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Sunday, April 25, 2021

Pehla Clone; प्रथम क्लोन; پہلا کلون ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Pehla Clone; प्रथम क्लोन; پہلا کلون 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

प्रथम क्लोन 

क्लोनिंग पर गर्मागर्म वादविवाद चल रहा था। 
इसमें कोई दो राय नहीं की हव्वा (ईव) सृष्टि की सबसे प्रथम क्लोन थी जिस को ईडन वाटिका में आदम की पसली से बनाया गया था। 
फिर यह कोलाहल कैसा कि क्लोनिंग की अनुमति दी जाये या नहीं! 


 

Monday, March 15, 2021

Sagon Ka Ped; सागौन का पेड़; ساگون کا پیڑ ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Sagon Ka Ped; सागौन का पेड़; ساگون کا پیڑ 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

सागौन का पेड़ 

कप्तान जसवंत सिंह के यूनिट स्टोर में राशन और दुसरी वस्तओं में विसंगति पाई गयी। इसलिए फार्मेशन ने जाँच पड़ताल का आदेश जारी किया। तकनीकी मामलों में वह मेरे अधीन था परन्तु प्रशासनिक मामले और अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यू ब्रांच के हिस्से में आती थी और उस में मेरा कोई रोल नहीं था। फिर भी न जाने क्यों उससे यक़ीन था कि मैं उस को बचा सकूंगा। उस ने कई बार मेरे घर के चक्कर लगाए और बचाव का रास्ता निकालने के लिए मिन्नत समाजत की। मुझे उसके चार बच्चों की हालत देखकर उस पर तरस आया। इसलिए जितना हो सका उसकी मदद की। अंततः वह आरोपों से बरी हो गया मगर सावधानी के तौर पर फार्मेशन ने उसको वहां से ट्रांसफर करवा  दिया। 
जाने से पहले मैं और मेरी बीवी उसको अलविदा कहने  के लिए उसके घर चले गए। वहां उस का सामान पैक हो रहा था जिसमें एक नया सागौन का सोफ़ा ध्यान आकर्षित कर रहा था। 
दुसरे दिन ऑफिस में पता चला कि जसवंत सिंह ने यूनिट के दो सागौन पेड़ कटवा कर उनका फर्नीचर बनवाया था। यह सुनकर मुझे अपने आप से घृणा  होने लगी कि मैं ने ऐसे आदमी को क्यों बचा लिया। मुझे बार बार कवी 'सौदा' का निम्नलिखित शेर याद आ रहा था। 
          "होगी कब तक बच्चा ख़बरदारी        चोर जाते रहे की अंधियारी" 


 

Parda Fash;पर्दा फाश;پردہ فاش ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Parda Fash;पर्दा फाश;پردہ فاش 

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

पर्दा फाश 

आधी रात को जूंही मैंने करवट बदल ली उसकी आवाज़ मेरे कानों से टकराई। वह नींद में बड़बड़ा रही थी। "नहीं, नहीं मुझे छूना नहीं। तुम मेरे लिए मर चुके हो। मुझे हाथ मत लगाना।" शायद कोई स्वप्न देख रही थी। 
मेरी हैरानी की हद न रही। ऐसी गहरी नींद में वह किस को छूने से मना कर रही थी? दिल में कई आशंकाओं ने सिर उभारा है। अवश्य कोई पुराना मित्र होगा जो उसको ख्वाब में छूने की कोशिश कर रहा था। मेरी नींद तो ख़ैर हराम हो ही गयी लेकिन रात भर यह गुथी सुलझ न पायी।  बार बार एक ही सवाल मन में उठ रहा था कि वह कौन था जिस को वह रोक रही थी?
दुसरे दिन उसका चेहरा मुरझाया सा नज़र आ रहा था।  मैं भी रात की घटना के कारण कुछ खिचा-खिचा सा रहा। फिर शाम को जब दफ्तर से लौट आया तो उससे रहा न गया। 
"कल दोपहर के वक़्त मैं टेलर के पास गयी थी। होटल प्लाजा के सामने आपकी कार खड़ी देखी। सोचा कि आपके साथ ही घर चली जाऊँ गी। अंदर झाँका तो आप किसी औरत के साथ मज़े से लंच कर रहे थे। परेशान होकर मैं अकेली ही वापस चली आयी। सारी रात डरावने ख्वाब देखती रही। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि आप ऐसे बेवफा निकलें गे?" उस के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। 

     

Wednesday, February 24, 2021

Ghair Rasmi Tarbiyat;अनौपचारिक प्रशिक्षण;غیر رسمی تربیت;Ministory;लघु कहानी ;افسانچہ

Ghair Rasmi Tarbiyat;अनौपचारिक प्रशिक्षण
غیر رسمی تربیت 
Ministory;लघु कहानी ;افسانچہ 

अनौपचारिक प्रशिक्षण 

पत्नी और पांच बच्चों को बेसहारा छोड़कर वो सड़क दुर्घटना में युवावस्था में ही मर गया। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ने उसके बड़े बेटे को, जो व्यस्क था ना मेट्रिक पास, उसक्वे स्थान पर रिआयती तौर पर क्लर्क नियुक्त किया। उसकी दुर्दशा पर तरस खाकर सेक्शन सुपरवाइजर ने भी बड़े परिश्रम, अनुकंपा और वात्सल्य से उसको कई वर्ष तक अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया ताकि वह अच्छा क्लर्क बन सके। इसी दौरान वह मैनेजिंग डायरेक्टर की नज़रों में समा गया। लड़का मेहनती था और उसकी सब से बड़ी खूबी यह थी कि दुनिया इधर की उधर हो जाए मगर वह अपने मुंह से कोई गोपनीय बात प्रकट नहीं करता था। फलस्वरूप उसको ऐसी ज़िम्मेदारियां सौंपी गईं जिन में गोपनीयता की आवश्यकता थी। लड़के ने भी नमक का हक़ बड़ी ईमानदारी से अदा किया। देखते ही देखते कई प्रमोशन मिले और वह अफसर बन गया। 
एक दिन मैंने सुपरवाइजर के कमरे में प्रवेश किया। वह बहुत ही उदास लग रहा था। कारण पुछा तो कहने लगा, "यहाँ तो अब दम घुटने लगा है। कल का यह अनपढ़ छोकरा जिसको हाथ पकड़ कर मैंने काम सिखाया आज मेरा ही अफसर बन चुका है और मुझ पर हुकुम चलाता है।"
उसके आंतरिक द्वंद्व का अंदाज़ा लगाना कठिन न था। मैंने मुस्कराते हुए प्रश्न पूछा, "एक कश्मीरी कहावत है, 'अथि हावुन गव अथि ख्यावुन' अर्थात हाथ दिखाना यानी हुनर सिखाना अपने हाथ कटवाने के बराबर होता है।" क्या उसको हाथ पकड़ कर प्रशिक्षण देना आपके आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल था?"
वह मुझे टुकुर-टुकुर देखने लगा। "नहीं भाई, मैंने सोचा कि उसको कुछ भी नहीं आता है भविष्य में संकट में पड़ जाएगा।"
"इसलिए आप ने काम के सभी गुर सिखा दिये मतलब अपने पांव पर स्वयं  ही कुल्हाड़ी मार दी। है ना....? जबकि यह काम आपका नहीं था। अब भुगतो इसका फल। फिर परेशान किस बात पर हो रहे हो?"               


 

Tuesday, February 23, 2021

Insaaf; न्याय ; انصاف ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Insaaf; न्याय ; انصاف 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

न्याय 

क्लास में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर ने विद्यार्थियों से पूछा, "क्या तुम बता सकते हो कि 'न्याय' क्या होता है?"
सारी कक्षा में सनसनी सी फैल गई। विद्यार्थी एक दुसरे को प्रश्नात्मक नज़रों से देखने लगे मगर कोई कुछ भी न कह पा रहा था। केवल कानाफूसी हो रही थी। 
इतनी देर में आखरी बेंच पर बैठा एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उत्तर देने लगा, "सर न्याय वह होता है जो राजा को आनंदित करे और  प्रजा को   तुष्टिकरण करके शांत करे।"  

 

Sunday, February 21, 2021

Imandari;सत्यनिष्ठा ;ایمانداری ; हिंदी लघु कहानी اردو افسانچہ Ministory.

Imandari;सत्यनिष्ठा ;ایمانداری 

 हिंदी लघु कहानी اردو افسانچہ  Ministory.

सत्यनिष्ठा

सेना में दो प्रकार की प्रविष्टि होती है। सीमा के निकट युद्ध क्षेत्र में जहाँ सैनिक सदा युद्ध के लिए मुस्तैद रहते हैं या फिर शांति के क्षेत्र में जहाँ प्रशिक्षण और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर कोई कमी ना रह जाए। 

हमारे डिवीज़न में, जो शांति क्षेत्र में स्थित था, हर शनिवार को कोई ना कोई सेना का उच्च अफसर दुसरे अफसरों को मानसिक प्रशिक्षण देने के लिए किसी विशिष्ट विषय पर भाषण देता था। 

एक दिन सिग्नल कोर के एक ब्रिगेडियर की बारी आई। विषय था, 'सत्यनिष्ठा तथा वफादारी'

वह अपने विचार व्यक्त कर ही रहा था कि मेरी नज़र बगल में बैठे हुए सिग्नल कोर के एक लेफ्टिनेंट पर पड़ी जो छोटे से नोट पैड पर कुछ लिख रहा था।

"यह क्या कर रहे हो? सामने तुम्हारा बॉस भाषण दे रहा है और तुम हो कि अपना कुछ हिसाब लिखे जा रहे हो। कहीं उसकी नज़र पड़ी तो......?" मैंने प्रश्न अधूरा ही छोड़ दिया। 

"सर हमारा बॉस हम को ईमानदारी का उपदेश दे रहा है। लेना ना देना, बातों का जमा खर्च। मैं हिसाब लगा रहा हूँ कि वह अपने वेतन के अलावा सर्कार को प्रति मास कितना चूना लगा रहा है। दो एकड़ ज़मीन पर बंगला। इस में डेढ़ एकड़ पर अनाज और सब्ज़ियों की खेती होती है। यूनिट के सिपाहियों से उस पर मज़दूरी करवाई जाती है। दो गाड़ियां और दो ड्राइवर, एक अपने लिए और एक मेम साहब के लिए। घर में व्यक्तिगत कामों के लिए तीन और सिपाही। इसके अतिरिक्त अच्छी दारू और निजी पार्टियां। यह सब मिला कर चार लाख प्रति मास बन जाते हैं। 

मैं अवाक उसको देखता रहा और सोचता रहा कि आज की पीढ़ी कितनी समझदार और निडर हो गई है। खाली खोली उपदेशों से उनका पेट नहीं भरता।        






Monday, May 4, 2020

Pashemani;पश्चाताप;پشیمانی ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Pashemani;पश्चाताप;پشیمانی 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

पश्चाताप 
कुछ महीने पहले राजनाथ की अर्धांगिनी स्वर्गवास हो गयी और ढलती आयु में उसे तन्हाई का अत्यंत अनुभव हो रहा था। उसे याद आया को जब भी वह कोई आदेश देता सरला बिना किसी बहाने के उस पर शीघ्र कार्यवाही करती। कभी कभी वह नाराज़ होकर आपे से बाहर भी हो जाता मगर सरला ख़ामोशी से अपने आंसू पी जाती। 
दो दिन पहले मैं यूँही उसे मिलने गया  तो वह बहुत ही अनुतापी लग रहा था। उसकी आँखों में पहली बार आंसों नज़र आ रहे थे। पूछा क्या बात है? कहने लगा, "तुम्हें नहीं मालूम तुम्हारी आंटी को मैंने ज़िन्दगी भर बहुत कष्ट पुहंचाया। सारी उम्र वह मेरे उचित अनुचित आदेशों का पालन करती रही परन्तु मुंह से कभी उफ़ तक नहीं की। मुझे अब इस बात का एहसास हो रहा है कि मैंने उस के साथ बहुत ज़्यादती की जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी। मुझे सरला के साथ अनुकंपा तथा सहानभूति से पेश आना चाहिए था। मगर अब तो वह चली गई  और गया समय वापस नहीं आता।  



















Saturday, May 2, 2020

Ziyafat;भोज;ضیافت ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Ziyafat;भोज;ضیافت 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

भोज
निदेशक डाक सेवा की हैसियत से मैं अचानक एक दिन एक गांव के शाखा डाकघर का निरीक्षण करने चल पड़ा। साथ में एक इंस्पेक्टर था। वहां पहुँचते ही मालूम हुआ कि शाखा डाकपाल कई दिन पहले शहर जा चूका है और अपने बदले चचेरे भाई को काम पर छोड़ा है। बेचारा प्रशिक्षित तो था नहीं इस लिए ना हिसाब-किताब ढंग से रखा था और ना ही मेरे प्रश्नों का उत्तर दे पाया। 
इसी बीच में असली डाकपाल की पत्नी वहां आन पहुंची और छाती पीटती  हुई स्थानीय भाषा में तदर्थ डाकपाल को बुरा भला कहने लगी, "अरे मूर्ख, तुमने मुझे खबर क्यों नहीं की, मालूम नहीं तुम्हारा भाई आग बबूला हो जाए  गा? यह अफसर लोग जब भी आ जाते हैं हम उनकी आवभगत में  कोई कसर नहीं छोड़ते, उनके लिए फटाफट बतख कटवा कर स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध करते हैं। यह लोग पेट भर कर ही यहाँ से चले जाते हैं।  तुमने तो भाई को मुंह दिखाने के योग्य ही नहीं रखा।"
चूंकि मैं स्थानीय भाषा जानता था इसलिए मुझे हंसी आगई। फिर उसे कहने लगा, "मोहतरमा, आप चिंता ना करें, वह जो निरीक्षण करने आते हैं बहुत बड़े अफसर होते हैं, मैं तो छोटा सा कर्मचारी हूँ कुछ जानकारी एकत्रित करने के लिए आया हूँ, बस पांच दस मिनट में वापस चला जाऊँ गा। आप निश्चिन्त अपने घर वापस चली जाइए।"
उसके बाद डाकपाल की पत्नी तदर्थ डाकपाल को बुरा भला कहती हुई चली गई। 

             


Friday, May 1, 2020

Masnooyi Tukhmrezi;कृत्रिम गर्भाधान; مصنوئی تخم ریزی ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Masnooyi Tukhmrezi;कृत्रिम गर्भाधान;
 مصنوئی تخم ریزی
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

कृत्रिम गर्भाधान 
बहुत वर्षों तक पति पत्नी बच्चे की प्रतीक्षा करते रहे। अंततः डॉक्टर ने उन की क्षति और निराशा को देखकर उन्हें परामर्श दिया की वे कृत्रिम गर्भधान के माध्यम से बच्चा पैदा करें। बहुत सोच विचार के बाद दोनों इस बात पर सहमत हो गए। 
सौभाग्य से उनके यहाँ  एक लड़का पैदा हुआ। दोनों को यह मालूम नहीं था कि शुक्राणु किसके थे मगर पिता को उम्र भर यह एहसास कचोटता रहा कि बच्चा उसका नहीं है इसलिए वह उसे वैसा प्यार नहीं दे सका जैसा एक बच्चे का अधिकार होता है। अलबत्ता माँ ऐसा नहीं कर पाई क्यूंकि वह उसकी कोख में नौ महीने रह चूका था और उसके शरीर का हिस्सा बन चुका था। 


Thursday, April 30, 2020

Kaudi Ke Teen Teen;कौड़ी के तीन तीन;کوڑی کے تین تین ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Kaudi Ke Teen Teen;कौड़ी के तीन तीन;
کوڑی کے تین تین 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

कौड़ी के तीन तीन
गरीबों की समस्याएं भी विचित्र होती हैं। मेरे फूफा जी श्रीनगर से साठ किलोमीटर दूर रहते थे। उनके जन्म दिन पर पिता जी उन्हें इक्यावन रुपए शगुन के तौर पर मेरे हाथ भेजना चाहते थे। एक दिन पहले दफ्तर जाते समय उन्होंने इकहत्तर रुपए मेरे हाथ में यह कहकर थमा दिए कि इक्यावन रुपए फूफा जी को देना और बीस रुपए बस में आने जाने का किराया। 
उस दिन मैं रात गए घर लौट आया कि रास्ते में एक चटाई विक्रेता मिल गया जिस के सिर पर केवल तीन घास की चटाइयां (वगुव) बची थीं। यह चटाइयां अत्यधिक ठंड से बचने के लिए बहुत लाभदायक होती हैं। मैंने यूँही क़ीमत पूछी तो उसने एक की क़ीमत सौ रुपए बताई और तीन ढाई सौ रुपए में देने को तैयार हो गया। मैंने कहा कि मेरे पास केवल सत्तर रुपए हैं, अगर तीनों दोगे तो खरीद लूँ गा। बहुत भाव-ताव के बाद वह मान गया और मैं तीनों चटाइयां लेकर जोशपूर्ण घर पहुँच गया। सोचा था पिता जी इतनी सस्ती चटाइयां देखकर बहुत प्रसन्न होंगे मगर वह तो आग बबूला हो गए। चूँकि महीना समाप्त होने में अभी दो दिन बाक़ी थे, उनके पास बस यही इकहत्तर रूपए बचे थे और उन्हें किसी से उधार लेना गवारा न था। 
दुसरे रोज़ प्रातः उठ कर ना जाने कहाँ से वह लाचारी में सत्तर रुपए उधार ले कर आए और मेरे हवाले कर दिए। उनके चेहरे पर सतत क्रोध और उदासी देख कर मुझे शर्म महसूस हो रही थी और एक कश्मीरी कहावत याद आ रही थी, 'हारि हुस करि क्या हारि रुस' (कौड़ी के सब जहाँ में नक़्शो नगीन हैं. कौड़ी न हो तो कौड़ी के फिर तीन तीन हैं [नज़ीर ])

 
        

Tuesday, April 28, 2020

Katba...!;शिलालेख;!...کتبہ ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Katba...!;शिलालेख;!...کتبہ 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

शिलालेख.....! 

यहाँ एक बेसहारा अनपढ़ औरत दफ़न है जो सारी उम्र अपने लेखक पति के झूठे आरोपों का उत्तर नहीं दे पाई। 


Monday, April 27, 2020

Shutur Murgh; शुतुरमुर्ग; شتر مرغ ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Shutur Murgh; शुतुरमुर्ग; شتر مرغ  
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

शुतुरमुर्ग  

मैं उठा और खिड़की का पर्दा हटाया। 
बाहर नरसंहार हो रहा था और मकान जल रहे थे जिनके धुंए से कुछ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। तथापि इतना तो स्पष्ट था कि यह सब कुछ मेरे मकान से बहुत दूर हो रहा था। इसलिए मैंने भगवान् का  शुक्र अदा किया। मैं वापस अपनी रज़ाई में शुतुरमुर्ग की तरह सिर दबाये घुस गया और निश्चिन्त सो गया। 

Sunday, April 26, 2020

Karva Chauth: करवा चौथ; کروا چوتھ ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Karva Chauth: करवा चौथ; کروا چوتھ 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

करवा चौथ 
सब औरतें चन्द्रमा की प्रतीक्षा कर रही थीं। उसने भी दिन भर व्रत रखा था और अपने स्वामी का इंतज़ार कर रही थी। 
वह हमारे पड़ोस में रहती थी। ऐसा कोई दिन व्यतीत नहीं होता था जब वह अपने पति के साथ लड़ती झगड़ती ना थी और लड़ते लड़ते दुर्वचन ना  कहती थी। कभी कभी वह इस सीमा तक चली जाती की भगवान् से अपने पति को उठाने की प्रार्थना करती। उसका पति शारीरिक रूप से कमज़ोर था, इसलिए सब कुछ सहन कर लेता जब तक वह स्वयं ही चुप ना हो जाती। 
अंततः चन्द्रमा ने अपनी शक्ल दिखाई और मेरी अर्धांगनी ने मेरा चेहरा छलनी में से देखकर पूजा शरू कर दी। अकस्मात् हम दोनों की नज़रें अपने पड़ोसियों पर पड़ीं जो यही कार्यवाही दूसरी छत पर कर रहे थे। उन्हें देख कर मेरी पत्नी से रहा ना गया। कहने लगी, "क्या आप अनुमान लगा सकते  हैं?"
मैंने पुछा, "किस बारे में?"
उसने कहा, "हमारी पड़ोसन ने आज पति के मरने की दुआ मांगी होगी या जीने की?"
मुझे कोई उत्तर सूझ नहीं रहा था इसलिए खामोश रहना ही उचित समझा।    

Jahez Ki Karamaat;दहेज का चमत्कार;جہیز کی کرامات ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Jahez Ki Karamaat;दहेज का चमत्कार;جہیز کی کرامات 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

दहेज का चमत्कार 
यह उन दिनों की बात है जब मैं अशोक होटल दिल्ली के कश्मीर गवर्नमेंट एम्पोरियम ब्रांच में मैनेजर था। वहां के टेलीफोन एक्सचेंज का इंचार्ज मेरा अच्छा मित्र बन गया। मैं अक्सर उसके पास चाय या कॉफ़ी पीने के लिए चला जाता और बहुत समय तक गप्पें हांकता। विनायक अग्रवाल की काय  मध्यम, रंग सावंला,और शरीर मांसल था। परन्तु मिलनसार और मृदुभाषी था। 
एक रोज़ उसने मुझे सूचना दी कि दो दिन पहले उसकी मंगनी हो गयी और शादी दुसरे महीने होने वाली है। बातों बातों में यह भी बताया कि उसे तीन  लाख रुपए दहेज के तौर पर मिल रहे हैं। उन दिनों लाखों का महत्व उतना ही होता था जितना आज कल करोड़ों का होता है। मुझे आश्चर्य हुआ कि विनायक में ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जिसके कारण इतना सारा दहेज मिल रहा है। 
खैर विवाह हुआ और मैं भी अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुआ। उसकी धर्मपत्नी के दर्शन करते ही मेरा दिल धक् से रह गया। मुझे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया कि अग्रवाल इतने महंगे दामों क्यूँकर बिक गया। उसकी अर्धांग्नी भारी भरकम, श्याम वर्ण और कुछ हद तक कुरूप थी। देखने में वह उसकी माँ जैसी लग रही थी।     



Saturday, April 25, 2020

Yeh Kaisa Rishta: यह कैसा रिश्ता; یہ کیسا رشتہ ;Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Yeh Kaisa Rishta: यह कैसा रिश्ता; یہ کیسا رشتہ 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

यह कैसा रिश्ता !
मैं और मेरी पत्नी तेजपुर असम से वापस टँगावैली, अरुणाचल प्रदेश जा रहे थे कि रास्ते में सेसा के पास चाय नाश्ता करने के लिए रुक गए। रेस्टोरेंट में प्रवेश करते ही मेरी दृष्टि एक अधीनस्थ अफसर पर पड़ी जो टँगावैली में अपने फील्ड पोस्ट ऑफिस का निरीक्षण करके वापस अपने हेडक्वार्टर जा रहा था। उसके साथ एक सांवली महिला थी जो देखने में कुछ जवान लग रही थी। उसने हमें अपने पास बैठने के लिए आमंत्रित किया और हम दोनों के लिए डोसा और चाय का आर्डर दे दिया। 
बहुत देर तक मैं ऑफिस की बातें करता रहा जबकि मेरी श्रीमती जी बिलकुल खामोश रही। मुझे कुछ संदेह सा हो गया क्यूंकि वह बात करने के बग़ैर रह ही नहीं सकती। खैर नाश्ता करने के पश्चात् जब हम एक दुसरे से विदा हो गए तो मैंने अपनी पत्नी से रोष प्रकट किया, "तुमने उसकी बीवी से बात क्यों नहीं की, तुम अपने आप को ना जाने क्या समझती हो?"
"वह कौन सी उसकी बीवी है, वह तो उसकी बहु है जिस को वह अपने पास रखता है जबकि अपनी बीवी को बेटे के पास रख छोड़ा है।" उसने शरारत भरे लहजे में उत्तर दिया।  

   
 





Hum Gudaz; स्नेहवान; ہم گداز ; Afsancha; लघुकहानी ;افسانچہ

Hum Gudaz; स्नेहवान; ہم گداز 
 Afsancha; लघुकहानी ;افسانچہ 

स्नेहवान 
रास्ते में वह मुझ से अचानक टकरा गयी और फिर मेरे साथ चलने को तैयार हो गयी। संयोग से मैं उन दिनों एक घनिष्ट मित्र के माध्यम से एक संसद सदस्य के फ्लैट में दो दिनों के लिए ठहरा हुआ था क्यूंकि उस समय संसद सत्र नहीं चल रहा था। घर में प्रवेश करके मैंने उसको आराम और संतोष से बैठने को कहा। कुछ समय तक किसी हिचकिचाहट के बग़ैर बातें हुईं। फिर वह उठी, बाथरूम में नहा-धो लिया, खुशबूदार साबुन और इत्र से अपना बदन महकाया और बालों को खुला छोड़ कर अपनी छातियों पर तौलिया बांधे बाहर निकल आई जैसे मुझसे कोई पर्दादारी ना हो। उसके बाद हम दोनों बियर पीने में व्यस्त हो गए। इतने में मैंने होम डिलीवरी से खाना मंगवाया और फिर दोनों उत्साह से भोजन करने लगे यहाँ तक कि एक दुसरे के मुंह में भी कुछ प्यार भरे निवाले डाल दिए। 
रात कैसे व्यतीत हुई इस का आभास ही नहीं हुआ। प्रातः प्रस्थान के समय मैंने उसे पांच सौ रुपए देने की कोशिश की मगर उसने लेने से इंकार कर दिया। प्रतिक्रिया के तौर पर वह केवल मुस्कराती रही और ऑटो रिक्शा में बैठकर दिल्ली की भीड़ में खो गयी।    




Friday, April 24, 2020

Shareef Badmash;शरीफ बदमाश;شریف بدمعاش ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Shareef Badmash;शरीफ बदमाश;شریف بدمعاش 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

शरीफ बदमाश
हर कोई उसे भोला-भाला, सज्जन और सभ्य समझता था जबकि मुझे गंवार, अशिष्ट और जड़बुद्धि घोषित किया गया था। उसकी शिक्षा ही ऐसी थी कि बड़े आदर से सबके साथ पेश आता, खाने की मेज़ पर उचित शिष्टाचार का प्रदर्शन करता और किसी से कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करता था। युवतियां कभी भी उससे दूर रहने की कोशिश नहीं करती थीं। 
समय गुज़रने के साथ साथ हमारी नज़दीकियां बढ़ती गईं। एक रोज़ वह काम करने वाली बाई को गले से लगा रहा था कि मैं अकस्मात उसके कमरे में घुस गया और उसका यह राज़ खुल गया। तत्पश्चात उसके व्यक्तित्व पर पड़े मोटे पर्दे परत-दर-परत खुलते चले गए। मालूम हुआ की श्रीमान जी इस अल्पायु में भी हस्तमैथुन और समलैंगिकता में रूचि रखते हैं। 
उसको क़रीब से जानने के बाद मुझे बोध हुआ कि मनुष्य भी हिमशैल के समान होता है।      


Humjinsiyat;समलैंगिकता;ہم جنسیت ;Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Humjinsiyat;समलैंगिकता;ہم جنسیت 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 
समलैंगिकता
मुझे उसकी विकृति का एहसास पहली मुलाक़ात में  ही हुआ। उसने अपने दोस्तों से भी मेरा परिचय कराया। मालूम हुआ कि तीनों समलिंगी रिश्ते में बंधे हुए हैं और एक दुसरे की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। मेरे स्वास्थ्य को देख कर उसने मुझे भी ऑफर किया था। 
दो वर्ष बाद मैं उसके विवाह में सम्मिलित हुआ। फिर उनके दो बच्चे भी हुए। जब भी मैं उसकी फैमिली से मिलता सभी प्रसन्न तथा संतुष्ट नज़र आते थे। हर बार जब उसकी पत्नी का सामना होता तो दिल में यही ख्याल आता कि पूछ लूँ तुम्हें अपने पति की समलैंगिकता की खबर है या नहीं? अगर है तो फिर तुम उसके साथ कैसे निर्वाह कर रही हो? परन्तु हर बार मन की मन में ही रह जाती।    

Thursday, April 23, 2020

Zehni Tashnagi:मानसिक असंतोष;ذہنی تشنگی : Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Zehni Tashnagi:मानसिक असंतोष;
ذہنی تشنگی 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 
मानसिक असंतोष 
पहली भेंट में मुझे उसपर तरस आ गया था कि वह साधारण सी क्लर्की करने पर क्यों संतुष्ट थी। वह सुन्दर थी, बुद्धिमान थी, उद्यमी थी, और फर फर अंग्रेजी बोलती थी। मुझे अपने विचार व्यक्त करने में कोई संकोच नहीं हुआ। "तुम विवेकशील हो, तुम्हारे पास टैलेंट है, तुम और भी शिक्षा प्राप्त कर सकती हो, क्यों अपने करियर को बर्बाद करने पर उतारू हो?" उसने कोई उत्तर नहीं दिया केवल मुस्कराकर मेरे कमरे से बाहर निकल गई। 
उसके साथ मेरी दूसरी मुलाक़ात बाईस वर्ष बाद हुई। वही मोहिनी सी सूरत, वही उत्साह, वही उत्सुकता, कुछ भी नहीं बदला था सिवाय इसके कि वह उत्कट कामुकता की अभ्यस्त हो चुकी थी। मानसिक असंतोष को दूर करने के लिए वह अपने शरीर का शोषण कर रही थी। इस बार हमें एक दुसरे को निकट से देखने का अवसर मिला। कहने लगी, "काश उस दिन जब मैंने आप को पहली बार देखा था आप विवाहित ना होते....।" उसने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया। हमारी नज़दीकियां इतनी बढ़ गयीं कि हम एक दुसरे की शारीरिक पिपासा को दूर करने की कोशिश करते रहे। अलबत्ता आत्मा फिर भी अपरिचित ही रही।            

Liaison Officer:संपर्क अधिकारी ;لیازن افسر : Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Liaison Officer:संपर्क अधिकारी ;لیازن افسر 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

संपर्क अधिकारी 
स्वामीजी से मेरा परिचय मकान मालिक गोविन्द गोस्वामी ने कराया। वह उसका छोटा भाई था। अर्धांगिनी के स्वर्गवास होने के बाद स्वामीजी ने अपनी बेटी को उसकी नानी के घर छोड़कर सन्यास  लिया था। गोविन्द ने स्वामीजी को बताया कि शिक्षित होने के बावजूद मुझे उपयुक्त नौकरी नहीं मिली है। 
बात चीत के दौरान स्वामीजी ने यह भेद खोला कि उसके शिष्यों में आयात निर्यात से जुड़े कई बड़े अफसर हैं जिनके माध्यम से उसने अपने कई व्यापारी शिष्यों को आयात निर्यात के लाइसेंस दिलवाये। अब वह इस फ़िक्र में है कि बेटी के भविष्य  के लिए स्वयं एक एक्सपोर्ट हाउस खोल ले जिसके लिए उसे एक संपर्क अधिकारी की आवश्यकता होगी। स्वामीजी के अनुसार मुझसे बेहतर बुद्धिमान और शिक्षित युवक कहाँ मिले गा।
मैं उसके प्रस्ताव से तुरंत प्रसन्न हुआ परन्तु थोड़ी देर के बाद मुझे ख्याल आया कि कहीं स्वामीजी मुझे चारा तो नहीं डाल रहा है और बाद में मुझे अपनी बेटी से विवाह करने के लिए मजबूर करेगा। ना जाने कैसी होगी.....? बहुत सोच विचार करके मैंने उत्तर दिया। "वास्तव में  स्वामीजी मैं केवल शिक्षक की नौकरी का इच्छुक हूँ। बिज़नेस मैनेजर तो इस समय भी हूँ मगर इसमें मुझे कोई रूचि नहीं है।"