Pashemani;पश्चाताप;پشیمانی
Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ
पश्चाताप
कुछ महीने पहले राजनाथ की अर्धांगिनी स्वर्गवास हो गयी और ढलती आयु में उसे तन्हाई का अत्यंत अनुभव हो रहा था। उसे याद आया को जब भी वह कोई आदेश देता सरला बिना किसी बहाने के उस पर शीघ्र कार्यवाही करती। कभी कभी वह नाराज़ होकर आपे से बाहर भी हो जाता मगर सरला ख़ामोशी से अपने आंसू पी जाती।
दो दिन पहले मैं यूँही उसे मिलने गया तो वह बहुत ही अनुतापी लग रहा था। उसकी आँखों में पहली बार आंसों नज़र आ रहे थे। पूछा क्या बात है? कहने लगा, "तुम्हें नहीं मालूम तुम्हारी आंटी को मैंने ज़िन्दगी भर बहुत कष्ट पुहंचाया। सारी उम्र वह मेरे उचित अनुचित आदेशों का पालन करती रही परन्तु मुंह से कभी उफ़ तक नहीं की। मुझे अब इस बात का एहसास हो रहा है कि मैंने उस के साथ बहुत ज़्यादती की जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी। मुझे सरला के साथ अनुकंपा तथा सहानभूति से पेश आना चाहिए था। मगर अब तो वह चली गई और गया समय वापस नहीं आता।