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Sunday, March 21, 2021

Ek Aur Inquilab; एक और इन्क्विलाब; ایک اور انقلاب ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Ek Aur Inquilab;एक और इन्क्विलाब;

ایک اور انقلاب 

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

 एक और इन्क्विलाब 


तहरीक ज़ोर पकड़ती जा रही थी। नेता ने जनता की दुखती रग पर हाथ  रख कर ऐलान कर दिया "भाइयो और बहनों! सर्कार ने कंपनियों के साथ साज़ बाज़ करके बिजली की दरों  में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की है। जनता पहले ही से महंगाई की मार झेल रही है। प्याज़, टमाटर, सब्ज़ी सब की कीमतें आसमान को छू रही हैं। बिजली महंगी,पानी महंगा, खाने पीने की चीज़ें महंगी, पेट्रोल, डीज़ल और केरोसिन महंगा, सब कुछ महंगा हो गया है। केवल इंसान सस्ता हो गया है। और सत्ता में बैठे लोग हैं कि घोटालों पर घोटाले किये जा रहे हैं। हम ने कई बार गोहार लगाई मगर उनके कान पर जूँ तक न रेंगी। अब लगता है कि हमें ही कुछ करना पड़ेगा।

"ज़रूर, ज़रूर हमें ही कुछ करना पड़ेगा। हम सब तैयार हैं।" दर्शकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की। 

"भाइयो और बहनो। आज के बाद कोई भी आदमी बिजली का बिल नहीं भरेगा जब तक सर्कार  दाम आधे न कर दे।" 

"इन्किलाब ज़िंदा बाद. ..."भीड़ में से नारे बुलंद होते गए और थोड़ी देर के बाद लोग तितर बितर हो गए। 

महीने भर के बाद बिजली के कर्मचारियों ने गरीब कॉलोनियों में बिजली के कनेक्शन काटना शरू कर दिया। कॉलोनियों में हर तरफ अफरातफरी मच गयी।  इस लिए दोबारा जलसे का आयोजन किया गया।  नेता फिर से गरजने लगा, "भाइयो और बहनो ! हमारे घरों में अँधेरा छा गया है। सर्कार टस से मस नहीं हो रही है। आखिर  कब तक हम सर्कार की उपेक्षा बरदाश्त करेंगे। समय आगया है कि इनको सबक़ सिखाया जाये। यह सब चोर और लुटेरे हैं। कंपनियों के साथ  इनकी मिली भुगत है ये कंपनी वाले हमारा खून चूस कर करोड़ों के मालिक बन चुके हैं जबकि ग़रीबों के घरों में बिजली नहीं है। चूल्हे आग ना घड़े पानी। पानी के बदले आंसू बह रहे हैं। हमने फैसला कर लिया है कि हम सब कॉलोनियों में जाकर खुद  ही बिजली के कनेक्शन जोड़ लेंगे और देखेंगे कि कौन माई का लाल हमें रोकेगा। 

फिर लोग ग़रीब कॉलोनियों में खम्बों पर चढ़ कर बिजली के कनेक्शन जोड़ने लगे। क़ानून की धज्जियां उड़ाई गई। सर्कार तमाशाई बनकर देखती रही क्यूंकि कुछ महीनों के बाद  चुनाव के दौरान इन्हीं बस्तियों में वोट मांगने जाना था। 

चुनाव के बाद इन्किलाब आया। अराजकता का हामी नेता क़ानून तोड़ने वाले संगी साथियों समेत  विधान सभा की कुर्सियों पर बिराजमान होकर नए क़ानून बनाने लगा।  

नए क़ानून।  नए अधिनियम। लेकिन फिर भी अव्यवस्था बरक़रार थी। 

एक बूढ़ा  मज़लूम शहरी, जिसने आज़ादी से पहले कई हसीन सपने देखे थे, अब इस तथाकथित लोकशाही से ही निराश हुआ।  वह अपने दिल में सोचने लगा, "इस देश का तो भगवान् ही रक्षक है।  ना जाने कब फिर कोई नेता इन नए क़ानूनों और अधिनियमों की धज्जियाँ  उड़ाने के लिए सामने आये गा।


 


Wednesday, March 10, 2021

Kuch To Log Kahenge;कुछ तो लोग कहेंगे; کچھ تو لوگ کہیں گے ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Kuch To Log Kahenge;कुछ तो लोग कहेंगे
 کچھ تو لوگ کہیں گے 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 
 
कुछ तो लोग कहेंगे  

बहुत बड़ा भ्रष्टाचारी था वह। संपत्ति इकट्ठा करने के तरीक़े काश कोई उससे सीख लेता। 
एक बार उसकी बीवी कैंसर की जानलेवा बीमारी में ग्रस्त हो गई। लाखों रुपए खर्च करके आखिरकार उसकी बीवी की जान बच गई परन्तु पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाई। अब भी उसके इलाज पर हज़ारों रुपए प्रति वर्ष खर्च हो जाते हैं। 
कुछ लोग कहते हैं कि हराम की कमाई थी,गंदे नाले में बह गई। 
कुछ  लोगों का मानना है कि अंततः रुपया ही काम आ गया।  रुपए न होते तो बीवी का बचना मुश्किल था। 
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अगर वह ब्रष्टाचारी न होता तो उसको यह दिन ना देखने पड़ते। 
लोग बहुत कुछ कहते हैं लेकिन उसे मालूम है कि वह बीते हुए कल को वापस नहीं ला सक्ता। 

 

Jantar Mantar; जंत्र मंत्र; جنتر منتر ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Jantar Mantar; जंत्र  मंत्र; جنتر منتر 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

जंत्र  मंत्र 
शारदा की ज़िन्दगी कठिनाईयों की खुली पुस्तक थी। दस बरस की उम्र में शादी हो गई। पति का साथ केवल चार साल रहा। उसके बाद तमाम उम्र तपस्वी ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर हो गई। विधवापन के कारण वह उन क्षणों का मूल्य जानती थी जो पति पत्नी एक साथ हंसी ख़ुशी गुज़ारते हैं। यही कारण था कि उसे उन जोड़ों पर तरस आता था जो बात बात पर आपस में लड़ते झगड़ते थे। वह चाहती थी कि किसी भी स्त्री का वैवाहिक जीवन अस्तव्यस्त ना हो। उत्पीड़ित स्त्रियां उसके पास परामर्श लेने के लिए आतीं और संतुष्ट होकर चली जातीं। 
एक रोज़ एक नव विवाहित महिला ने अपना दुखड़ा सुनाया कि उसकी सास और सुसर उठते बैठते उससे कोसते रहते हैं। शारदा चूल्हे के सामने बैठी ध्यान पूर्वक सुनती रही। उसने चूल्हे में से एक जलती हुई लकड़ी निकाली, उसकी छाल का एक छोटा सा टुकड़ा चाकू से छील लिया, जल रहे सिरे को पानी में डबोया, उसपर दो चार फूँक मार दिए और फिर उस नारी को दे दिया। 
"तुम इससे हमेशा अपने पास रख लेना। जब भी कोई तुम्हारे साथ लड़ने झगड़ने पर उतर आये तुम जल्दी से इस को दांतों तले दबा लेना और तब तक नहीं छोड़ना जब तक सामने वाला मनुष्य शांत ना हो जाये।"
महिला ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चली गई और फिर शारदा की बताए हुए उपाय पर पूरी तरह से अमल करने लगी। समय गुज़रने के साथ साथ उसे एहसास हुआ कि सास सुसर दोनों धीरे धीरे शांत होने लगे हैं और अब घर में लड़ाई झगड़ा नहीं हो रहा है। 
महीने भर के बाद वह धन्यवाद देने के लिए शारदा के पास आई और कहने लगी, "मौसी मैं आपका शुक्रिया करने आई हूँ। आपका वह जंत्र बहुत लाभदायक साबित हुआ।" फिर अपनी जिज्ञासा दूर करने के लिए पूछ बैठी, "मौसी मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप ने ईंधन की मामूली सी लकड़ी में इतनी शक्ति कैसे भर ली कि उसने सारे घर का माहौल ही बदल डाला।"
शारदा ने हलकी सी मुस्कराहट बिखेरते हुए उत्तर दिया। "बेटी मैं कोई जंत्र मंत्र नहीं जानती और ना ही मैं ने उस लकड़ी को दम किया था। इतना समझ लो कि झगडे के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। इनमें से अगर एक पक्ष ख़ामोश रहे तो दूसरा स्वयं ही थक हार कर हथ्यार डाल देता है और फिर लड़ाई खुदबखुद बंद हो जाती है।" 


 

Tuesday, March 9, 2021

Wusat-e-Nazar;विस्तृत अभिज्ञता;وسعت نظر ;Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Wusat-e-Nazar;विस्तृत अभिज्ञता;وسعت نظر  
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

विस्तृत अभिज्ञता 
सीमा पर युद्ध जारी था। 
कप्तान सुरजीत सिंह ने वायरलेस पर अपने कमांडिंग अफसर सुखदेव सिंह
को सूचना दी, "सर, मैं सामने वाली पहाड़ी पर दुश्मन का एक मोर्चा देख रहा हूँ। मुझे जानकारी मिली है कि वहां दुश्मन के केवल दस सिपाही हैं। मैं रात के अँधेरे में अपनी पल्टन के साथ बड़ी आसानी से इस पहाड़ी पर चढाई कर सकता हूँ और दुश्मन का मोर्चा मार सकता हूँ।"
कर्नल साहब ने ऐसा करने से बिलकुल मना कर दिया और अगले आदेश तक यथा स्थिति बनाये रखने को कहा। परिणाम स्वरुप कप्तान सुरजीत सिंह ना केवल निराश हुआ बल्कि अपने कमांडिंग अफसर पर बहुत गुस्सा आया। मन ही मन में सोचने लगा। "यही तो प्रॉब्लम है इन बूढ़े अफसरों के साथ। इन में ना हिम्मत है ना हौसला। वरना क्यों रोक लेता मुझे? ऐसा सुनहरी मौक़ा फिर कभी ना मिले गा।" ज़हर का घूंट पी कर वह खामोश हो गया। 
अगले दिन कर्नल सुखदेव उस के मोर्चे का नीरीक्षण करने आया। कप्तान सुरजीत खिचा खिचा सा लग रहा था और उस के माथे पर शिकनें नज़र आ रही थीं। कर्नल को बात समझ में आ गई। इसलिए पैतृक सहानुभूति से कहने लगा। "बेटे शायद तुम कल की बात पर उदास हो। परन्तु तुम्हें मालूम नहीं कि तुम्हारी नज़र तो केवल एक पहाड़ी पर थी जिस पर तुम विजय प्राप्त करना चाहते थे जबकि मेरी नज़र उसके दाएं बाएं दो और पहाड़ियों पर थी जहाँ दुश्मन की तोपें तुम्हारा इंतज़ार कर रही थीं। अगर तुम अपनी पल्टन ले कर पहाड़ी पर चढ़ भी जाते तो देर सवेर दुश्मन की गोला बारी से सब शहीद हो जाते। मैं व्यर्थ में खून बहाने के हक़ में नहीं हूँ। मैंने इससे पहले भी दो युद्ध लड़े हैं और तुम से अधिक अनुभवी हूँ।"   



 

Sunday, March 7, 2021

Ashirvaad; आशीर्वाद; آشیرباد ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Ashirvaad; आशीर्वाद; آشیرباد 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

आशीर्वाद

मानुषी के वैवाहिक जीवन में दस वर्ष के बाद उस दिन ठहराव आया जब उसकी गोद भर गई। इन दस वर्षों में उसने क्या-क्या जतन नहीं किये। हर दिन प्रातः मंदिर में पूजा पाठ करती, सोमवार को व्रत रखती और अक्सर बड़े बड़े साधु संतों के द्वार पर हाज़िरी देती। एक दिन एक स्वामी जी ने उसको आशीर्वाद दिया, "जा तुम्हें जल्दी ही लड़का पैदा हो जायेगा।" और फिर ऐसा ही हुआ। 
लड़का जवान क्या हुआ कि उसकी शरारतों की खबरें चारों तरफ फैल गईं। शिक्षा छूट गई, लुच्चे लफ़ंगे दोस्त बन गए और छोटे छोटे अपराध करना उस की आदत बन गई। 
तंग आकर मानुषी उसी स्वामी के पास चली गई जिसने पैदा होने से पहले आशीर्वाद दिया था। बोली, "स्वामी जी, आपने उस दिन मुझ पर बहुत कृपा की थी कि आपके आशीर्वाद से मेरी सूनी गोद भर गई। परन्तु इस लड़के ने मेरी नाक में दम कर दिया है। वह तो आवारागर्द और गुंडा बनता जा रहा है।"
"बेटी, तुम ने उस वक़्त लड़का मांग लिया था, सो मैं ने दे दिया। यह तो तुम ने कभी नहीं कहा कि जो बेटा मिल जायेगा वह शिष्ट और कुलीन भी होना चाहिए।"      


 

Friday, March 5, 2021

Puja Ka Chanda;पूजा का दान;پوجا کا چندہ ;Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Puja Ka Chanda;पूजा का दान;پوجا کا چندہ 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

पूजा का दान 

विजय दशमी के दिन थे। मैं अगरतला में आराम से घर पर सो रहा था कि सुबह सवेरे दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने आँखें मूंदते हुए पुछा, "कौन"
"हम हैं सर........दरवाज़ा खोलो। दुर्गा पूजा के लिए दान चाहिए।" बाहर से स्थानीय यूनियन के सेक्रेटरी की आवाज़ सुनाई दी। उसके साथ यूनियन के तीन और सदस्य थे। मैंने दरवाज़ा खोला और उनको ड्राइंग रूम में बिठाया। फिर स्वयं उनके सामने बैठ गया। 
"सर, दुर्गा पूजा के लिए कुछ दान दे दीजिए। इस साल तो हम बहुत बड़ा पंडाल बनवा रहे हैं।"
"कामरेड चटर्जी, तुम तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट हो। इस राज्य की सर्कार भी कम्युनिस्ट है। फिर यह पूजा पंडाल का क्या चक्कर है?" मुझसे पूछे बिना रहा नहीं गया। 
वह खिस्यानी हंसी हंस दिया और फिर एक हज़ार रुपए लेकर चल दिया।  अभी एक घंटा भी न गुज़रा था कि दरवाज़े पर दुबारा दस्तक हुई। अबतक मेरा बेटा भी जाग चुका था। उसने झट से दरवाज़ा खोल दिया। 
"अंकल हैं ? उनसे कह दो कि मोहले में पंडाल बनाने के लिए दान चाहिए।" एक लड़के ने मेरे बेटे को संबोधित करके कहा। 
इस दौरान मैं दरवाज़े के पास आ चूका था। मोहल्ले के पांच छे लड़के रसीद बुक लेकर दरवाज़े के बाहर खड़े थे। 
मैंने पांच सौ रुपए निकाल कर दे दिए और रसीद ले ली। मेरा बेटा हैरानी से मुझे तक रहा था। उसे यक़ीन ही नहीं  हो रहा था कि मैंने पूजा के लिया दान  दे दिया। अंततः पूछ बैठा, "पापा, आप तो नास्तिक हैं। देवी देवताओँ पर यक़ीन ही नहीं करते, फिर इतने सारे रुपये किस लिए दिये?"
"बेटे, यक़ीन तो मैं अब भी नहीं करता पर मनुष्य सामूहिक बाध्यता के सामने कभी विवश हो जाता है। यह मांगने वाले कौन से देवी भक्त हैं। इससे पहले जो चंदा ले गए  कम्युनिस्ट थे और यह जो अभी आए थे वे सब मोहल्ले के आवारा लड़के हैं। अगर दान ना दूँ तो यह लोग किसी ना किसी तरीके से हमें हानि पुहंचायें गे। कुछ नहीं तो तुम लोगों को ही परेशान कर देंगे। इनको भी कहाँ ये सारे रुपए देवी के पंडाल पर खर्च करने हैं। थोड़े बहुत खर्च कर लेंगे, बाक़ी जो रुपए बचेंगे उसकी रात में दारू पियेंगे। देवी देवताओं का  तो बस बहाना है।"      


 

Wednesday, March 3, 2021

Shifa;आरोग्य प्राप्ति;شفا ; Ministory;लघु कहानी; افسانچہ

Shifa;आरोग्य प्राप्ति;شفا 

Ministory;लघु कहानी; افسانچہ 

आरोग्य प्राप्ति 

हे ईश्वर, मुझे माफ़ कर। मैं ग़रीब, दरिद्र और निराश बीमारों से अपनी रोज़ी रोटी कमा लेता हूँ। ये मेरी मजबूरी है क्यूंकि डाक्टरी मेरा व्यवसाय है और जीवन व्यापन के लिए मेरे पास इस के सिवा और कोई साधन नहीं है। किन्तु इस प्राणी की प्रार्थना सुन। मेरे हाथों को आरोग्य प्राप्ति का वरदान दे और मुझे इस योग्य बना कि मैं लालच और लालसा से दूर रहूं और किसी का शोषण ना करों। 
बड़े अक्षरों में लिखे हुए इस लेख पर काला फ्रेम चढ़ा हुआ था और डॉक्टर रहीमुद्दीन की कुर्सी के ठीक पीछे दीवार पर लटक रहा था। यह लेख उसे सदैव याद दिलाता है कि एक डॉक्टर की ज़िन्दगी का उद्देश्य केवल इंसान की सेवा करना है। कई बार रहीमुद्दीन निर्धन रोगियों की फीस भी माफ़ करता है यहाँ तक कि उसने कई बार बेसहारा औरतों को वापस घर जाने के लिए जेब से खर्चा भी दे दिया। 
फलस्वरूप डॉक्टर रहीमुद्दीन का क्लिनिक आज भी वैसा ही है जैसा वह तीस साल पहले था जबकि उसके समकालीन डॉक्टरों ने करोड़ों की जायदादें बनाईं। डॉक्टर रहीमुद्दीन के बच्चे उस को बेवक़ूफ़ और नालायक़ समझते हैं। उस की बीवी की मृत्यु दस साल पहले हुई थी, बेटी विवाह करके ससुराल जा चुकी थी और दोनों बेटे अमेरिका जाकर वहीँ बस चुके हैं। इस के बावजूद वह तनहाई से नहीं घबराता। अस्सी साल की उम्र में भी वह सुबह सवेरे जागता है, मस्जिद जाकर हर रोज़ निमाज़ पढ़ता है और ईश्वर का धन्यवाद करता है। अपने व्यक्तिगत काम स्वयं करता है और क्लिनिक में पूरे दृढ़ निश्चय के साथ दिन भर अपने मरीज़ों के आंसों पोंछता रहता है। 


 

Saturday, February 20, 2021

Yadon Ke Saye;यादों के साये;یادوں کے سایے ; افسانچہ ;लघु कहानी; Ministory.

Yadon Ke Saye;यादों के साये;یادوں کے سایے  
افسانچہ ;लघु कहानी; Ministory.

यादों के साये 

"पापा आपने कहा था कि कश्मीर पहुँचते ही आप हमें अपना पैतृक घर दिखाएंगे।" होटल में सामान रखते ही मेरी बेटी ने प्रश्न किया। 
"हाँ क्यों नहीं। पहले नहा-धो लो, लंच करलो फिर चलेंगे। मैंने तस्सली दी। 
"लग-भग चार बजे हम अपने पुरखों का मकान देखने गए। मैं ने टैक्सी ड्राइवर को स्थान के बारे में समझाया लेकिन वह ना जाने किन रास्तों से टैक्सी भगाता रहा जो मैं ने पहले कभी नहीं देखे थे। इसी बीच मेरे मन में भिन्न-भिन्न शंकाएं उत्पन्न हो रही थीं। पलायन किये हुए पचीस वर्ष बीत गए थे। दो चार वर्ष आस लगाए बैठा रहा कि शीघ्र ही वापस जाने का अवसर मिलेगा परन्तु समय के साथ आशाओं के दीप बुझते चले गए और परिणाम स्वरुप मकान बेचना पड़ा। अब क्या मालूम किस हालत में होगा? होगा भी या नहीं? हो सकता है कि खरीदने वाले ने उसकी मरम्मत करवाई हो या फिर गिरा कर नया मकान बनाया हो। 
टैक्सी ड्राइवर ने एक स्थान पर टैक्सी रोक कर कहा, "बाबू जी, उतर जाईये यही वह जगह है जहाँ आप को जाना है।"
मैं हैरानी से अपने इर्द-गिर्द देखने लगा। कोई भी चीज़ देखी भाली नहीं लग रही थी। फिर सामने एक दूकानदार से पुछा, "भाई साहब, यहाँ पर वकीलों का एक बहुत बड़ा मकान सड़क के किनारे होता था।"
"अरे साहब किस ज़माने की बात कर रहे हो वह मकान तो जीर्ण-शीर्ण हो चूका था। उसे तो गिरा दिया गया। यह सामने जो मॉल नज़र आ रहा है उसी ज़मीन पर तो खड़ा है। 
मैं वापस टैक्सी में बैठ गया और ड्राइवर को गाड़ी चलाने के लिए कहा।
मेरी बेटी हैरान थी कि मुझे अचानक क्या हो गया। पूछने लगी. "पापा पूर्वजों का मकान देखे बिना ही जाएं गे क्या?"
मैं अवाक उसे देखता रहा मगर मेरे आँसू मेरे दिल में उठ रहे तूफ़ान की चुगली कर रहे थे।              




 

Sunday, April 12, 2020

Mua'ayna: निरीक्षण معائینہ ; Afsancha;लघु कहानी ; افسانچہ

Mua'ayna: निरीक्षण معائینہ 
 Afsancha;लघु कहानी ; افسانچہ 

निरीक्षण 

नसरीन और नईम अहमद पडोसी और हमजोली थे जो बचपन में एक दुसरे को क्रमशः 'केंकि लेट'* और 'खिनी मुत'* के नाम से पुकारते थे। समय दबे पाऊँ गुज़र गया और दोनों को एक दुसरे की खबर ही ना रही। आज नईम अहमद निरीक्षण करने वाली टीम के आने के संबध में प्रातः से ही अपनी क्लास की सफाई में जुटा हुआ था। नईम अहमद  ने सभी बच्चों को कुछ चुने हुए शब्दों और वाक्यों का अंग्रेजी अनुवाद रट लेने को कहा और फिर इंस्पेक्टर के सामने क्या कुछ करना है, उसकी जानकारी भी दी। 
ग्यारह बजे के आस पास स्कूल में कुछ गहमागहमी शरू हुई। प्रत्येक शिक्षक अपनी क्लास में बड़े उत्साह से बच्चों को पढ़ाने लगा। इंस्पेक्शन टीम नईम अहमद की क्लास में प्रविष्ट  हुई। टीम नायक नसरीन बच्चों के उत्तर सुन कर प्रसन्न हो रही थी। जी में आया कि किसी बच्चे से पूछ ले कि जिस की नाक अक्सर बह रही हो उस को अंग्रेजी में क्या कहते हैं? परन्तु शिष्टाचार ने अनुमति नहीं दी। 

*'केंकि लेट' और 'खिनी मुत' दो कश्मीरी शब्द हैं पहले  का अर्थ छिपकली है और 'खिनी मुत' उस लड़के को कहते हैं जिस की नाक अक्सर  बह रही हो।     




Tuesday, April 7, 2020

Nazar Andaz: نظر انداز (Urdu/Hindi); UrduMinistory;लघु कहानी;افسانچہ

Nazar Andaz: نظر انداز 
UrduMinistory;लघु कहानी;افسانچہ 

उपेक्षित 

घर लौटते समय वह बहुत उदास नज़र आ रही थी। कमरे में घुसकर एक बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारने लगी। फिर अपने पुत्र से संबोधित हुई, "साइमन, क्या मेरा चेहरा बदसूरत नज़र आ रहा है?"
"ओह नो मम्मी, आप ऐसा क्यों सोच रही हैं। बाई गॉड आप तो किसी भी कोण से तीन बच्चों की माँ नहीं लगतीं।"
"साइमन, फिर क्या कारण है कि आज घर लौटते समय बाज़ार में किसी पुरुष ने मेरी तरफ देखा तक नहीं?"    




Tuesday, March 29, 2016

Hello Uncle, Faisla, Tasweer:ہیلو انکل ؛فیصلہ ؛ تصویر ;UrduAfsancheاردو افسانچے ; HindiLaghu Kahaniyanहिन्दी लघु कहानियां

       Hello Uncle; Faisla;Tasweer
ہیلو انکل ؛فیصلہ ؛ تصویر 
UrduAfsancheاردو افسانچے 
HindiLaghu Kahaniyanहिन्दी लघु कहानियां 
हेलो अंकल  

जिन दिनों मैं नैनीताल में ट्रेनिंग कर रहा था मुझे स्थानीय प्रशासन से एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने का न्योता मिला। यद्यपि मेरा विवाह हाल ही में हुआ था मगर पत्नी साथ में नहीं थी और मैं खुद को अविवाहित ही समझता था। 
मेरी बाईं तरफ स्थानीय कॉलेज की कुछ लड़कियां आपस में हंसी मज़ाक़ कर रही थीं। कभी कभी मेरी ओर देख कर मुस्करा देतीं। मैं भी कन-अँखियों से उन्हें देखता और हलके से चोरी छुपे मुस्करा देता। उनमें से एक लड़की बार-बार मुझे ख़ुमार भरी अध्-खुली आँखों से ऐसे देखती जैसे निमंत्रण दे रही हो। जी चाहता था की उठकर उसको अपना परिचय दूँ परन्तु पास ही बैठे मातहत के कारण ऐसा संभव न था। सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ और बात आई गई हो गई। 
दुसरे दिन मैं मॉल रोड पर अकेला टहल रहा था कि वही चार लड़कियां मस्ती से कुलांचें मारती हुई दूसरी ओर से चली आ रही थीं। ह्रदय प्रफुल्लित  हुआ। सोचा चलो आज अकेले हैं, बात करने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी। मुझे देखकर उन्होंने सड़क पार कर ली और मेरे नज़दीक आने की कोशिश की। मन ही मन में बहुत प्रसन्न हो रहा था कि अभी तो मैं जवान हूँ। पास आते ही वह लड़की जिसने एक दिन पूर्व सबसे अधिक दिलचस्पी दिखाई थी मुझ से संबोधित हो गई, "हेलो अंकल, आप कैसे हैं? कल तो आप जाते समय ना जाने कहाँ ग़ायब हो गए।" 
मैं ठिठका मगर जल्दी ही अपने आप को संभाल लिया। वह फिर बोल उठी, "अंकल आप कहाँ से आए हैं और कितने दिन ठहरें गे? हम यहाँ हॉस्टल में रहती हैं।  हर रोज़ शाम को टहलने के लिए निकलती हैं।"
"ग्रेट, मैं भी दो महीने की ट्रेनिंग पर आया हूँ। दुसरे सप्ताह वापस चला जाऊँ गा।"
"ओके अंकल, इट वाज़ नाईस टु मीट यू। गुड बाई।" हाथ मिला कर वह सब चली गईं। 
मैंने आगे जाने का इरादा बदल दिया और वापस अपने गेस्ट हाउस में चला आया।  
आते ही मैं ड्रेसिंग टेबल के मानव आकार दर्पण के सामने खड़ा हो गया और अपने शरीर के हर कोण और वक्र को देखने लगा ताकि यह पता लगाऊँ कि विवाह के बाद मुझ में ऐसी कौन सी तब्दीली आई है कि लड़कियों ने मुझे पहली बार अंकल कहकर सम्बोधित किया।
 
फैसला
 
शिक्षा.....व्यवसाय.....जीवनसाथी.....! यह सब फैसले हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। परन्तु ज़िन्दगी ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए हमें फुर्सत ही नहीं देती। माता-पिता की ख़ुशी, रुतबा, प्रतिष्ठा और सामाज की अपेक्षाएं आड़े आती हैं। 
खैर उसने यह तीनों अड़चनें पार की थीं और अब आराम की ज़िन्दगी बसर करने की सोच रहा था। अचानक उसकी पत्नी ने अपना चूल्हा अलग करने के लिए आग्रह किया। बूढ़े माँ-बाप थे और दो अविवाहित बहनें थीं जिनकी शादी में माता-पिता का हाथ बटाना उसका कर्तव्य बनता था। स्वयं उसके भी तीन छोटे-छोटे बच्चे थे। पत्नी ने अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए घर को कुरुक्षेत्र में तब्दील कर दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। परिस्थितियों की संवेदनशीलता को समझने के लिए कोई तैयार ना था।
धीरे-धीरे पानी सिर से ऊंचा हो गया। वह तिलमिला उठा। रात को सोते समय उस ने चुप-चाप बहुत सारी नींद की गोलियां खा लीं और फिर ऐसी  नींद सोया कि कभी जाग ही ना पाया। 
प्रातः उठकर पत्नी रोने-धोने और छाती पीटने लगी। माता-पिता और बहनें रो-रो कर अधमरे हो रहे थे। बच्चे कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ। वह भी बड़ों को देख कर फूट-फूट कर रोने लगे। दोनों दल पश्चाताप से ग्रस्त थे मगर निष्फल। जो फैसला हो चूका था अब उसको बदलना असंभव था।

तस्वीर
 
लगभग एक वर्ष के बाद उसकी पत्नी वापस शिलांग आई थी। वह सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए आगरा गई थी। पूरा दिन घर की सफाई में व्यतीत हो गया। सफाई के दौरान कहीं कंडोम और कहीं अश्लील पुस्तकें मिल गयीं। उसे अपने पति पर शक तो हुआ लेकिन फिर खुद को दिलासा देने लगी, "बेचारा एक वर्ष से अकेला पड़ा था, हो सकता है इन पुस्तकों और तस्वीरों से दिल बहलाता रहा होगा।" उसे अपने पति की वफ़ादारी पर पूरा भरोसा था। इसलिए किसी शंका को सिरे से ही ख़ारिज कर दिया।
दुसरे रोज़ लंच करने के बाद मेजर खन्ना वापस अपने दफ्तर चला गया। कुछ देर के बाद एक खासी लड़की घर का दरवाज़ा खटखटाने लगी। पूनम खन्ना ने दरवाज़ा खोल दिया और अजनबी लड़की को देखकर हैरान हो गई। फिर धैर्य करके पूछने लगी, "कौन हो तुम? यहाँ किस लिए आई हो?" 
"मेजर है? मुझे उसे मिलना है।"
"यहाँ कोई मेजर वेजर नहीं है। तुमको कोई ग़लतफ़हमी हुई है।" 
"नो मैडम, मैं राइट जगह पर हूँ। कोई मिश्टेक नहीं। तुम मेजर का वाइफ है ना?"
"किस मेजर की बात कर रही हो तुम? मैंने कहा ना यहाँ कोई मेजर वेजर नहीं है। हुंह जहाँ जी चाहा वहां घुस गए।" पूनम ने दरवाज़ा बंद करना चाहा मगर खासी लड़की ने उसे रोक लिया। "नो मैडम, तुम मेजर का वाइफ है। मुझे मालूम है। अंदर ड्राइंग रूम में फायर प्लेस के ऊपर कोर्निस पर तुम दोनों का ब्यूटीफुल फोटो लगा हुआ है। यू आर रियली वैरी ब्यूटीफुल !"
पूनम आश्चर्यचकित हो गई। उसे अत्तर ही नहीं सूझ रहा था। बस इतना कह सकी, "इस वक़्त वह यहाँ नहीं हैं। दफ्तर चले गए हैं। मालूम नहीं कब आएं गे।" 
खासी लड़की वापस चली गई। पूनम की आँखें दूर तक उस का पीछा करती रहीं।         




Wednesday, January 4, 2012

Vote, ووٹ ,वोट : (Urdu/Hindi); Afsancha; افسانچہ ; लघु कथा

 Vote: ووٹ : वोट      
 Afsancha; افسانچہ ; लघु कथा  

वोट 

प्रगति विहार हॉस्टल की बालकोनी से मैं नीचे मैदान की चहल-पहल देख रहा था। इतने में एक व्यक्ति ने सामने सडक पर खड़ा होकर मुझे संबोधित किया।"भाई साहब आपने अभी तक अपना वोट नहीं डाला, चार बज चुके हैं।"

मैंने क्षमा मांगते हुए कहा,"मैंने कश्मीर के चुनाओं में अपनी आँखों से धांधलियां होते देखी हैं जिसे मेरे विश्वास को आघात पहुंचा है। इसलिए अब मैं वोट नहीं डालता।"

"आप इतने बढ़े अफसर होकर भी ऐसी बातें करते हैं। वोट ढालना तो हमारा कर्तव्य बनता है। अगर हम जैसे शिक्षित लोग ही अपने कर्तव्य से मुकर जाएँ तो देश का क्या होगा? मेरी बात मानिए और अपना वोट डाल कर आईये."

"मैंने देखा है की मेरे वोट की कोई कीमत ही नहीं है। राजनीतिज्ञ लोग  सरेआम वोट खरीदते हैं, खुले आम सौदे बाज़ी करते हैं, फिर मेरी अंतरात्मा की क्या उपयोगिता रह जाती है। मैं अपनी ऊर्जा व्यर्थ में बर्बाद  नहीं करना चाहता।"

छे बजे वोटिंग ख़त्म हो गई। मैं बालकोनी में उस समय भी खड़ा तमाशा देख रहा था। वही व्यक्ति नीचे सड़क पर फिर दिखाई दिया। उसने वहीं से चिल्लाया,"भाई साहब हम अभी तक आपका इंतज़ार कर रहे थे। आप आए   नहीं इसलिए हमने आप का वोट डलवा दिया।"

मैंने कोई उत्तर नहीं दिया, केवल मुस्कराता रहा। मुझे समझ नहीं आरहा था की जीत किस की हुई।  






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Wednesday, December 21, 2011

Mamnou Raasta,ممنوع راستہ : (Urdu/English); Afsancha; افسانچہ ; Ministory

  Mamnou Raasta  : ممنوع راستہ 
 Afsancha; افسانچہ ; Ministory 



Mamnou Raasta

Ghar se daftar jaane ke liye sirf do hi raaste the. Aik daamar bichi sadak ka raasta---lamba aur ukta dene wala.Us par hamesha bahut traffic rehta tha. Aur doosra---Government Silk factory ke beechon beech jata hua, jis ke aaghaz aur ikhtitaam par do aahani gate the. Yeh gate Subh aath baje se shaam saat baje tak factory ke mazdooron ke liye khule rehte the.Gate par aik  barhi takhti latki rehti thi.
"Yeh shahrae aam nahi hai. Khilafwarzi karne walon par qanooni chara joi ki jaaaye gi."
Main har roz isi raaste se office jaata tha. Gate par latka hua notice board dekhta, parhta aur usse nazar andaz karke aage barh jaata.
Notice board aaj tak apni jagah par latak raha hai.

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(mamnou raasta-forbidden road,damar- coaltar, ukta-boring,aaghaz/ikhtetam-beginning and end,aahani-iron, shaarae aam-Thoroughfare, nazarandaz-overlook)