए ना जाने किन ख्यालों में गुम हो जाते। लग रहा था कि हम दोनों बचपन के वो लम्हे दोबारा जी रहे हैं, जो हमसे किस्मत ने छीन लिए थे.
बातों बातों में ना जाने कब हम चंडीगढ़ पहुंच गए. वक्त गुजरने का कोई एहसास भी न हुआ। एक बार फिर हमने एक दूसरे को भीगी आंखों से अलविदा कहा।
चार महीने के बाद इलेक्शन के नतीजे निकलने वाले थे। जबकि सुभद्रा की याद अभी मेरे दिल में ताजा थी, इसलिए मैं टी.वी पर इलेक्शन के नतीजों का बेसब्री से इंतजार करने लगा। सुबह सात बजे वोटों की गिनती शुरू हुई। ग्यारह बजे से परिणाम आने शुरू हो गए। किशोर चौधरी अपने प्रतिद्वंदियों से कभी आगे निकल जाता और कभी पीछे रह जाता। समय के साथ
साथ मेरी जिज्ञासा भी बढ़ने लगी। आखिरकार दिन के दो बजकर दस मिनट पर उसके नतीजे का ऐलान हुआ। किशोरे चौधरी जीत का परचम लहराता हुआ मेम्बर पार्लिमेंट बन गया।
उधर पार्लिमेंट के परिसर में पालथी मारे हुए और सुकून से बैठा हुआ महात्मा गांधी का पुतला बेसब्री से नई पीढ़ी के गांधियों का इंतजार कर रहा था।
*************
लेखक परिचय :
दीपक कुमार बुदकी
कश्मीर विश्वविद्यालय से M Sc B Ed, अदीब-ए- माहिर (Jamia Urdu Aligarh),
Graduate, National Defence College, New Delhi, देश के कई विभागों में, आर्मी डाक विभाग
में अपनी सेवाएं दी हैं. श्रीनगर की पत्रिकाओं के लिए cartoonist रहे. श्रीनगर में “उकाब
हफ्तेवार’ के सहकारी संपादक के रूप में कार्य किया है.
उर्दू में 100 कहानियाँ भारत, पकिस्तान, और अन्य यूरोप के देशों में छपी हैं. पुस्तकों पर
समीक्षाएं, व् उनकी पुस्तकों की समीक्षाएं “हमारी जुबान” में छपती रही हैं. प्रकाशित पुस्तकों की
सूची कुछ इस तरह हैं—कहानी संग्रह-अधूरे चेहरे (2005), चिनार के पंजे के तीन संस्करण, रेज़ा
रेज़ा हयात, रूह का कर्ब, मुठी भर रेत. उनकी अनेक कहानियाँ अंग्रेजी, कश्मीरी, मराठी, तेलुगु
में अनुदित हुई हैं.अनगिनत संस्थाओं व् शोध विद्यालयों से सम्मानित: राष्ट्रीय गौरव सम्मान व्
कालिदास सम्मान २००८ में हासिल है.
पता: A-102, S G Impression, Sector 4 B, Vasundhra, Ghaziabad-201012
Mobile: 9868271199 , email: deepak.budki@gmail.com
देवी नांगरानी
जन्म: 1941 कराची, सिंध (पाकिस्तान), 8 ग़ज़ल-व काव्य-संग्रह, (एक
अंग्रेज़ी) 2 भजन-संग्रह, 8 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानी-संग्रह प्रकाशित। सिंधी, हिन्दी, तथा अंग्रेज़ीमें समान अधिकार लेखन, हिन्दी- सिंधी में परस्पर अनुवाद। श्री मोदी के काव्य संग्रह, चौथी कूट
(साहित्य अकादमी प्रकाशन), अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद. NJ, NY, OSLO,
तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, महाराष्ट्र अकादमी, केरल व अन्य संस्थाओं से
सम्मानित। साहित्य अकादमी / राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद से पुरुसकृत।
संपर्क 9-डी, कार्नर व्यू सोसाइटी, 15/33 रोड, बांद्रा, मुम्बई 400050॰ dnangrani@gmail.com
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