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Tuesday, October 5, 2021

Ek Hi Khat; एक ही ख़त ; Hindi Short Story; हिंदी कहानी

 Ek Hi Khat; एक ही ख़त 

  Hindi Short Story; हिंदी कहानी 








Monday, October 4, 2021

Adhoore Chehre in the eyes of Urdu Critics:अधूरे चेहरे- उर्दू आलोचकों की नज़र में; Short Stories;Criticism;हिंदी कहानियां; आलोचना

Adhoore Chehre in the eyes of Urdu Critics

अधूरे चेहरे- उर्दू आलोचकों की नज़र में 

  Short Stories;Criticism;हिंदी कहानियां; आलोचना 





Wednesday, March 17, 2021

Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की; تلاش اس لمس کی ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की;
تلاش اس لمس کی 
 Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

तलाश उस स्पर्श की 

तुम मुझसे पूछते हो कि मेरी सोच पर हर दम नारी क्यों सवार रहती है ? कारण जानना चाहते हो तो सुनो :
बात यूँ है कि जब मैं छोटा था..... यही कोई बारह तेरह वर्ष का...... पड़ोस में मेरा एक दोस्त रहता था।  एक रोज़ मैं किसी काम से उस के घर चला गया। कोई रोक टोक तो थी नहीं।  सीधे घर के अंदर चला गया।  
उसकी मां नहा धोकर मैक्सी पहने नीम नगण हालत में अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने श्रृंगार कर रही थी। उसके चेहरे पर अजीब सी चमक और शरीर में चुंबकीय आक्रषण नज़र आ रहा था।  मुझे देखते ही उसकी आँखें खुमार से भर गयी जैसे वह मेरा ही इंतिज़ार कर रही हो। उस ने मुझे सोफे पर बिठाया और धीरे धीरे अपनी मोहब्बतों की वर्षा करने लगी। मैं वशीभूत उसके हर यत्न को सम्मोहित वस्तु की तरह झेलता रहा और आनंदित होता रहा। उसके बदन का वो स्पर्श मेरे लिए एक नया और कोरा तजरुबा था जो मेरे रोम रोम में फैल गया। फिर यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा।  वह जब चाहती मुझे हुकुम देती और अपने क़ाबू में  कर लेती। मैं एक बंधुआ मज़दूर की तरह उसकी हर इच्छा पूरी कर लेता।  उसके विपरीत जब मेरी भावनाएं उत्तेजित हो जाती मैं उनको व्यक्त करने में असमर्थ होता क्यूंकि वह मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी।  उस वक़्त मुझे  उसके पास जाने में भी डर लगता था। मेरे लिए आत्म संतुष्टि के सिवा और कोई चारा न था ।  
उसके बाद मेरी ज़िन्दगी में असंख्य औरतें आईं मगर जो तृष्णा वह छोड़ कर चली गयी थी आज तक न मिट सकी।
वास्तव में वह तृष्णा मेरे व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा बन कर रह गयी है। मैं हर समय उस प्रबल कामना को  मिटाने  के लिए बेकरार  रहता हूँ और  हर औरत में उस स्पर्श को तलाशने की कोशिश करता हूँ।     


 

Saturday, March 10, 2012

Prativad, प्रतिवाद : (Hindi); Kahani; Katha; कहानी

 Prativad, प्रतिवाद : (Hindi)
Kahani; Katha; कहानी  
   प्रतिवाद   


उस  दिन मैं कार से यात्रा कर रहा था. ड्राईवर को इस बात का एहसास था कि मुझे कॉन्फ्रेंस में देर हो रही है.इस लिए वह बहुत तेज़ी से गाड़ी चला रहा था. न जाने क्यों दिन कि शुरूआत उपशगुन से हुई थी. सुबह से ही घर में कुहराम मचा हुआ था. एक ओर बीवी की फरमाईशें ओर दूसरी ओर बच्चों की मांगें. दो चार दिन पहले पत्नी ने घरेलू कामों की लिस्ट थमा दी थी और आज सुबह सवेरे ही हिसाब मांगने लगी. बच्चों की फीस जमा करने की आखरी तारिख भी आज ही थी. यही नहीं मिलोनी की यूनिफार्म भी फट चुकी थी. इधर नौकरानी का पति पोलियोग्रस्त हो कर अस्पताल में भर्ती हो गया था और वह भी एडवांस वेतन मांग रही थी जैसे यह उत्तरदायित्व  भी मेरा ही था. यही कारण था कि घर में समाचारपत्र पढ़ने का समय भी नहीं मिला. मैंने समाचारपत्र अपने साथ उठा लिया ताकि रास्ते में पढ़ सकूँ.
संपादकीय पन्ने पर मेरे चहेते जर्नलिस्ट का लेख छपा था. लेख इतना रुचिकर था कि लेखक की उंगलियाँ चूमने को जी चाह रहा था. कितना निडर और निर्भीक पत्रकार था. कितनी सच्चाई थी उस के लेख में. उसने अकेले ही प्रशासन में हर तरफ फैले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने का बीड़ा उठाया था. प्रशासन तंत्र की परतों को एक-एक करके वह उधेड़ता चला जा रहा था. मुझे उसकी निडरता और निर्भीकता पर गर्व था.
अन्तर्मन से आवाज़ आई. " अगर ऐसे ही दस पंद्रह कर्तव्यनिष्ट खोजी पत्रकार देश में पैदा हो जाएँ तो देश का भाग्य ही बदल जाए "
तत्पश्चात मैं अपने गिरेबान में झाँकने लगा.
इस बीच एकाएक गाड़ी जे जे कालोनी के पास तीव्र झटके के साथ रुक गयी. झटके के कारण मेरा समाचारपत्र हाथों से छूटकर कार की सीटों के बीच बिखर गया. 
"क्यों.... क्या हुआ.....? रुक क्यों गए?" समाचारपत्र समेटते हुए मैंने ड्राईवर से पुछा.
"सर गाड़ी के नीचे एक पिल्ला आ कर मर गया."
इतनी देर में सामने से एक बिफरी हुई काली कुतिया दौड़ती हुई चली आई और अपना खूंखार जबड़ा खोलकर श्वेत एम्बेसडर कार पर भोंकने लगी. हमारे इस देश की अफसरशाही में श्वेत एम्बेसडर का खूब प्रचलन है. इन एम्बेसडर कारों के सामने तो बड़े बड़ों की बोलती बंद हो जाती है फिर कुत्तों की क्या मजाल. मुझे यकीन था की कुतिया स्वयं ही थक हार कर चुप हो जाएगी. 
"शायद पिल्ले की माँ होगी ?" मैंने ड्राईवर से पुछा मगर उसने सुनी अनसुनी कर दी. इस दरमियान एक पुलिसकर्मी  कहीं से आ निकला और सलूट बजा कर कार को आगे बढ़ाने का इशारा करने लगा. 
ड्राईवर ने फिर से गाड़ी का इंजन स्टार्ट कर लिया और पहले की भांति ही अपनी गाड़ी दौड़ाने लगा. कुतिया वहीँ उसी स्थान पर भौंकती रह गयी मगर उस फौलादी ढांचे का कुछ नहीं बिगाड़ सकी. 
कांफ्रेंस समाप्त होने के बाद दिन के चार बजे जब हम उसी रास्ते से लौट रहे थे तो वही काली कुतिया न जाने कहाँ से फिर उसी स्थान पर प्रकट हो गयी. वह पागलों की तरह लगातार भौंकती और ललकारती हुई फुर्ती से अकस्मात कार के सामने आई. ड्राईवर स्टेरिंग पर नियंत्रण न रख सका और वह कुतिया भी गाड़ी के नीचे आकर लहुलुहान हो गयी.
गाड़ी थोड़ी देर बाद नियंत्रण में आ गयी और अपने आप ही रुक गयी.
वहां कुछ लोग एकत्रित हो गए. मैं गाड़ी से नीचे उतरा. अपने पीछे दृष्टि दौडाई. वहां सड़क पर कुतिया की तड़पती हुई लाश थी, बहता हुआ उसका गर्म गर्म रक्त और क्षतविक्षत अंतड़ियाँ नज़र आ रही थीं. उस के शरीर में अभी भी कंपन था और जबड़े से रक्त बहता चला जा रहा था.
कुछ लोग मेरी और ऐसे देख रहे थे जैसे मैं ही अपराधी हूँ. उनकी आँखों में विरोध की भावना थी. मगर श्वेत एम्बेसडर को देख कर वे चुप हो गए. मैं घबरा कर वापिस अपनी गाड़ी में बैठ गया.
"उन लोगों को ड्राईवर पर गुस्सा आना चाहिए था. मुझ पर क्यों?" कार में बैठ कर मैं अपने आप से पूछता रहा. 
" ड्राईवर पर क्यों? कार तो आप की है और फिर जल्दी दौड़ाने का आदेश भी आप का ही था." स्वयं ही उत्तर भी ढूंढ लिया.
क्षण भर के बाद उस काली कुतिया पर, जो एक माँ भी थी, मुझे बहुत तरस आया. उसने अपने बच्चे के मारने वाले के सामने विरोध प्रदर्शन किया था और ऐसा करते हुए अपनी जान भी गंवाई थी. कितनी साहसी माँ थी वह! 
"संभवतः उसने हमारी गाड़ी को पहचान लिया होगा." मैंने ड्राईवर से पुछा.
" हाँ साहब ऐसा ही लगता है जानवरों के बारे में यही सुना है कि उनकी याद्दाश्त बहुत तेज़ होती है. उनको थोड़ा सा आघात भी पहुँचाओ तो पलटकर काट लेते हैं. सांपों के बारे में तो मेरी अम्मां कहती थी कि मरते मरते भी वह मरने वाले की तस्वीर अपनी आँखों में उतार लेते हैं और फिर उनके बाल बच्चे उस व्यक्ति से बदला लेते हैं."
भीड़ में से किसी की आवाज़ गूँज उठी, " न जाने किस अंधे ने सुबह सवेरे इसके बच्चे को अपनी मोटर के नीचे रौंद डाला था. तब से बेचारी विक्षिप्त हो गयी थी और दिन भर आने जाने वाली गाड़ियों पर भौंकती फिरती थी."
देखने वाले कुतिया की लाश को देख कर त्राहि त्राहि कर रहे थे.
इस के बावजूद सड़क पर रात भर पहले की भांति ट्रैफिक चलता रहा. सभी अपनी अपनी मंजिल की और तेज़ गति से चले जा रहे थे.
रात भर सड़क पर लाश पड़ी सड़ती रही. यदाकदा गिद्ध और कौए उस में से मांस नोच कर ले जाते. राहगीर लाश की ओर देखना भी गवारा न करते. अपने मुंह को रुमाल से ढांप कर दूसरी ओर देखते और तेज़ तेज़ क़दमों से निकल जाते.
दुसरे दिन म्युनिसिपल कमेटी की कचरा गाड़ी लाश उठा कर ले गयी.
दो दिन पश्चात् समाचार पत्रों में बड़ा ही रोचक समाचार छपा. मेरे निडर, निर्भीक और सत्यनिष्ट पत्रकार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद की शपथ ली और अब उसी प्रशासन का हिस्सा बन गया था जिसके विरुद्ध वह बरसों से आवाज़ उठाता रहा.

(कहानी संग्रह "चिनार के पंजे " Chandermukhi Prakashan, E-223, Shivaji Marg,Main Rd,Teesra Pusta, Jagjit Nagar, Delhi. tel-9250020816)Also available online.   

Wednesday, February 1, 2012

Khud Kushi, خود کشی : (Urdu/Hindi); Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ

Khud Kushi،خود کشی 
(Urdu/Hindi)
 Afsancha  Laghu Kahani  افسانچہ 


 आत्महत्या  

घरेलु परेशानियों से तंग आकर पिछले रविवार प्रातः सात बजे के करीब मैं आत्म हत्या करने के लिए घर से निकल पड़ा और यमुना नदी के किनारे खड़ा हो गया। अचानक मेरी नज़र एक खूबसूरत औरत पर पड़ी जो कुछ ऐसे ही इरादे से वहां आई थी। मुझ से रहा न गया और दौड़ कर उसके पास पहुँच गया कि कहीं वह इस बीच छलांग न लगाये।   

"महोदया जी, आत्म हत्या करना बहुत बडा पाप है। आप को ऐसा नहीं करना चाहिए." मेरे मुंह से ना जाने क्यूँ यह शब्द उबल पड़े। 

"मेरे पास और भी तो कोई चारा नहीं है। मैं ज़िन्दगी से तंग आचुकी हूँ।"

"ज़िन्दगी से लड़ने में जो मज़ा है वह भागने में नहीं। आप पढ़ी लिखी मालूम होती हैं। अपने पाँव पर खड़े होकर मुसीबतों का सामना कर सकती हैं. फिर ऐसी हरकत आपको शोभा नहीं देती है।"

मेरी बातों का उसपर इतना असर हुआ कि वह पलट कर वापस चली गयी।  तब तक मैं भी भूल चूका था कि मैं किस काम से यहाँ आया था। जल्दी जल्दी घर पहुंचा और सीधे अपने बेडरूम में चला गया। मेरी बीवी हाथ  में मेरा  खुदकुशी का नोट लिए बिस्तर ठीक कर रही थी।  

मुझे देखते ही कहने लगी , "क्यूँ लौट आये। तुम्हारी यह गीदड़  भुभकियाँ तो मैं कई बार सुन चुकी हूँ। मुझे यकीन था कि तुम उलटे पैर लौट आओगे।"