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Tuesday, March 29, 2016

Hello Uncle, Faisla, Tasweer:ہیلو انکل ؛فیصلہ ؛ تصویر ;UrduAfsancheاردو افسانچے ; HindiLaghu Kahaniyanहिन्दी लघु कहानियां

       Hello Uncle; Faisla;Tasweer
ہیلو انکل ؛فیصلہ ؛ تصویر 
UrduAfsancheاردو افسانچے 
HindiLaghu Kahaniyanहिन्दी लघु कहानियां 
हेलो अंकल  

जिन दिनों मैं नैनीताल में ट्रेनिंग कर रहा था मुझे स्थानीय प्रशासन से एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने का न्योता मिला। यद्यपि मेरा विवाह हाल ही में हुआ था मगर पत्नी साथ में नहीं थी और मैं खुद को अविवाहित ही समझता था। 
मेरी बाईं तरफ स्थानीय कॉलेज की कुछ लड़कियां आपस में हंसी मज़ाक़ कर रही थीं। कभी कभी मेरी ओर देख कर मुस्करा देतीं। मैं भी कन-अँखियों से उन्हें देखता और हलके से चोरी छुपे मुस्करा देता। उनमें से एक लड़की बार-बार मुझे ख़ुमार भरी अध्-खुली आँखों से ऐसे देखती जैसे निमंत्रण दे रही हो। जी चाहता था की उठकर उसको अपना परिचय दूँ परन्तु पास ही बैठे मातहत के कारण ऐसा संभव न था। सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ और बात आई गई हो गई। 
दुसरे दिन मैं मॉल रोड पर अकेला टहल रहा था कि वही चार लड़कियां मस्ती से कुलांचें मारती हुई दूसरी ओर से चली आ रही थीं। ह्रदय प्रफुल्लित  हुआ। सोचा चलो आज अकेले हैं, बात करने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी। मुझे देखकर उन्होंने सड़क पार कर ली और मेरे नज़दीक आने की कोशिश की। मन ही मन में बहुत प्रसन्न हो रहा था कि अभी तो मैं जवान हूँ। पास आते ही वह लड़की जिसने एक दिन पूर्व सबसे अधिक दिलचस्पी दिखाई थी मुझ से संबोधित हो गई, "हेलो अंकल, आप कैसे हैं? कल तो आप जाते समय ना जाने कहाँ ग़ायब हो गए।" 
मैं ठिठका मगर जल्दी ही अपने आप को संभाल लिया। वह फिर बोल उठी, "अंकल आप कहाँ से आए हैं और कितने दिन ठहरें गे? हम यहाँ हॉस्टल में रहती हैं।  हर रोज़ शाम को टहलने के लिए निकलती हैं।"
"ग्रेट, मैं भी दो महीने की ट्रेनिंग पर आया हूँ। दुसरे सप्ताह वापस चला जाऊँ गा।"
"ओके अंकल, इट वाज़ नाईस टु मीट यू। गुड बाई।" हाथ मिला कर वह सब चली गईं। 
मैंने आगे जाने का इरादा बदल दिया और वापस अपने गेस्ट हाउस में चला आया।  
आते ही मैं ड्रेसिंग टेबल के मानव आकार दर्पण के सामने खड़ा हो गया और अपने शरीर के हर कोण और वक्र को देखने लगा ताकि यह पता लगाऊँ कि विवाह के बाद मुझ में ऐसी कौन सी तब्दीली आई है कि लड़कियों ने मुझे पहली बार अंकल कहकर सम्बोधित किया।
 
फैसला
 
शिक्षा.....व्यवसाय.....जीवनसाथी.....! यह सब फैसले हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। परन्तु ज़िन्दगी ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए हमें फुर्सत ही नहीं देती। माता-पिता की ख़ुशी, रुतबा, प्रतिष्ठा और सामाज की अपेक्षाएं आड़े आती हैं। 
खैर उसने यह तीनों अड़चनें पार की थीं और अब आराम की ज़िन्दगी बसर करने की सोच रहा था। अचानक उसकी पत्नी ने अपना चूल्हा अलग करने के लिए आग्रह किया। बूढ़े माँ-बाप थे और दो अविवाहित बहनें थीं जिनकी शादी में माता-पिता का हाथ बटाना उसका कर्तव्य बनता था। स्वयं उसके भी तीन छोटे-छोटे बच्चे थे। पत्नी ने अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए घर को कुरुक्षेत्र में तब्दील कर दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। परिस्थितियों की संवेदनशीलता को समझने के लिए कोई तैयार ना था।
धीरे-धीरे पानी सिर से ऊंचा हो गया। वह तिलमिला उठा। रात को सोते समय उस ने चुप-चाप बहुत सारी नींद की गोलियां खा लीं और फिर ऐसी  नींद सोया कि कभी जाग ही ना पाया। 
प्रातः उठकर पत्नी रोने-धोने और छाती पीटने लगी। माता-पिता और बहनें रो-रो कर अधमरे हो रहे थे। बच्चे कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ। वह भी बड़ों को देख कर फूट-फूट कर रोने लगे। दोनों दल पश्चाताप से ग्रस्त थे मगर निष्फल। जो फैसला हो चूका था अब उसको बदलना असंभव था।

तस्वीर
 
लगभग एक वर्ष के बाद उसकी पत्नी वापस शिलांग आई थी। वह सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए आगरा गई थी। पूरा दिन घर की सफाई में व्यतीत हो गया। सफाई के दौरान कहीं कंडोम और कहीं अश्लील पुस्तकें मिल गयीं। उसे अपने पति पर शक तो हुआ लेकिन फिर खुद को दिलासा देने लगी, "बेचारा एक वर्ष से अकेला पड़ा था, हो सकता है इन पुस्तकों और तस्वीरों से दिल बहलाता रहा होगा।" उसे अपने पति की वफ़ादारी पर पूरा भरोसा था। इसलिए किसी शंका को सिरे से ही ख़ारिज कर दिया।
दुसरे रोज़ लंच करने के बाद मेजर खन्ना वापस अपने दफ्तर चला गया। कुछ देर के बाद एक खासी लड़की घर का दरवाज़ा खटखटाने लगी। पूनम खन्ना ने दरवाज़ा खोल दिया और अजनबी लड़की को देखकर हैरान हो गई। फिर धैर्य करके पूछने लगी, "कौन हो तुम? यहाँ किस लिए आई हो?" 
"मेजर है? मुझे उसे मिलना है।"
"यहाँ कोई मेजर वेजर नहीं है। तुमको कोई ग़लतफ़हमी हुई है।" 
"नो मैडम, मैं राइट जगह पर हूँ। कोई मिश्टेक नहीं। तुम मेजर का वाइफ है ना?"
"किस मेजर की बात कर रही हो तुम? मैंने कहा ना यहाँ कोई मेजर वेजर नहीं है। हुंह जहाँ जी चाहा वहां घुस गए।" पूनम ने दरवाज़ा बंद करना चाहा मगर खासी लड़की ने उसे रोक लिया। "नो मैडम, तुम मेजर का वाइफ है। मुझे मालूम है। अंदर ड्राइंग रूम में फायर प्लेस के ऊपर कोर्निस पर तुम दोनों का ब्यूटीफुल फोटो लगा हुआ है। यू आर रियली वैरी ब्यूटीफुल !"
पूनम आश्चर्यचकित हो गई। उसे अत्तर ही नहीं सूझ रहा था। बस इतना कह सकी, "इस वक़्त वह यहाँ नहीं हैं। दफ्तर चले गए हैं। मालूम नहीं कब आएं गे।" 
खासी लड़की वापस चली गई। पूनम की आँखें दूर तक उस का पीछा करती रहीं।         




Tuesday, March 6, 2012

Kitabi Prem, کتابی پریم : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

Kitabi Prem, کتابی پریم :
(Urdu/Hindi)
Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ 

       

                                                किताबी प्रेम

यह कहानी उस ज़माने की है जब न मोबाइल थे और न इन्टरनेट। प्यार को पत्रों के माध्यम से प्रकट किया जाता था। एक दिन तेरह वर्षीय प्रेम अपनी प्रेमिका रजनी को पत्र लिख रहा था कि अचानक मेरी दृष्टि उसपर पड़ी। 
"यह तुम क्या नक़ल कर रहे हो? कोई कविता आधि लिख रहे हो क्या?" मैंने प्रश्न किया। 
"नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। रजनी भी मेरी तरह पांचवीं में दो बार फ़ैल हो चुकी है। वह भी इसी पुस्तक में से क्रमबद्ध मेरे पत्रों का उत्तर देती है।"
"ओह मैं समझा। इससे बेहतर तो यह है कि टेलीग्राम की तरह तुम केवल नंबर लिख दिया करो और वह उस अंक का पत्र पढ़ लिया करेगी. इतनी मेहनत करने की क्या ज़रुरत है।" 
"हाँ भैया तुमने अच्छा सुझाव दिया। मेरा तो इस ओर ध्यान ही नहीं गया।"
उस दिन के पश्चात् इत्र मले पत्रों में केवल यह शब्द नज़र आने लगे।"आँखों से प्यारी रजनी, नंबर सात, तुम्हारा सदा तुम्हारा, प्रेम।"
"मेरे दिल के राजा, नंबर आठ, तुम्हारे चरणों की धूल, रजनी।"
यह सिलसिला तब तक यूँ ही चलता रहा जब तक प्रेम घर से भाग कर दिल्ली की सड़कों पर जेबें कुतरने लगा ओर रजनी पांच हज़ार रुपयों के बदले मालेगांव में अश्लील फिल्मों में अपने शरीर की नुमाइश करने लगी। 

Tuesday, February 21, 2012

Surprise, سرپرائز : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

 Surprise, سرپرائز :
(Urdu/Hindi)
Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ 
           
                                             
                                   सरप्राइज      

उस रोज़ जब मैं घर से निकला तो मेरी पत्नी बडी ही उत्सुकता से दरवाज़े तक आई. प्यार भरी नज़रों  से  मुझे देखा और फिर अलविदा कहने के लिए बोली. "गुड बय डार्लिंग, शाम को जल्दी आना, आज इवनिंग शो देख लेंगे।" वह कुछ ज्यादा ही मेहरबान लग रही थी। मैंने उसके गाल पर चुमी ली और जवाब में कहा,  "असंभव, आज ऑफिस में बहुत काम है. सात आठ बज जायेंगे।" दफ्तर पहुंचा तो मालूम हुआ कि बॉस  की तबियत ठीक नहीं है और वह दफ्तर नहीं आयेंगे। उनकी सारी इंगेजमेंट्स कैंसल करलीं। पूरी डाक उठा कर उनके घर पहुंचा। दिन का काम जल्दी जल्दी निपटा लिया. फिर सोचा चलो आज श्रीमती जी को ही सरप्रयज़  दें
दो ढाई बजे घर पहुंचा. कॉलबेल दबाई. कुछ देर के बाद दरवाज़ा खुला. सामने नाइट गाउन पहने मेरी बीवी उलझे हुए बालों को समेटती हुई आँखें मूँद रही थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। "तुम, तुम इतनी जल्दी.....! सब ठीक तो है न?" उसके लहजे में ताजुब और परेशानी साफ़ नज़र आ रही थी. वह मुड कर अन्दर जाने लगी और मैं पीछे पीछे हो लिया। "खाना खाया है या फिर होम सरविस से मंगवा लूं?" डायनिंग टेबल पर बिखरे हुए बर्तनों की तरफ इशारा करते हुए वह कहने लगी,"दरअसल मेरी सहेली आरती आई थी और हम दोनों ने इकठे लंच कर लिया. वह ज़रा जल्दी में थी इस लिए ज्यादा दैर नहीं ठहर सकी।" मुझे उसकी बातों पर यकीन करने के सिवा और कोई चारा न था। मुझे एहसास हुआ कि मैं जल्दी वापस आकर उसकी प्राइवैसी में दखल अंदाज़ हुआ। डस्ट बिन में पडे हुए सिगरेट के टुकड़े उसकी बातों को झुटला रहे थे. या फिर ऐसा भी हो सकता है कि आरती सिगरेट पीने कि आदी हो. कौन जाने सच क्या है?


Monday, February 6, 2012

Neelami, نیلامی : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ


Neelami, نیلامی : (Urdu/Hindi)
 Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ 

बचपन में राजा हरीश चंदर की कहानी पढ़ी थी। बेचारे ने पेट की खातिर चौराहे पर सरेआम अपनी पत्नी का नीलम किया था मगर सचाई का दामन कभी नहीं छोड़ा. गरीब औरत किसी दौलत वाले के हाथों बिक गयी। 

युसूफ की बात कुछ अलग नहीं थी. भाईयों ने गहरे गढ्ढे के अन्दर धकेल दिया, राह पर चलते मुसाफिरों ने बचा लिय और दास बना कर नीलाम कर दिया. नीलाम होते होते वह अंततः मिस्र के शाही दरबार में पहुँच गया जहाँ बे यार व मददगार युसूफ की सुंदरता काम आई। ज़ुलेख़ा की कृपा दृष्टि उसपर पड़ी। लेकिन सभी दासों का नसीब ऐसा नहीं होता है। अक्सर ग़ुलाम कोख से कब्र तक ग़ुलामी की जंजीरों में बंधे रहते हैं। 
पिछले तीन दिनों से एयर कंडिशंड हॉल में करोड़पति क्रिकेट खिलाडियों की नीलामी हो रही थी. कोई छे करोड़ में बिक गया और कोई सात करोड़ में।  

सिराजुद्दीन ने भी टी वी पर पूरा तमाशा देख लिया और फिर आई पी एल का उत्सुकता से इंतज़ार करने लगा. आज दफ्तर बंद होते ही उसने स्कूटर स्टार्ट की और सीधे पेट्रोल पम्प पर रोक ली। तीन सौ के बदले आज तीन सौ पचास निकालने पड़े. फिर घर के लिए सब्जी भी तो खरीदनी थी. जिस भी सब्जी का नाम लिया, कीमत दुगनी हो चुकी थी। वह दिल थाम कर रह गया। हर दिन के मुकाबले में आधी ही सब्जी खरीद पाया। दिल में अलबता यह संतोष था कि दूसरे महीने से आई पी एल के मैच शरू होने वाले हैं। 


 


 






















 

Wednesday, February 1, 2012

Khud Kushi, خود کشی : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

Khud Kushi،خود کشی 
(Urdu/Hindi)
 Afsancha  Laghu Kahani  افسانچہ 


 आत्महत्या  

घरेलु परेशानियों से तंग आकर पिछले रविवार प्रातः सात बजे के करीब मैं आत्म हत्या करने के लिए घर से निकल पड़ा और यमुना नदी के किनारे खड़ा हो गया। अचानक मेरी नज़र एक खूबसूरत औरत पर पड़ी जो कुछ ऐसे ही इरादे से वहां आई थी। मुझ से रहा न गया और दौड़ कर उसके पास पहुँच गया कि कहीं वह इस बीच छलांग न लगाये।   

"महोदया जी, आत्म हत्या करना बहुत बडा पाप है। आप को ऐसा नहीं करना चाहिए." मेरे मुंह से ना जाने क्यूँ यह शब्द उबल पड़े। 

"मेरे पास और भी तो कोई चारा नहीं है। मैं ज़िन्दगी से तंग आचुकी हूँ।"

"ज़िन्दगी से लड़ने में जो मज़ा है वह भागने में नहीं। आप पढ़ी लिखी मालूम होती हैं। अपने पाँव पर खड़े होकर मुसीबतों का सामना कर सकती हैं. फिर ऐसी हरकत आपको शोभा नहीं देती है।"

मेरी बातों का उसपर इतना असर हुआ कि वह पलट कर वापस चली गयी।  तब तक मैं भी भूल चूका था कि मैं किस काम से यहाँ आया था। जल्दी जल्दी घर पहुंचा और सीधे अपने बेडरूम में चला गया। मेरी बीवी हाथ  में मेरा  खुदकुशी का नोट लिए बिस्तर ठीक कर रही थी।  

मुझे देखते ही कहने लगी , "क्यूँ लौट आये। तुम्हारी यह गीदड़  भुभकियाँ तो मैं कई बार सुन चुकी हूँ। मुझे यकीन था कि तुम उलटे पैर लौट आओगे।"
                      
 

 

                                




















Monday, January 30, 2012

Pani to Pila do Yaar , پانی تو پلا دے یار : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

Pani to Pila do Yaar ، پانی تو پلا دے یار 
(Urdu/Hindi)
 Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ   


पानी तो पिला दो यार 

कोई चालीस साल पुरानी बात है। तब ना तो कश्मीर में आतंकवाद था और ना ही बंदूक का चलन किन्तु किसी ना किसी बहाने प्रदर्शन होते रहते थे।  कभी अमेरिका के खिलाफ तो कभी इस्राईल के खिलाफ, कभी भुट्टो के हक़ में और कभी उसको फँसी देने वाले ज़ियाउलहक़ के समर्थन में, कभी शेख़ अब्दुल्लाह की नज़रबंदी पर और कभी शिया संप्रदाय के मुहर्रम जलूस निकालने पर।   

उस समय की सरकार जल्दी से सी आर पी ऍफ़  को तैनात करके ला एंड आर्डर बहाल कर लेती थी। सामान्यतया लाठियों से काम चल जाता था फिर भी कभी-कभी आंसों लाने वाली गैस इस्तेमाल होती थी। 

एक दिन सी आर पी ऍफ़ का एक जवान भटकता हुआ एक अंधी गली में जा फंसा। बहुत कोशिश के बावजूद उसे रास्ता नहीं सूझ रहा था।  प्रदर्शन करने वालों की एक टोली जो इस तरफ निकली उसे देख कर क्रोधित  हो गयी।  लगे उस को थपड और घूंसे मारने। फिर जूते, चप्पल और कांगडियां, जो हाथ में आया उसपर फेंक दिये। जवान बे होश हो गया। 

मारने वालों में से एक आदमी की नज़र उसपर पडी और वह चिल्लाया, "अरे रुक जाओ, रुक जाओ, यह आदमी मर जाए गा। कोई इसे पानी तो पिला दो यार। फिर वह स्वयं दौड़ कर एक बोतल में पानी ले आया और सिपाही को पिलाने लगा जब तक वह होश में नहीं आया। फिर उसको सहारा देकर खड़ा किया गया और दो तीन आदमी उसके साथ जा कर उसे सड़क पर छोड़ आये। 

Friday, January 27, 2012

Gumshuda ki Talash, گمشدہ کی تلاش : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ


Gumshuda ki Talash، گمشدہ کی تلاش :
(Urdu/Hindi)
 Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ 

गुमशुदा की तलाश 

इन्टरनेट पर बनाये एक दोस्त के साथ कैलाश अपना दुःख बाँटना चाहता था। इस लिए इ-मेल  भेज दी."मेरे साथ एक बढ़ा हादसा पेश आया है. मेरी महबूबा सरोजनी चड़ा को उसके सुसराल वालों ने दहेज की खातिर घर से निकाल दिया और अब मालूम नहीं वह कहाँ है. इसलिए मैं बहुत परेशां हूँ।"

जवाब मिला. "सरोजनी चड़ा कहाँ की रहने वाली थी और उस के पति का क्या नाम था?"

वह अम्बाला की रहने वाली थी और दिल्ली में सतीश कुमार से ब्याही गयी थी।" एक और व्याख्यात्मक  इ-मेल  भेज दी गयी।  

उस के जवाब में जो इ-मेल प्राप्त हुई वह यूँ है."कैलाश जी, सरोजनी मेरी भाभी थी. वह अपने पति के साथ कनाडा  में रहती थी. वह निकाली नहीं गयी बल्कि अपने किसी आशिक के साथ भाग गयी. कनाडा की पुलिस अब तक उसका पता लगाने में नाकाम रही है."

                        
























Friday, January 20, 2012

Shanakht, شناخت : (Urdu/English); Afsancha; افسانچہ ; Ministory

 Shanakht،شناخت :(Urdu/English)
 Afsancha; افسانچہ ; Ministory

Shanakht
Us ke Pita ji bahut barhe film adaakar the.Kayi doston ne usse mashwara diya ki woh acting ke baghair aur koi line ikhtiyar karle magar woh na mana. Baap ne bahut koshish ki ki beta bhi usi ki tarah naam kamaye magar aik ke baad aik filmein pit gayi aur woh gumnami ki bhool bhulayun mein bhatakne laga. 

Dheere dheere us ko yeh ehsaas ho gaya ki bargad ke neeche koi aur perh nahi panap sakta magar ab dair ho chuki thi.

Bhala ho Television ka, ab woh reality shows mein judge ka kaam karta hai aur funkaron ki acting, mauseequi aur dance par na sirf apne tasurat pesh karta hai balki in mozooat par barhe barhe lecture bhi deta hai.

(Shanakht-Identity; adaakar-actor; mashwara- suggestion; ikhtiyar kare-adopt; panapna-grow; mauseequi-music; mozooat-subjects) 

























Friday, January 13, 2012

Biwi ki Kamai, بیوی کی کمائی : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

Biwi Ki Kamayi, بیوی کی کمائی :
(Urdu/Hindi)
 Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ 

बीवी की कमाई 
एक पत्र का उद्धरण: "तुम ने उम्र भर शराब पीने और रंडी बाज़ी के सिवा और कुछ भी नहीं किया। ना जाने तुम्हें परजीवी जीवन बसर करने में शर्म क्यूँ नहीं आती?"

जवाबी पत्र का उद्धरण; "यार बीवी की कमाई पर जीना भी एक कला है और यह सब लोगों के बस की बात नहीं है।" 



                                                         




















Wednesday, January 11, 2012

Lakshmi Ka Swagat, لکشمی کا سواگت : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

Lakshmi Ka Swagat, لکشمی کا سواگت :
(Urdu/Hindi) 
 Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ 
  लक्ष्मी का स्वागत 

"लक्ष्मी आई है बेटा लक्ष्मी। हमारे घर लक्ष्मी आई है।" बहु के घर में क़दम रखते ही विद्यासागर के पिता जी ख़ुशी से झूम उठे। 

बहु उम्मीद से ज़्यादा दहेज लेकर आई थी फिर भी विद्यासागर को शांति नहीं मिल रही थी। वह सरस्वती की तलाश में मारा मारा फिर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि हर बहु लक्ष्मी का रूप ही क्यों धारण करती है, सरस्वती का क्यों नहीं? 

सरस्वती की तलाश में विद्यासागर दर-दर भटकता रहा। अंतत: उसने घर से बहुत दूर एक आश्रम में शरण ली और लक्ष्मी को हमेशा के लिए भूल गया।  

                  
                           


















Monday, January 9, 2012

Thais, ٹھیس : (Urdu/Hindi); Afsancha; افسانچہ ; Ministory

Thais, ٹھیس : (Urdu/Hindi)
 Afsancha; افسانچہ ; Ministory

ठेस 

ज्यूँ ही मुझे पहली बार दिल्ली में नौकरी मिली मैंने मोती नगर में एक कमरा किराये पर ले लिया। मकान मालकिन चालीस पैंतालीस साल की एक खूबसूरत औरत थी जो उस उम्र में भी बन संवर कर रहती थी। मैं हमेशा  उसको माँ की तरह इज्ज़त करता था यहाँ तक कि उस घर को अपना घर समझने लगा था। चूंकि वह पाकिस्तान से पलायन करके आई थी इसलिए कभी कभार अपने अतीत को कुरेदती रहती और दुखद तथा उदास करने वाली कहानियां सुनाती थी। 
एक रोज़ वह बेड पर लेटी अपना एल्बम देख रही थी कि मैं कमरे में दाखिल हुआ और उसके सामने कुर्सी पर बैठ गया। उसके चेहरे की उद्दीप्ति से लग रहा था कि वह अपनी जवानी की कोई हसीन घटना याद कर रही थी। मुझे एल्बम थमाते हुए वह बोली, "अरुण देखो तो कितनी सुंदर थी मैं जवानी के दिनों में।"
"हाँ आंटी आप तो सुचमुच बहुत खूबसूरत थीं" मैंने हाँ में हाँ मिलाई।" 
"बेटे जब हम पाकिस्तान से पलायन करके आये थे तो मेरे भाई हरीश,जो फिल्म प्रोडूसर था,ने मुझे मुंबई बुलाया और अपनी नई फिल्म 'हीराभाई'  के लिए हेरोइन का रोल ऑफर किया था।"
" बड़ी अच्छी ऑफर थी, फिर आपने क्यों ठुकराई।"
"इसी बात पर तो अबतक पछता रही हूँ। गई होती तो ऐश की ज़िन्दगी बसर कर लेती। जुबैदा एक रात के बीस हज़ार रुपए चार्ज करती है और बीना कुमारी की तो बात ही नहीं वह तो रात भर के चालीस हज़ार लेती है। मेरी   रेट तो कम से कम पचास हज़ार होती।"
मैं विस्मित होकर उसको बहुत देर तक देखता रहा। मुझे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। 




 

Friday, December 16, 2011

Harjeet & Mazdoor Rickshaw, ہار جیت اور مزدور رکشہ : (Urdu/English); Afsanche; افسانچے :Ministories

 Harjeet & Mazdoor Rickshaw:
 ہار جیت اور مزدور رکشہ  
  Afsanche; افسانچے ; Mini-Stories  
Haar Jeet

Devyani aik aik karke zeene uttar rahi thi aur man hi man mein soch rahi thi,"Saala sochta hoga koi bahut barha ma'arika tai kar liya. Aik aurat ko teen hazar ke ewaz raat bhar ke liye khareed liya." Us ne condom ke wrapper ko bag se nikal kar door koode daan mein, jis par 'use me' likha hua tha, phaink diya."Apni biwi do char sau bhi maang le to saale ko blood pressure charhta hoga."
"Bahut nakhre dikha rahi thi saali. Keh rahi thi paanch hazar se aik payi bhi kum na loongi aur woh bhi do ghante ke liye. Ab dekho mainne usse poori raat apne paas rakha aur woh bhi sirf teen hazar mein." Paresh Nath khirki se bahar us par nazar rakhe hue tha.
Donon apni apni jagah khush the. Idhar Devyani ka beta hospital mein parha maan ka intezar kar raha tha ki kab woh aaye aur us ka operation ho.Udhar Paresh Nath ki biwi aik Gigolo ke sahare apni piyas mita rahi thi aur chahati thi ki us ka pati jaldi ghar na aa sake.

*********
(zeene-steps,ma'arika-mission)

                                                   




















Mazdoor Rickshaw

Mussorie ke Maal road par main ne pehli baar mazdoor ko rickshaw khainchte hue dekha. Phati purani qameez aur pyjama pehne woh ghode ki tarah rickshe ke saath juta hua tha. Dil mein barhi koft hui. Is liye us ke bulane par bhi main ne usse nazar andaz kar liya.
Phir daroon ne ehtijaj kiya,"Tum ne us ki rozi roti cheen li. Berozgari ke aalam mein us ke paas aur bhi to koi chara nahi hai. Hul chalane wala kissan bhi sooraj ki tamazat se bekhabar tumhare liye anaj paida karta hai. Us ka badan bhi paseene se tarbatar rehta hai. Woh bhi is mazdoor ki tarah maflookulhaal hota hai.Agar tum uski haalat dekho ge to kya tum khana peena chod do ge."
Main wapas murha , mazdoor rickshe wale par bharpoor nazar daudayi aur phir rickshe par baith gaya. Mazdoor rickshe ko mamool ki tarah haankne laga.
                                            ***********
(koft-pain,daroon-inside/heart,tamazat-scorching heat,maflookulhaal-poor/in bad condition





                           
           
     

Sunday, November 27, 2011

سچ کی تلاش اور نیکی Such Ki Talash & Neki: (Urdu/English); Afsancha; Ministory

Such Ki Talash & Neki:سچ کی تلاش اور نیکی 
 Afsancha; افسانچہ ; Ministory

Such ki Talash

Tum samajhte ho ki tumhare hath mein jo saheefa hai woh aakhri such hai.
Main samajhta hun ki mere mushif se barha such aur koi nahi.
Tumhare such aur mere such ke darmiyan kitna tazaad hai.

                                                ***
(saheefa/mushif-Holy scripture; Tazaad-difference)




  Neki

Neki kar darya mein daal.
Neki do qism ki hoti hai.
Adh mare zahreele saanp ko doodh pila kar phir se tandrust-o- tawaana bana de. Woh kabhi na kabhi is ka ajar zaroor dega.Bhale ki umeed mat rakhna kyunki yeh uski khislat mein shamil hai hi nahi.  Albata bahut mumkin hai ki woh mustaqbil mein tumhare baal bachon ko zaroor dus lega.
Doosre qism ki neki bhi hoti hai. Saanp ko kuchal kar apne baal bachon ko bacha le.

                                                *****
(tawaana-strong; Ajar-repay,reward; khislat-nature;mustaqbil-future)