घरेलु परेशानियों से तंग आकर पिछले रविवार प्रातः सात बजे के करीब मैं आत्म हत्या करने के लिए घर से निकल पड़ा और यमुना नदी के किनारे खड़ा हो गया। अचानक मेरी नज़र एक खूबसूरत औरत पर पड़ी जो कुछ ऐसे ही इरादे से वहां आई थी। मुझ से रहा न गया और दौड़ कर उसके पास पहुँच गया कि कहीं वह इस बीच छलांग न लगाये।
"महोदया जी, आत्म हत्या करना बहुत बडा पाप है। आप को ऐसा नहीं करना चाहिए." मेरे मुंह से ना जाने क्यूँ यह शब्द उबल पड़े।
"मेरे पास और भी तो कोई चारा नहीं है। मैं ज़िन्दगी से तंग आचुकी हूँ।"
"ज़िन्दगी से लड़ने में जो मज़ा है वह भागने में नहीं। आप पढ़ी लिखी मालूम होती हैं। अपने पाँव पर खड़े होकर मुसीबतों का सामना कर सकती हैं. फिर ऐसी हरकत आपको शोभा नहीं देती है।"
मेरी बातों का उसपर इतना असर हुआ कि वह पलट कर वापस चली गयी। तब तक मैं भी भूल चूका था कि मैं किस काम से यहाँ आया था। जल्दी जल्दी घर पहुंचा और सीधे अपने बेडरूम में चला गया। मेरी बीवी हाथ में मेरा खुदकुशी का नोट लिए बिस्तर ठीक कर रही थी।
मुझे देखते ही कहने लगी , "क्यूँ लौट आये। तुम्हारी यह गीदड़ भुभकियाँ तो मैं कई बार सुन चुकी हूँ। मुझे यकीन था कि तुम उलटे पैर लौट आओगे।"