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Sunday, March 21, 2021

Ek Aur Inquilab; एक और इन्क्विलाब; ایک اور انقلاب ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Ek Aur Inquilab;एक और इन्क्विलाब;

ایک اور انقلاب 

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

 एक और इन्क्विलाब 


तहरीक ज़ोर पकड़ती जा रही थी। नेता ने जनता की दुखती रग पर हाथ  रख कर ऐलान कर दिया "भाइयो और बहनों! सर्कार ने कंपनियों के साथ साज़ बाज़ करके बिजली की दरों  में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की है। जनता पहले ही से महंगाई की मार झेल रही है। प्याज़, टमाटर, सब्ज़ी सब की कीमतें आसमान को छू रही हैं। बिजली महंगी,पानी महंगा, खाने पीने की चीज़ें महंगी, पेट्रोल, डीज़ल और केरोसिन महंगा, सब कुछ महंगा हो गया है। केवल इंसान सस्ता हो गया है। और सत्ता में बैठे लोग हैं कि घोटालों पर घोटाले किये जा रहे हैं। हम ने कई बार गोहार लगाई मगर उनके कान पर जूँ तक न रेंगी। अब लगता है कि हमें ही कुछ करना पड़ेगा।

"ज़रूर, ज़रूर हमें ही कुछ करना पड़ेगा। हम सब तैयार हैं।" दर्शकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की। 

"भाइयो और बहनो। आज के बाद कोई भी आदमी बिजली का बिल नहीं भरेगा जब तक सर्कार  दाम आधे न कर दे।" 

"इन्किलाब ज़िंदा बाद. ..."भीड़ में से नारे बुलंद होते गए और थोड़ी देर के बाद लोग तितर बितर हो गए। 

महीने भर के बाद बिजली के कर्मचारियों ने गरीब कॉलोनियों में बिजली के कनेक्शन काटना शरू कर दिया। कॉलोनियों में हर तरफ अफरातफरी मच गयी।  इस लिए दोबारा जलसे का आयोजन किया गया।  नेता फिर से गरजने लगा, "भाइयो और बहनो ! हमारे घरों में अँधेरा छा गया है। सर्कार टस से मस नहीं हो रही है। आखिर  कब तक हम सर्कार की उपेक्षा बरदाश्त करेंगे। समय आगया है कि इनको सबक़ सिखाया जाये। यह सब चोर और लुटेरे हैं। कंपनियों के साथ  इनकी मिली भुगत है ये कंपनी वाले हमारा खून चूस कर करोड़ों के मालिक बन चुके हैं जबकि ग़रीबों के घरों में बिजली नहीं है। चूल्हे आग ना घड़े पानी। पानी के बदले आंसू बह रहे हैं। हमने फैसला कर लिया है कि हम सब कॉलोनियों में जाकर खुद  ही बिजली के कनेक्शन जोड़ लेंगे और देखेंगे कि कौन माई का लाल हमें रोकेगा। 

फिर लोग ग़रीब कॉलोनियों में खम्बों पर चढ़ कर बिजली के कनेक्शन जोड़ने लगे। क़ानून की धज्जियां उड़ाई गई। सर्कार तमाशाई बनकर देखती रही क्यूंकि कुछ महीनों के बाद  चुनाव के दौरान इन्हीं बस्तियों में वोट मांगने जाना था। 

चुनाव के बाद इन्किलाब आया। अराजकता का हामी नेता क़ानून तोड़ने वाले संगी साथियों समेत  विधान सभा की कुर्सियों पर बिराजमान होकर नए क़ानून बनाने लगा।  

नए क़ानून।  नए अधिनियम। लेकिन फिर भी अव्यवस्था बरक़रार थी। 

एक बूढ़ा  मज़लूम शहरी, जिसने आज़ादी से पहले कई हसीन सपने देखे थे, अब इस तथाकथित लोकशाही से ही निराश हुआ।  वह अपने दिल में सोचने लगा, "इस देश का तो भगवान् ही रक्षक है।  ना जाने कब फिर कोई नेता इन नए क़ानूनों और अधिनियमों की धज्जियाँ  उड़ाने के लिए सामने आये गा।


 


Wednesday, March 17, 2021

Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की; تلاش اس لمس کی ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की;
تلاش اس لمس کی 
 Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

तलाश उस स्पर्श की 

तुम मुझसे पूछते हो कि मेरी सोच पर हर दम नारी क्यों सवार रहती है ? कारण जानना चाहते हो तो सुनो :
बात यूँ है कि जब मैं छोटा था..... यही कोई बारह तेरह वर्ष का...... पड़ोस में मेरा एक दोस्त रहता था।  एक रोज़ मैं किसी काम से उस के घर चला गया। कोई रोक टोक तो थी नहीं।  सीधे घर के अंदर चला गया।  
उसकी मां नहा धोकर मैक्सी पहने नीम नगण हालत में अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने श्रृंगार कर रही थी। उसके चेहरे पर अजीब सी चमक और शरीर में चुंबकीय आक्रषण नज़र आ रहा था।  मुझे देखते ही उसकी आँखें खुमार से भर गयी जैसे वह मेरा ही इंतिज़ार कर रही हो। उस ने मुझे सोफे पर बिठाया और धीरे धीरे अपनी मोहब्बतों की वर्षा करने लगी। मैं वशीभूत उसके हर यत्न को सम्मोहित वस्तु की तरह झेलता रहा और आनंदित होता रहा। उसके बदन का वो स्पर्श मेरे लिए एक नया और कोरा तजरुबा था जो मेरे रोम रोम में फैल गया। फिर यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा।  वह जब चाहती मुझे हुकुम देती और अपने क़ाबू में  कर लेती। मैं एक बंधुआ मज़दूर की तरह उसकी हर इच्छा पूरी कर लेता।  उसके विपरीत जब मेरी भावनाएं उत्तेजित हो जाती मैं उनको व्यक्त करने में असमर्थ होता क्यूंकि वह मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी।  उस वक़्त मुझे  उसके पास जाने में भी डर लगता था। मेरे लिए आत्म संतुष्टि के सिवा और कोई चारा न था ।  
उसके बाद मेरी ज़िन्दगी में असंख्य औरतें आईं मगर जो तृष्णा वह छोड़ कर चली गयी थी आज तक न मिट सकी।
वास्तव में वह तृष्णा मेरे व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा बन कर रह गयी है। मैं हर समय उस प्रबल कामना को  मिटाने  के लिए बेकरार  रहता हूँ और  हर औरत में उस स्पर्श को तलाशने की कोशिश करता हूँ।     


 

Tuesday, March 16, 2021

Kis Ko Dosh Dun!; किस को दोष दूँ !;!کس کو دوش دوں ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Kis Ko Dosh Dun!; किस को दोष दूँ !
!کس کو دوش دوں 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

किस को दोष दूँ ! 

वह बस में सफर कर रहा था और अपनी क़िस्मत पर चिंतित था। 
पोस्ट ग्रेजुएशन में कम नंबर आने के कारण उससे दो साल से नौकरी नहीं  मिल रही थी। वह किसी और  को नहीं परन्तु अपने आपको ही ज़िम्मेदार मानता था।
दुसरे दिन  उस ने अपने दोस्त को चिठ्ठी लिखी जिसका सार नीचे दे रहा हूँ। 
"यार तुम लोग भाग्यशाली हो। अपनी गलतियों को भगवन के सिर मढ़ते हो   और सोचते हो कि जो हुआ उस की इच्छा से हुआ। मगर मैं तो नास्तिक हूँ। भगवान् के अस्तित्व को नकारता हूँ।  इसलिए सभी मामलों में अपने आप को ही दोषी ठहराता हूँ।  मुझे अपनी पीड़ा बाँटने का  कोई तरीका नज़र नहीं आ रहा है।"


 

Thursday, March 11, 2021

Secularism; सेकुलरिज्म; سیکولر ازم ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Secularism; सेकुलरिज्म; سیکولر ازم 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

सेकुलरिज्म  

सेकुलरिज्म का अर्थ समझाते हुए पिता जी ने अपने बेटे से कहा, "बेटे, सेकुलरिज्म का अर्थ  होता है हर धर्म का समान आदर करना। हमारा देश एक महान सेक्युलर देश है।
बेटे को यह बात हज़म नहीं हुई। बोला, "यह कैसे संभव हो सकता है? हर  धर्म के साथ एक जैसा बर्ताव करना मुमकिन नहीं। पापा, देश के नेता जब बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स का उद्धाटन करते हैं वहां हिन्दू रीति रिवाज से पूजा होती है और नारियल फोड़े जाते हैं।  गाँधी जी अपनी हर सभा का आरंभ राम धुन  से करते थे। किसी दुसरे धर्म  के पाठ  से क्यों नहीं ? क्या इस तरह दुसरे धर्मों की अनदेखी नहीं होती है? बेहतर यह होगा कि धर्म और सरकार को एक दुसरे से अलग रखा जाये। दोनों का अंतमिश्रण देश के लिए लाभदायक नहीं है।"
"यह तो कोई बात नहीं रही, जब दिल में इज़्ज़त हो तो इन चीज़ों से कुछ नहीं होता।"
"पापा ऐसा मुमकिन ही नहीं। सरकार के साथ इंसान का रिश्ता समाजी और आर्थिक होता है जबकि धर्म  इंसान का निजी मामला है जो उस  का  आध्यात्मिक मार्गदर्शन करता है। दोनों के आपसी प्रभाव से देश का भला नहीं  हो सकता।"

 

Monday, March 1, 2021

Uryan Tasweerein;अश्लील चित्र;عریاں تصویریں ; Ministory;लघु कहानी ;افسانچے

Uryan Tasweerein;अश्लील चित्र;عریاں تصویریں 
Ministory;लघु कहानी ;افسانچے 

अश्लील चित्र 

मुझे याद है कि जिन दिनों मैं दसवीं श्रेणी में पढ़ता था मेरे पिता जी मुझे चित्रों की नुमाइश दिखाने ले गए। वहां चित्रकार ने कई नग्न चित्रों की नुमाइश की थी। मैं बड़े उत्साह से इन चित्रों को दिखने लगा लेकिन पिता जी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे जल्दी वहां से बाहर निकाल दिया। मेरी जिज्ञासा की यह स्थिति थी कि मैं मुड़-मुड़ कर चित्रों की ओर देखता रहा। 
अब तो खैर ज़माना ही बदल चूका है। 
कुछ दिन पहले की बात है कि मैं और मेरा बेटा, जो कंप्यूटर इंजीनियर है, अपने अपने शयन कक्ष में इंटरनेट पर ब्राउज़िंग कर रहे थे। मैं कुछ पोर्नो साइट्स का आनंद ले रहा था कि देखते ही देखते मेरे कंप्यूटर पर वायरस का हमला हुआ और मॉनिटर के स्क्रीन पर एक अश्लील चित्र स्थायी रूप से चिपक गया। लाख कोशिश करने के बावजूद वह चित्र स्क्रीन से नहीं हट रहा था।  
कई दिन मैं ने उस चित्र को हटाने की कोशिश की मगर असफल रहा। अंततः अपने बेटे को बुलाया और नज़रें झुका कर उससे कहने लगा, "बेटे मालूम नहीं मेरे कंप्यूटर पर कैसे एक गन्दी सी तस्वीर चिपक गई है और अब हटती ही नहीं है।"
बेटे ने गंभीरता से कंप्यूटर का निरीक्षण किया। क़रीब आधे घंटे तक वह कंप्यूटर के सारे प्रोग्राम डिलीट करता रहा और उस के बाद कंप्यूटर में नया सॉफ्टवेयर डाल दिया। फिर होंठों पर मुस्कराहट लिए और ऑंखें झुकाये हुए मुझ से संबोधित हुआ, "पापा, इन साइट्स पर मत जाया करो, वायरल अटैक होने की संभावना होती है।"
मुझे ऐसा लगा कि बचपन में जिस तरह पिता जी ने मुझे एक्ज़िबिशन से बहार निकाला था आज फिर उसी तरह मेरे बेटे ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे इस अश्लीलता की दुनिया से बाहर निकाल दिया।         

 

Thursday, February 25, 2021

Jaali Sazi;जाली साज़ी;جالی سازی ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Jaali Sazi;जाली साज़ी;جالی سازی 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

जाली साज़ी 

बरैली में हमारे पड़ोस में एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर रहता था। उसकी दिल्ली तमन्ना थी कि उसके बच्चे एम् बी बी एस करके डॉक्टर बन जाएं। जवानी में ही उसकी मृत्यु हो गयी मगर मरने से पहले उसने अपनी ग्रहस्ती पत्नी को अपनी अभिलाषा से अवगत किया। आज्ञाकारी पत्नी ने वंशागत संपत्ति से तीनों बच्चों को डाक्टरी शिक्षा दिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
बड़ी लड़की डॉक्टर बनकर शाहजहांपुर के गवर्नमेंट हॉस्पिटल में नियुक्त हुई। हर दिन आते-जाते रेल गाडी में धक्के खाती रहती। दूसरी लड़की ने कमाने का अनोखा ढंग अपना लिया। घर में ही क्लिनिक खोला और हर महीने दो-तीन अवैध गर्भपात निपटा लेती। अपनी बहन से कई गुना अधिक कमाई करके वह कभी-कभी उसको चिढ़ाती भी थी।  
उधर भाई लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर रहा था लेकिन वीक-एंड्स पर हर शनिवार को घर आ जाता। घर में उसने स्टील तार की जाली बनाने के लूम लगाए थे और शिक्षा से ज़्यादा बिज़नेस में दिलचस्पी लेता था। मुझे यूँ महसूस हो रहा था कि तीनों में से किसी को डॉक्टरी के साथ रुचि नहीं है। उन्होंने केवल मां का दिल रखने के लिए मेडिकल की डिग्री ले ली थी। 
उनको देख कर मुझे वह दिन याद आता था जब योग्यता के बावजूद सिफारिश और पूंजी ना होने के कारण मेडिकल इंटेरन्स टेस्ट में मेरी उपेक्षा की गई थी। पीड़ा ज़्यादा इस बात की होती थी कि जो गरीब विद्यार्थी सुच-मुच इस व्यवसाय से अत्यन्त प्रेम करते हैं उन्हें कॉलेज में सीटें नहीं मिलतीं और जिन्हें दौलत की वजह से ज़ोर-ज़बरदस्ती शिक्षा दिलाई जाती है वह उस की क़द्र नहीं करते। 

 

Wednesday, February 24, 2021

Chowkidari; चौकीदारी; چوکیداری ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Chowkidari; चौकीदारी; چوکیداری 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

चौकीदारी 

मेरे पास फाइल आई तो सबसे ऊपर अन्वेषण रिपोर्ट थी। रिपोर्ट एक डाकखाने में सेंधमारी के बारे में थी। तिजोरी से तीस हज़ार और कुछ दस्तावेज़ ग़ायब थे। ऍफ़ आई आर दर्ज की गयी थी मगर पुलिस ने 'अन ट्रेसड' कह कर केस बंद कर दिया।  
विभागीय जाँच में भी चोर का कोई पता नहीं चला अलबत्ता यह कहा गया कि चोरी डाकपाल की लापरवाही के कारण हुई। वह अगर शनिवार को डाकखाना बंद करने के बाद अपने बाल-बच्चों से मिलने बीस किलोमीटर दूर अपने पैतृक गांव ना गया होता और डाकखाने के ऊपर अलॉट हुए मकान में मौजूद होता तो यह चोरी असंभव थी। 
वास्तव में जाँच करने वाले ने डाकपाल को क़ुरबानी का बकरा बना लिया था ताकि उससे कम से कम वह धनराशि वसूल की जाए जो तिजोरी से ग़ायब हो चुकी थी। इसलिए उसने तीस हज़ार की रक़म पोस्टमॉस्टर से वसूल करने की सिफारिश की थी। 
रिपोर्ट पढ़कर मुझे हंसी आ गई। वह अकेला डाकपाल नहीं था जिसके साथ यह नाइंसाफ़ी हो रही थी  बल्कि विभाग में अक्सर ऐसे केसिज़ होते हैं जहाँ बेक़सूर लोगों से अनावश्यक रूप से रक़म वसूल की जाती है। पोस्टमॉस्टर ना हुआ बल्कि चौकीदार होगया। मैंने फाइल पर अपना नोट यूँ लिखा:
"अंग्रेज़ों के ज़माने में पोस्टमॉस्टर को संलग्न मकान इस लिए नहीं दिया जाता था कि वह डाकखाने की चौकीदारी करे बल्कि इसलिए दिया जाता था ताकि वह चौबीस घंटे सर्कार के आवश्यक तार ले सके और उन्हें शीघ्र बाँट सके। उन दिनों तार ही संचार का सबसे तेज़ माध्यम होता था। स्वतंत्रता के बाद हम ने डाकपालों को चौकीदार बना लिया है। मैं नहीं समझता कि पोस्टमॉस्टर के कर्तव्य में यह कहीं दर्ज है कि वह डाक खाने की चौकीदारी भी करे। इसलिए मैं इस सिफारिश को अस्वीकार करता हूँ।"
मातहत मुलाज़िम मेरा हुक्म पढ़कर आश्चर्य में पड़ गए क्यूंकि इससे पहले 
किसी अफसर ने इस मानसिक लक्ष्मण रेखा को पार करने की कोशिश नहीं  की थी।     


 

Ghair Rasmi Tarbiyat;अनौपचारिक प्रशिक्षण;غیر رسمی تربیت;Ministory;लघु कहानी ;افسانچہ

Ghair Rasmi Tarbiyat;अनौपचारिक प्रशिक्षण
غیر رسمی تربیت 
Ministory;लघु कहानी ;افسانچہ 

अनौपचारिक प्रशिक्षण 

पत्नी और पांच बच्चों को बेसहारा छोड़कर वो सड़क दुर्घटना में युवावस्था में ही मर गया। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ने उसके बड़े बेटे को, जो व्यस्क था ना मेट्रिक पास, उसक्वे स्थान पर रिआयती तौर पर क्लर्क नियुक्त किया। उसकी दुर्दशा पर तरस खाकर सेक्शन सुपरवाइजर ने भी बड़े परिश्रम, अनुकंपा और वात्सल्य से उसको कई वर्ष तक अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया ताकि वह अच्छा क्लर्क बन सके। इसी दौरान वह मैनेजिंग डायरेक्टर की नज़रों में समा गया। लड़का मेहनती था और उसकी सब से बड़ी खूबी यह थी कि दुनिया इधर की उधर हो जाए मगर वह अपने मुंह से कोई गोपनीय बात प्रकट नहीं करता था। फलस्वरूप उसको ऐसी ज़िम्मेदारियां सौंपी गईं जिन में गोपनीयता की आवश्यकता थी। लड़के ने भी नमक का हक़ बड़ी ईमानदारी से अदा किया। देखते ही देखते कई प्रमोशन मिले और वह अफसर बन गया। 
एक दिन मैंने सुपरवाइजर के कमरे में प्रवेश किया। वह बहुत ही उदास लग रहा था। कारण पुछा तो कहने लगा, "यहाँ तो अब दम घुटने लगा है। कल का यह अनपढ़ छोकरा जिसको हाथ पकड़ कर मैंने काम सिखाया आज मेरा ही अफसर बन चुका है और मुझ पर हुकुम चलाता है।"
उसके आंतरिक द्वंद्व का अंदाज़ा लगाना कठिन न था। मैंने मुस्कराते हुए प्रश्न पूछा, "एक कश्मीरी कहावत है, 'अथि हावुन गव अथि ख्यावुन' अर्थात हाथ दिखाना यानी हुनर सिखाना अपने हाथ कटवाने के बराबर होता है।" क्या उसको हाथ पकड़ कर प्रशिक्षण देना आपके आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल था?"
वह मुझे टुकुर-टुकुर देखने लगा। "नहीं भाई, मैंने सोचा कि उसको कुछ भी नहीं आता है भविष्य में संकट में पड़ जाएगा।"
"इसलिए आप ने काम के सभी गुर सिखा दिये मतलब अपने पांव पर स्वयं  ही कुल्हाड़ी मार दी। है ना....? जबकि यह काम आपका नहीं था। अब भुगतो इसका फल। फिर परेशान किस बात पर हो रहे हो?"               


 

Tuesday, February 23, 2021

Nazrana; नज़राना ; نذرانہ ;Ministory ; लघु कहानी ;افسانچہ

Nazrana; नज़राना ; نذرانہ  
Ministory ; लघु कहानी ;افسانچہ 

नज़राना 

यह उन दिनों की बात है जब मैं सीनियर सुपरिंटेंडेंट पोस्ट ऑफिसिज़ था। एक मुख्य डाकखाने का निरीक्षण करते समय वहां के कर्मचारियों ने शिकायत की कि उनकी संख्या के हिसाब से ऑफिस में जगह कम पड़  रही है और मालिक मकान दो और कमरे देने को तैयार है यदि उस का किराया बढ़ाया जाये। मैंने इस बारे में मकान मालिक से बात की मगर वापस हेड क्वार्टर आकर भूल गया। छे महीने बाद दोबारा निरीक्षण के लिए जाना पड़ा और मकान मालिक से फिर इसी बात को लेकर सामना हुआ। मकान मालिक को संदेह ही नही बल्कि विश्वास हो गया कि मैंने काम मैं इसलिए टालमटोल किया क्यूंकि उसने मुझे मेरा हिस्सा नहीं पहुँचाया हालाँकि विलंब का कारण मेरी निजी परेशानियां थीं। 
दुसरे दिन मकान मालिक, जो स्थानीय हाईकोर्ट में जज था, मेरे घर पर आ धमका। बैठा और मेरे साथ इस सन्दर्भ में बातचीत कर ली। फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कर एक लिफ़ाफ़ा निकाला और मुझे पेश करने की कोशिश की।  लिफ़ाफ़े में रुपयों का बंडल साफ़ नज़र आ रहा था। 
"यह क्या है?" मैंने देखते ही प्रश्न किया। 
"सर, कुछ नहीं, मेरी तरफ से तुच्छ सा नज़राना है।" उसने खिस्यानी सी हंसी हंस कर उत्तर दिया। 
इतने समय में मेरी पत्नी चाय लेकर अंदर आई। मैंने उसे दरवाज़े पर ही  रोक लिया। "नहीं चाय वापस ले जाओ। ही डज़ नॉट डिज़र्व टी ऑफ़ मय हाउस।"
वह हैरान हो गई क्यूंकि थोड़ी देर पहले मैंने उससे कहा था कि मेहमान हाईकोर्ट का जज है इसलिए अच्छी सी चाय बना कर ले आना। जज साहब अचंभे में पड़ गया कि यह क्या हो रहा है। कहने लगा, "सर आप बुरा मान गए।"
"बुरा मानने की ही तो बात है। आपने  मुंह पर तमांचा मार दिया। आपको शायद यह ख्याल है कि आप जज हैं इसलिए किसी का भी अपमान कर सकते हैं। मगर आप यह नहीं जानते हैं कि मैं किस इलाक़े में पला बड़ा हूँ। मैं आप की ऐसी दुर्गत करों गा कि कोर्ट में दरख्वास्त देने के योग्य भी नहीं रहेंगे।" मेरे गुस्से ने सीमाएं पार कर दीं। 
वह समझ गया। लिफ़ाफ़ा जेब में वापस रख लिया और बहुत ही सौम्यता से माफ़ी मांग ली। "सर,मैं बहुत शर्मिंदा हूँ और आप से क्षमा चाहता हूँ।"
मैंने भी अपने स्वर में नरमी लाकर कह दिया, "कम से कम यहाँ आने से  पहले किसी से मेरे बारे में पुछ तो लिया होता कि मैं घूस लेता हूँ या नहीं।" 
"सर आज तक जितने अफसरों से वास्ता पड़ा सभी ने यही कहा कि वह सत्यवादी हैं मगर रुपये के बग़ैर कभी किसी ने काम नहीं किया। अब आप ही बताईए कि किसी के माथे पर यह तो नहीं लिखा होता है कि वह भ्रष्ट है या नहीं।"
उस का उत्तर सुन कर मेरा गुस्सा ठंडा पड़ गया और मैंने अपनी पत्नी को दोबारा चाय लाने के लिए आवाज़ लगाई।                 


 

Insaaf; न्याय ; انصاف ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Insaaf; न्याय ; انصاف 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

न्याय 

क्लास में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर ने विद्यार्थियों से पूछा, "क्या तुम बता सकते हो कि 'न्याय' क्या होता है?"
सारी कक्षा में सनसनी सी फैल गई। विद्यार्थी एक दुसरे को प्रश्नात्मक नज़रों से देखने लगे मगर कोई कुछ भी न कह पा रहा था। केवल कानाफूसी हो रही थी। 
इतनी देर में आखरी बेंच पर बैठा एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उत्तर देने लगा, "सर न्याय वह होता है जो राजा को आनंदित करे और  प्रजा को   तुष्टिकरण करके शांत करे।"  

 

Monday, February 22, 2021

Heart Specialist; ह्रदय विशेषज्ञ;ہارٹ اسپیشلسٹ ; Ministory;लघु कहानी; افسانچہ

Heart Specialist; ह्रदय विशेषज्ञ;ہارٹ اسپیشلسٹ  
Ministory;लघु कहानी; افسانچہ 

ह्रदय विशेषज्ञ 

सिक्योरिटी के कारण मेरे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा था मगर ह्रदय रोग परेशान कर रहा था। एक मातहत डाकपाल ने बड़ी सावधानी के साथ शहर के प्रसिद्ध ह्रदय विशेषज्ञ डॉक्टर जमील अहमद से मेरे लिए अपॉइंटमेंट ली। डॉक्टर साहब हर रविवार को अपने निवास पर गरीब लोगों का मुफ्त इलाज करता था ताकि उसके खाते में पुण्य एकत्रित हो जाएँ। मुझको भी रविवार को ही ग्यारह बजे का समय दिया गया। 
डॉक्टर साहब ने मेरे टेस्ट रिपोर्ट देख लिए, फिर मेरी जाँच कर ली और उसके बाद एक के बाद एक बारह दवाईयों के नाम लिखे। मैं साँस रोके उसकी चलती हुई उँगलियों को देखता रहा। मुझे सामने बैठे हुए बीसियों रोगियों पर तरस आ रहा था। इसलिए मैं वहां से भागना चाहता था। डॉक्टर साहब ने नुस्खा मेरी और बढ़ाया। मैं नुस्खा पकड़ कर उठने ही वाला था कि उसने दुबारा नुस्खा मेरे हाथ से छीन लिया और कहने लगा, "सॉरी मैं एक दवाई लिखना भूल ही गया। यह ह्रदय रोग के लिए अत्यंत आवश्यक है।" फिर उसने एक के बदले दो दवाईयां लिख कर नुस्खा लौटा दिया और मैं जल्दी-जल्दी वहां से निकल गया। 
गेट से बाहर निकलते ही मेरा मातहत सांत्वना देने के लिए कहने लगा, "सर डॉक्टर जमील बहुत ही नेक और धर्मात्मा मनुष्य हैं। आपने देखा होगा कि जो लोग वहां बैठे थे उन सब का इलाज मुफ्त करता है।" 
मैंने उसका दिल रखने के लिए खामोश रहना ही उचित समझा लेकिन उसने फिर अपनी बात को आगे बढ़ाया। "सर आप को कैसा लगा? लोग तो उस की बहुत प्रशंसा करते हैं।"
अब मुझ से रहा ना गया। बोला, "भाई उसने चौदह दवाईयां लिख दी हैं, एक न एक तो काम कर ही ले गी। खैर बात दवाईयों की नहीं है। उसको फीस लेने की जरूरत ही क्या है? इन दवाईयों की क़ीमत तीन-चार हज़ार से कम न होगी। तीन-चार सौ तो कमीशन बन ही जाएगा। यह तो शुक्र है कि टेस्ट पहले ही करवा चुका था वरना ना जाने कौन कौन से टेस्ट लिख देता और उस का कमीशन अलग बन जाता। वास्तव में मिलिटेंसी के कारण सभी अच्छे डॉक्टर घाटी छोड़ कर दूसरे स्थानों पर पलायन कर चुके हैं और यह डॉक्टर इन बेचारे गरीब लोगों को बेवक़ूफ़ बना रहा है।"              


 

Alzheimers:अल्झाइमर रोग; ایلزائمرس ; Ministory;लघु कहानी; افسانچہ

Alzheimers:अल्झाइमर रोग; ایلزائمرس  

Ministory;लघु कहानी; افسانچہ 

अल्झाइमर रोग 

मैं गाश लाल की खबर मोबाइल से समय-समय पर लेता था क्यूंकि वह मेरे घनिष्ट मित्र के पिता थे। एक दिन उसने अपना दुखड़ा सुनते हुए कहा, "मेरे बेटे ने मेरी आवाजाही पर रोक लगाई है। बेटा और बहु दोनों घर में ताला लगा कर चले जाते हैं।"

मुझ से रहा ना गया और तुरंत मित्र से संपर्क कर लिया। उसने उत्तर देते हुए कहा, "भाई यह मुंबई नगर है। मैं और मेरी पत्नी दिन में काम करने जाते हैं। पिता जी को अल्झाइमर रोग के कारण कुछ भी याद नहीं रहता। वह कभी कभार हमें भी पहचान नहीं पाते। भगवान न करे अगर वह कहीं बाहर सड़क पर निकल गए और किसी गाड़ी के नीचे आ गए या फिर कहीं दूर चले गए तो उन्हें वापिस घर कौन लाये गा?"

मोबाइल बंद होते ही मुझे मां की तीस साल पुरानी एक बात याद आ गई। गाश लाल और उस के छोटे भाई में इस बात पर बहुत झगड़ा हुआ था कि उनके बूढ़े और दुर्बल पिता का बोझ कौन उठाये गा? पड़ोसियों की मध्यस्थता के कारण बूढ़े के लिए कमरे के बाहर सीढ़ी के नीचे बनी हुई कोठरी में उससे स्थान दिया गया और दोनों बेटे बारी बारी उस को खाना डाल दिया करते थे। अंततः वह उसी स्थान पर एड़ियां रगड़-रगड़ कर मर  गया था। 

समय का पहिया इतनी जल्दी घूम सकता है किसी ने सोचा भी ना होगा।


      

Sunday, February 21, 2021

Naseehat; परामर्श ;نصیحت ; हिंदी लघु कहानी;اردو افسانچہ ; Ministory.

Naseehat; परामर्श ;نصیحت 
हिंदी लघु कहानी;اردو افسانچہ ; Ministory.

परामर्श 

इंजीनियरिंग की शिक्षा के दौरान कॉलेज ने मेरे पुत्र को मॉडलिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए भेज दिया जहाँ उसे पहला पुरुस्कार मिल गया। परिणामस्वरूप उसपर मॉडलिंग का भूत सवार हो गया। शिक्षा पूरी करते ही वह सिक्स-पैक बॉडी बनाने, रैंप पर चलने और शुद्ध अंग्रेजी बोलने का प्रशिक्षण लेने के लिए मुंबई चला गया। वहां से उसने एक पत्र के माध्यम से मुझे अपनी योजना से अवगत कराया। 
मैं बच्चों के भविष्य के बारे में काफी सावधान रहता हूँ। उन्हें अपनी इच्छा से करियर चुनने की पूरी स्वतंत्रता है। परन्तु उसका यह निर्णय मेरी समझ से परे था क्यूंकि वह बहुत ही बुद्धिमान लड़का था। मैंने उत्तर में यूँ लिखा, "बेटे शायद तुम यह सब कुछ फिल्मों में जाने के लिए कर रहे हो मगर यह समझ लो कि मुंबई वी टी और सेंट्रल पर प्रति दिन कम से कम सौ युवा ट्रेनों से यह सोच कर उतरते हैं कि वह अमिताभ बच्चन की तरह एक दिन बहुत बड़े एक्टर बन जाएं गे। अगर ध्यान से देखो गे तो पिछले चालीस वर्षों में हमें एक ही अमिताभ बच्चन मिला जबकि बाक़ी सब लड़के अपराध से भरी हुई मुंबई की दुनिया में ना जाने कहाँ खो गए।"
कुछ दिनों के बाद मुझे उसका एक पत्र मिला जिस में हाल-चाल के अतिरिक्त यह इबारत दर्ज थी, "पापा, अगर अमिताभ बच्चन के पिता जी ने भी ऐसा ही परामर्श दिया होता तो शायद हमें अमिताभ बच्चन कभी ना मिल पाता।"     

 

Saturday, February 20, 2021

Yadon Ke Saye;यादों के साये;یادوں کے سایے ; افسانچہ ;लघु कहानी; Ministory.

Yadon Ke Saye;यादों के साये;یادوں کے سایے  
افسانچہ ;लघु कहानी; Ministory.

यादों के साये 

"पापा आपने कहा था कि कश्मीर पहुँचते ही आप हमें अपना पैतृक घर दिखाएंगे।" होटल में सामान रखते ही मेरी बेटी ने प्रश्न किया। 
"हाँ क्यों नहीं। पहले नहा-धो लो, लंच करलो फिर चलेंगे। मैंने तस्सली दी। 
"लग-भग चार बजे हम अपने पुरखों का मकान देखने गए। मैं ने टैक्सी ड्राइवर को स्थान के बारे में समझाया लेकिन वह ना जाने किन रास्तों से टैक्सी भगाता रहा जो मैं ने पहले कभी नहीं देखे थे। इसी बीच मेरे मन में भिन्न-भिन्न शंकाएं उत्पन्न हो रही थीं। पलायन किये हुए पचीस वर्ष बीत गए थे। दो चार वर्ष आस लगाए बैठा रहा कि शीघ्र ही वापस जाने का अवसर मिलेगा परन्तु समय के साथ आशाओं के दीप बुझते चले गए और परिणाम स्वरुप मकान बेचना पड़ा। अब क्या मालूम किस हालत में होगा? होगा भी या नहीं? हो सकता है कि खरीदने वाले ने उसकी मरम्मत करवाई हो या फिर गिरा कर नया मकान बनाया हो। 
टैक्सी ड्राइवर ने एक स्थान पर टैक्सी रोक कर कहा, "बाबू जी, उतर जाईये यही वह जगह है जहाँ आप को जाना है।"
मैं हैरानी से अपने इर्द-गिर्द देखने लगा। कोई भी चीज़ देखी भाली नहीं लग रही थी। फिर सामने एक दूकानदार से पुछा, "भाई साहब, यहाँ पर वकीलों का एक बहुत बड़ा मकान सड़क के किनारे होता था।"
"अरे साहब किस ज़माने की बात कर रहे हो वह मकान तो जीर्ण-शीर्ण हो चूका था। उसे तो गिरा दिया गया। यह सामने जो मॉल नज़र आ रहा है उसी ज़मीन पर तो खड़ा है। 
मैं वापस टैक्सी में बैठ गया और ड्राइवर को गाड़ी चलाने के लिए कहा।
मेरी बेटी हैरान थी कि मुझे अचानक क्या हो गया। पूछने लगी. "पापा पूर्वजों का मकान देखे बिना ही जाएं गे क्या?"
मैं अवाक उसे देखता रहा मगर मेरे आँसू मेरे दिल में उठ रहे तूफ़ान की चुगली कर रहे थे।              




 

Friday, April 17, 2020

Insaaf:انصاف ;न्याय ; Afsancha; लघु कहानी ; افسانچہ

Insaaf:انصاف ;न्याय 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

न्याय 

डाक सहायकों की भर्ती  हो रही थी। जिन प्रतियाशियों ने लिखित परीक्षा पास की थी  वह अब मौखिक परीक्षा देने के लिए आए थे। मेरे अलावा दो और साक्षात्कर्ता थे। तीनों मेम्बर बारी बारी प्रश्न पूछ रहे थे और फिर मार्क्स शीट पर उनके प्रदर्शन के हिसाब से नंबर दे रहे थे। 
कुछ समय के बाद एक लड़की की बारी आई। सामान्यतः उसे भी प्रश्न पूछे गए जिनमें से वह कुछ एक के उत्तर दे पाई। इससे पहले कि मैं अवार्ड शीट पर कुछ लिख देता दोनों साक्षात्कर्ता मुझसे संबोधित हुए, "सर यह लड़की हमारे ही डिपार्टमेंट के पोस्ट मास्टर की बेटी है।" वास्तव में वह इशारों में मुझे यह कहना चाहते थे कि इस लड़की को पास करलें, हम तो कर ही रहे हैं। परन्तु मेरी अन्तरात्मा ने मुझे गलत काम करने से रोक लिया। 
सारी रात मैं सो न सका क्यूंकि मेरी चेतना मुझे झिड़कती रही। "तुम्हारी इस कार्यवाही से न्याय बलि चढ़ गया। यह लड़की बाहर जहाँ कहीं भी जाये गी उसे नौकरी इसलिए नहीं मिले गी क्यूंकि वहां सिफारिश या रिश्वत चलती है। चूँकि उसका पिता एक गरीब डाकपाल है वह ना रिश्वत दे सके गा और ना ही  सिफारिश ला सके गा। बेचारी के लिए यह एक अवसर था कि सभी साक्षात्कर्ता  अपने थे परन्तु तुम्हारी ईमानदारी उसके लिए बाधा बन गई।"     

Friday, April 1, 2016

Raftar, Samardar Darakht, Ravan, Andhe ki Lathi, Cigarette:رفتار ؛ثمردار درخت ؛راون؛اندھے کی لاٹھی؛سگریٹ; UrduAfsancheاردو افسانچے ;HindiLaghuKahaniyan हिंदी लघु कहानियां

 Raftar,SamardarDarakht,Ravan,
AndheKiLathi,Cigarette
رفتار ؛ثمردار درخت ؛راون؛اندھے کی لاٹھی؛سگریٹ
UrduAfsancheاردو افسانچے ;
HindiLaghuKahaniyan हिंदी लघु कहानियां 

गति
माया अपनी खिड़की से डामर बिछी सड़क पर घंटों ट्रैफिक की आवाजाही देखना पसंद करती है। बसों, ट्रकों, कारों, मोटर साइकिलों, स्कूटरों और पथिकों का कभी न ख़त्म होने वाला दृश्य उसे बहुत अच्छा लगता है। तेज़ गति से उसको अत्यधिक अभिरुचि है। तेज़ गाड़ी को देखकर वह  ख़ुशी से झूम उठती है। 
कल एक अजीब सी घटना घटी। एक खाली ट्रक दनदनाते हुए, हवा से बातें करते हुए सामने से निकल गया। यह कोई नई बात नहीं थी। प्रायः ट्रक जितना खाली होता है उतनी ही तेज़ गति से दौड़ता है। माया को ट्रक की रफ़्तार देखकर अजीब सा आनंद आ रहा था। वह मन ही मन में ड्राइवर को शाबाशी दे रही थी। "शाबाश तेज़... और तेज़... इससे भी तेज़....!"उस की आँखें ट्रक का पीछा कर रही थीं परन्तु होंठ सिले हुए थे। 
एक मनुष्य जो फूँक-फूँक कर क़दम उठाने  का आदी है बहुत समय से ट्रैफिक के कम होने के इंतज़ार में सड़क की एक तरफ खड़ा था। ट्रैफिक की आवाजाही को देख कर वह सड़क पार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। 
ट्रक अभी ज़्यादा दूर नहीं जा चूका था कि टायर घिसटने की ज़ोरदार आवाज़ आई और ऐसा लगा कि ट्रक के पहियों को तेज़ी से रोकने की कोशिश की गई हो। पहियों के नीचे एक दरिद्र और अनाश्रित बूढा, जिसने ज़िन्दगी में कभी गलती से भी कोई नियम तोड़ने की कोशिश नहीं की थी, कुचला जा चूका था। आज भी वह सावधानी से दाएं-बाएं देखकर ज़ेबरा क्रासिंग पर सड़क पार कर रहा था कि ना जाने कहाँ से ट्रक प्रकट हुआ। देखते ही देखते उसके शरीर से रक्त का फव्वारा फूट पड़ा और सड़क पर फैलता चला गया। 
पुलिस ने घटना की जगह पर ट्रक ड्राइवर बलदेव सिंह और ट्रक मालिक सेठ दौलत राम के नाम ऍफ़ आई आर दर्ज की। 

फलदार वृक्ष
  
हाजी सन्नाउल्लाह अपने सेबों के बागों के बीचों बीच जा रहा था कि अनवर दौड़कर उसके पास आया और फिर उसके साथ हो लिया। पेड़ फलों से लद्दे हुए थे। हाजी साहब ने उनकी ओर इशारा करते हुए अपने पुत्र को मार्गदर्शन हेतु कहा, " अनवर बेटे, देखो इन फलों से भरे हुए पेड़ों को, इन सब की शाखाएं धरती की और झुकी हुई हैं। पेड़ पर जितना अधिक फल होता है उतना ही वह झुक जाता है। हमें इस से सीख लेना चाहिए।"
अनवर थोड़ी देर चुप रहा किन्तु फिर उसे रहा न गया। "अबू जान, आपका अवलोकन अनुचित है। यह अनिवार्य नहीं है कि फलों से भरा हुआ हर वृक्ष झुका हुआ हो। आप हाल ही में हज करने गए थे क्या आपने वहां खजूर  के पेड़ नहीं देखे? सुपारी, नारियल और केले के पेड़ों के बारे में सुना तो होगा अगर देखा ना हो। सब स्तम्भ के समान उगते हैं, कहीं कोई शाखा नहीं होती और इन के सीधे तने के ठीक ऊपरी सिरे पर भारी भरकम फल लगते हैं। यह सच है कि सेब, नाशपाती, चेरी और आड़ू आदि की शाखाएं फलों के बोझ से झुकी रहती हैं मगर यह निष्कर्ष सभी वृक्षों पर लागू नहीं होता।" 
बेटे का उत्तर सुन कर हाजी साहब अवाक् हो गए।

रावण
 
दशहरे की रात मैं और मेरा बेटा राम लीला मैदान में रावण के पुतले को जलता छोड़ कर वापस अपने घर लौट रहे थे कि मेरे बेटे ने मुझे संबोधित किया, "पापा इस रावण का दहन क्यों किया जाता है?"
"बेटे रावण एक राक्षस था जिसने भगवान श्रीराम की निर्मल और सौम्य पत्नी सीता जी का अपहरण किया था। सीता जी को वापस पाने के लिए राम जी ने उसकी लंका ढहा दी और उसको मार डाला।"
"वह तो एक बार हो गया पर हम हर वर्ष रावण के पुतले को क्यों जलाते हैं। क्या वह हर वर्ष दोबारा जन्म लेता है?" वह भोलेपन से पूछने लगा मगर मुझे यूँ लगा कि उसकी बात में बड़ा वज़न है। 
मैं असमंजस में पड़ गया। वास्तविकता तो यही है कि दहन के बाद रावण  हर वर्ष फ़ीनिक्स पक्षी की मानिन्द दुबारा जन्म लेता है और हमें उसको फिर से अग्नि को अर्पण करना पड़ता है। मगर यह बात मैं अपने बेटे को कैसे समझाता इसलिए मैंने बात काटते हुए उत्तर दिया, "बेटे यह त्यौहार हर वर्ष हम इसलिए मनाते हैं ताकि हमें यह याद रहे कि बुराई की हमेशा हार होती है और अच्छाई की जीत।" 
फिर दोनों चुप-चाप चलते रहे परन्तु मैं सोचने लगा कि इस सांकेतिक अभिव्यक्ति से भी कौनसा फ़र्क़ पड़ता है। हम लोग हर वर्ष मनोरंजन के लिए यह तमाशा करते हैं मगर अपने अंदर के रावण को कौन जलाता है।

अंधे की लाठी 

सिराजुद्दीन ने पीo एचo डीo के लिए अपने अनुसन्धान का विषय 'तवाइफ़ का पेशा - कारण और रोकथाम' चुन लिया। कई वेश्यालयों की खाक छानी और कई वारांगनाओं का साक्षात्कार लिया। इनमें से एक वैश्या के साथ हुई बात-चीत काफी महत्वपूर्ण थी। उसे यहाँ नक़ल कर रहा हूँ। 
"इस पेशे में आने का क्या कारण था?" सिराजुद्दीन ने प्रश्न किया। 
सकीना हंस दी और फिर कहने लगी, "एक कारण यह था की मैं एक गरीब  किसान की बेटी थी। दूसरा कारण यह था की तीन साल लगातार हमारी धरती वर्षा की बूंदों के लिए तरस गई और मेरे अबू क़र्ज़ में डूब गए। हिम्मत हार कर उन्होंने आत्महत्या कर ली। माँ ने चार बच्चों का बीड़ा उठा लिया। पहले घर-घर काम शरू किया और फिर जिस्मफरोशी के दलदल में फँस गई। तीनों बेटे एक एक करके माँ को छोड़ कर शहर की भीड़ में ना जाने कहाँ खो गए। माँ की हालत पर तरस खा कर मैंने एक दलाल से पांच हज़ार लेकर माँ को दे दिए और स्वयं इस शहर में अम्माँ के हाँ शरण ली। 
"घर की याद नहीं आती?"
"वहां रखा ही क्या है। क़र्ज़ा उतारने के लिए ज़मीन बिक गई। बेटे जिनके लिए मन्नतें मांगी गई थीं वह ग़ायब हो गए। अब बूढी माँ बची थी सौ उसको हाल ही में यहाँ लेकर आगयी। 
सिराजुद्दीन सोच में पड़ गया कि माता-पिता बेटों के लिए मन्नतें क्यों मांगते हैं।
 
सिगरेट
 
आम पत्नियूं की तरह मेरी पत्नी ने भी विवाह के कुछ दिन बाद ही मुझ पर शासन करने की ठान ली। कहने लगी, "आप यह सिगरेट पीना छोड़ दीजिये, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। मुझे उसके रोबदार स्वर से इतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना इस बात पर कि विवाह से पूर्व हमारा मुआशिक़ा करीब पांच साल चलता रहा और हम कई बार किसी बाग़ या रेस्टोरेंट में मिलते रहे। बातों-बातों में मैं उसके सामने दो-तीन सिगरेट फूँका करता था। उसने कभी भी मुझे सिगरेट पीने पर नहीं टोका। इसके विपरीत वह मेरे सिगरेट पीने को सराहती और उसमें भी रोमांस तलाश करती। अगर मेरी याददाश्त मुझे धोका नहीं दे रही है उसने खुद भी कई बार मेरे हाथ से सिगरेट छीन कर दो चार कश लगाए और फिर कुछ देर खांसती रही।
खैर मैंने थोड़ी देर सोच कर उत्तर दिया, "तुम्हें मालूम है कि मैं दस साल का था जबसे मैं सिगरेट पी रहा हूँ जबकि तुम पांच साल पहले मेरी ज़िन्दगी में आई। अगर आज में एक नए दोस्त के कहने पर पुराने दोस्त को छोड़ दूँ तो क्या यह मुमकिन नहीं कि कल मैं किसी और के कहने पर तुम्हें छोड़ दूँ?"
वह मेरी बात का मतलब समझ गई और उसके बाद फिर कभी मुझको सिगरेट छोड़ने को नहीं कहा।                                           











Sunday, May 13, 2012

Zalzala, ز لزلہ : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Katha; افسانچہ

Zalzala, ز لزلہ  : (Urdu/Hindi)
 Afsancha; Laghu Katha; افسانچہ  
भूकंप 


                                            भूकंप
 
कुछ  वर्ष  पहले जब  गणतंत्र  दिवस  के दिन  गुजरात  में  ज़ोरदार  भूकंप आया , कई शहर नष्ट हो गए।   बीसियों  लोग मारे गए , सेंकडों  लोग  लापता हो गए  और लाखों लोगों  के  मकान नष्ट हो गए। कई  इलाके तो  बाहर  की दुनिया से पूरी तरह कट गए।  संचार-व्यवस्था  फिर से बहाल  होने में भी चार पांच  दिन  लग  गए।
अपने स्टाफ  की हिम्मत  बढ़ाने के लिए  मैं तीसरे दिन  ही  कच्छ के ज़िला  बुझ  पहुँच  गया। विभागीय  भवन  और स्टाफ  की  हालत देखकर थोडा बहुत संतोष हुआ परन्तु  हर तरफ बच्चों की चीखें , माँ बाप  के बैन  और  विधवाओं की सिसकियाँ  सुनाई दे रही थीं। 
बाज़ार में चलते चलते एक  दुकान  पर नजर पड़ी जहाँ कुछ  ही समय  पहले यज्ञ  का आयोजन हुआ था। अब सामने सड़क  पर हजारों बेघर  गरीबों  को खाना खिलाया जा रहा था। 
मेरी उत्सुकता को भांप कर  मेरे एक  मातहत कर्मचारी  ने खबर दी , " सर , इस  दुकान  का मालिक  बहुत ही  खुश नसीब  साबित  हुआ।  दो दिन के बाद  उस के दो बच्चे  और पत्नी सही सलामत  मलबे में से  निकाले  गए।  यही कारण  है कि  उस ने भगवान्  का धन्यवाद्  देने के लिए यज्ञ  का आयोजन  किया।"
उस की बात सुन कर मुझ से रहा न  गया। बिना  सोचे समझे  मैंने उत्तर दे दिया , " और  जिन  के  बाल बच्चे  मर गए , उन को क्या करना चाहिए ?"
वह मुझे टुक्कर- टुक्कर  देखने  लगा। उस के पास  मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। 
 

Monday, April 2, 2012

Ever Ready, ایور ریڈی : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Katha; افسانچہ

Ever Ready, ایور ریڈی :
(Urdu/Hindi)
Afsanacha;Laghu Katha; افسانچہ  


                                                                    एवररेडी 

मैं एवररेडी बैट्री की बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि अपने एक दोस्त की कहानी सुनाने जा रहा हूँ जिस को हम एवररेडी के नाम से बुलाते थे.
मोहले में जब किसी बुज़ुर्ग को दूध, दही, सिगरेट , या तम्बाको की आवश्यकता पड़ती थी वह बिना किसी झिझक के उसे बुलाते थे. गर्मी हो या सर्दी, बारिश हो या बर्फ़बारी , उस ने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया. मैं एवररेडी के इस व्यव्हार से आश्चर्यचकित होजाता. आखिर एक बार पूछ ही बैठा ," यार तुम ने हमारी छवि ही ख़राब कर दी है.जब भी कोई तुम्हें काम के लिए बुलाता है तुम झट से हाज़िर हो जाते हो.आखिर बात क्या है "
"यार तुम से क्या छिपाना . दूध हो या दही, मैं हमेश शाबान गुरू से खरीद लेता हूँ. थोड़ी दूर तो जाना पड़ता है पर वह एक पाऊ की कीमत बाज़ार से दो पैसे कम लगाता है और वह दो पैसे मैं अपने लिए रख लेता हूँ. तम्बाको सिगरेट लाने में भी कुछ ऐसा ही फायदा समझ लो.
मैं ने इसे ज्यादा जानकारी लेना उचित नहीं समझा.अलबता एक दिन उसके पिताजी ने मुझे रास्ते  में रोक लिया और अजीब सी विवशता प्रकट की,"रोशन तुम अपने दोस्त को क्यूँ नहीं समझाते . दो दिन पहले मैं ने उसको महीने का राशन लाने के लिए पचास रुपये दिए थे. कुछ दैर के बाद वह आया और कहने लगा की रुपये मेरी  जेब से न जाने कहाँ गिर गए. फिर मुझे पता चला की वह सुख राम पंसारी से सिगरेट उधार लिया करता था और वह सारा रूपया उसी पंसारी को देकर आगया. मैं उस को कुछ कह नहीं पाता क्यूंकि वह मेरी पहली बीवी का बेटा है. तुम तो उस के करीबी दोस्त हो , शायद तुम्हारी बात मान जाये. बेटे मैं एक गरीब मास्टर हूँ, तीन लड़कियां सर पर सवार हैं. फिर भला बताओ ऐसे खर्चे मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूँ."
अंकल का दिल रखने के लिए मैंने उन्हें झूठी तस्सली दी परन्तु इतना मालूम था की एवररेडी कब किसी की सुनता है.