Wednesday, April 6, 2016

Udan, Roshan Zameer Aurat, Cycle Rickshaw, Shola-e-Betaab, Ajnabiyat ka Azab: اڑان ؛روشن ضمیر عورت ؛سائیکل رکشہ شعلہ بیتاب ؛اجنبیت کا عذ اب؛ UrduAfsancheاردو افسانچے ;HindiLaghuKahaniyan;हिंदी लघु कहानियां

Udan, Roshan Zameer Aurat, Cycle Rickshaw, Shola-e-Betaab, Ajnabiyat ka Azab
اڑان ؛روشن ضمیر عورت ؛سائیکل رکشہ ؛
شعلہ بیتاب ؛اجنبیت کا عذ اب
UrduAfsancheاردو افسانچے ;
HindiLaghuKahaniyan;हिंदी लघु कहानियां 

उड़ान
फ़राज़ अंद्राबी और उसकी बेगम उस समय कितने खुश हुए थे जब उनके तीन बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक के बाद एक अमेरिका चले गए जैसे दुनिया की सारी दौलत उनके हाथ लगी हो। तीनों ने स्थानीय लड़कियों से विवाह कर लिया और वहीँ पर स्थायी निवासी बन गए। एक बेटी बची थी सो वह भी विवाह करके अपने पति के साथ ब्रिटैन चली गई। 
एक दिन दोनों डिस्कवरी चैनल पर हवाई जहाज़ के अविष्कार के बारे में प्रोग्राम देख रहे थे कि किस तरह सबसे पहले यूनान के एक कारीगर डेडेलस  ने स्वतंत्रता पाने के लिए अपने और अपने बेटे इकारस के लिए पक्षियों के पंख मोम से जोड़ कर बड़े पंख बनाये थे और उनकी सहायता से उड़ने की कोशिश  की थी। उसने इकारस को सचेत किया था कि ज़्यादा ऊँची उड़ान ना भरे परन्तु वह ना माना और सूरज के ताप से उसके पंखों का मोम पिघल गया और वह औंधे मुंह समुद्र में गिर गया। 
मियां-बीवी दोनों की आँखों में आंसूं तेरने लगे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि उन्होंने भी अपने बच्चों को समुद्र पर उड़ने के लिए ऐसे ही पंख लगाए थे। 

उद्धारवादी औरत 

मुझे आश्चर्य हो रहा था कि एक नारी ने, जो स्वयं अनपढ़ थी, कैसे घर-घर जाकर लोगों को निरक्षरता के दुष्प्रभाव के बारे में सूचित करने का भार उठाया था। वह बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, को स्कूल भेजने के लिए गांव वालों को प्रोत्साहित करती थी। इसके अतिरिक्त वह उन्हें अपनी  घरेलू समस्याएं जैसे वैवाहिक समस्याएं, मनोवैज्ञानिक उलझनें और रोज़गार के झमेले सुलझाने में भी मदद करती थी। सभी लोग उसको 'दीदी'  के नाम से पुकारते थे। 
उसको ज़िन्दगी से एक ही शिकायत थी। बाल विवाह के कारण उसकी अपनी शिक्षा चौथी श्रेणी से आगे नहीं बढ़ पाई थी और फिर क्षय रोग ने तीन वर्ष ही में उसे उसका पति छीन लिया था। फलस्वरूप उसको पूरी ज़िन्दगी वैधव्य में गुज़ारना पड़ा। 
एक रोज़ मैंने डरते डरते उसे पुछा, "दीदी, आप इस उम्र में इतना परिश्रम क्यों करती हैं? अपने स्वास्थ का तो कुछ ख्याल करना चाहिए।"
"नहीं बेटे" वह बोली, "मैं नहीं चाहती कि किसी लड़की का जीवन मेरी तरह अंधकार में बीत जाए। अगर मैं पढ़ी लिखी होती उम्र भर दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। शिक्षा तो बेटे जीवन का उजियारा है।

साइकिल रिक्शा 

उसकी साइकिल रिक्शा पर हर रोज़ कोई न कोई नया जोड़ा बैठ जाता और वह पसीने में डूबा हुआ चुप-चाप अपना रिक्शा हांकता रहता। इन जोड़ों की बातें सुन कर उसे आश्चर्य भी होता और कुढ़न भी। वही कसमें-वादे, आसमान से चाँद तारे लाने की बातें, नोक-झोंक और गिले-शिकवे। 
एक अमीरज़ादा था की अड्डे पर उसी को ढूंढ लेता और खामोशी से रिक्शे पर बैठ जाता। ना मोलभाव करता और ना यह पूछता कि जाने की मर्ज़ी है या नहीं। वह हर बार किसी नई प्रेमिका के साथ नज़र आता और रास्ते भर उस से इश्क़ जताता, बीवी बनाने के सपने दिखाता और फिर सिनेमा के अँधेरे में गुम हो जाता। 
दिन भर रिक्शा चलाने के बाद जब वह थक कर चूर हो जाता  तो देसी के दो चार पेग चढ़ा  कर अपनी प्रीमिका को याद करता जिसको वह पांच वर्ष पूर्व गांव के बस स्टैंड पर यह कहकर छोड़ गया था कि वह शहर से ढ़ेर सारा रुपया कमा कर लौट आए गा और फिर उसके साथ घर बसाए गा। आजतक ना वह दौलत ही इकट्ठा कर पाया और ना ही गांव वापस जा सका।
कुछ दिन पहले उसको एक मित्र का पत्र मिला। लिखा था कि "एक महीना हुआ तुम्हारी भैरवी कैंसर की बीमारी के कारण सरकारी अस्पताल में दम तोड़ बैठी। उसकी लाश को ले जाने वाला कोई न मिला क्यूंकि उसकी विधवा माँ पहले ही मर चुकी थी। 
       
व्याकुल ज्वाला
 
अगरतला में हमारे सामने एक जनजातीय जोड़ा रहता था। औरत बड़ी शर्मीली और अल्पभाषी थी मगर बहुत गर्म और जोशीली। कई बार कोशिश के बावजूद मेरी पकड़ में नही आई। 
साल भर वहां रहने के बाद मेरी बीवी मैके चली गई और घर में मैं और मेरा बेटा रह गया। चूँकि मेरा बेटा मेरे आने से पहले ही घर पहुँच जाता था  इसलिए चाबियाँ सामने पड़ोसियों के पास रखनी पड़ती थीं। प्रातः जाते समय मैं कॉल बेल दबाता, क़बाइली पड़ोसन दरवाज़ा खोल कर सामने खड़ी हो जाती, सिर को ऊपर उठाये बिना ख़ामोशी से चाबियाँ ले लेती और फिर दरवाज़ा बंद करके अंदर चली जाती। तीन साढ़े तीन बजे मेरा बेटा स्कूल से लौट कर आ जाता और उसे चाबियाँ मांग कर अपने घर में घुस जाता। 
एक दिन मैं चार बजे के आसपास दफ्तर से घर लौट आया। घर में ताला देख कर परेशान हुआ कि बेटा अब तक स्कूल से वापस क्यों नहीं आया है। खैर मैंने चाबियाँ लेने के लिए पड़ोसन की कॉल बेल बजाई। कुछ देर बाद वह नाईट गाउन में प्रकट हुई। मुझे सामने पाकर वह हैरान व परेशान देखती रही। उसके चेहरे पर अजीब सी लाली और दीप्ती नज़र आ रही थी। विवशतावश वह पीछे मुड़ी और चाबियाँ लाकर मुझे देदीं। इतने में मेरी नज़र अपने बेटे के स्कूल बैग पर पड़ी जो सामने कुर्सी पर रखा हुआ था मगर मैंने किसी शंका को व्यक्त किए बिना चाबियाँ ले लीं और अपने घर के अंदर चला गया। 
जिज्ञासा के कारण मैं ने अपने दरवाज़े की दरार से पडोसी के दरवाज़े पर नज़र रखी। कुछ पंद्रह बीस मिनट बाद दरवाज़ा खुला और मेरा बेटा डरा-डरा सहमा-सहमा, दाएं-बाएं देखता हुआ वहां से निकल आया। 
घर के अंदर आकर वह मेरे पूछे बग़ैर ही बोल उठा, "पापा,  आज ना  स्कूल में फुटबॉल मैच हो रहा था इस लिए देर हो गई।"
 
बेजोड़ता की व्यथा  

उनका वैवाहिक जीवन प्रारंभ से ही नफरतों और यातनाओं के हिंडोले में हिचकोले मारता रहा। इसके बावजूद वह बीते हुए बीस वर्षों में एक दुसरे के साथ चिपके रहे। स्त्री की कोख से तीन बच्चे पैदा हुए फिर भी दोनों एक  दुसरे के लिए अजनबी रहे। कई मध्यस्थों ने समझौता कराने के प्रयास किये लेकिन समस्याएं सुलझने की बजाय उलझती चली गईं। ऐसी बेगानगी में अगर कोई सहानुभूति रखने वाला हमदर्द मिल जाये तो आत्मसमर्पण करने में देर नहीं लगती। पिछले वर्ष पति की ज़िन्दगी में एक और स्त्री ने क़दम रखा। विचारों की अनुरूपता और व्यवहारों की समानता ने दोनों को शारीरिक और मानसिक तौर पर इतना निकट लाया कि एक दुसरे के बग़ैर जीना मुश्किल होने लगा। इस संबंध की भनक पड़ते ही पत्नी बिफर गई और क्रोध से उग्र होकर वह अपनी बैरी से झगड़ने के लिए उसके घर पुहंची और चिल्लाने लगी, "तुम्हें यह पेशा अपनाना था  तो क्या मेरा ही घर मिला? तुमने मेरे घर को बर्बाद कर दिया। मेरे बच्चों का भविष्य ख़राब कर दिया। तुम सोच रही हो कि मैं तुम्हें यूँ ही जाने दूँगी। मैं तुम दोनों के जीवन को नरक बना दूँगी। तुम मेरे रास्ते से हट जाओ और मेरे पति को छोड़ दो अन्यथा मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।" 
प्रेयसी ने अति अधिक धीरज और सहनशीलता का प्रदर्शन किया। उसे सोफे पर बैठने की विनती की, फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक निकाल कर उसके सामने रख दी और जब उसको एहसास हुआ कि गुस्सा कम हो चूका है तो बड़ी विनम्रता और शालीनता से बोली, "बहन मैं तुम्हारे दुःख दर्द को समझ सकती हूँ। यह सच है कि तुम उसकी विवाहित धर्मपत्नी हो और क़ानून के अनुसार तुम्हें उसपर पूरा हक़ बनता है परन्तु इतना तो सोचो कि तुम गत  बीस वर्षों से एक ही छत के नीचे दो अजनबियों की तरह ज़िन्दगी बसर कर रहे हो। इसमें कोई शक नहीं कि तुम मुझ से अपना पति छीन सकती हो मगर उसे कदापि अपना जीवन साथी नहीं बना सकती। फैसला तुम्हें करना होगा मुझे नहीं।" 
      
             
     














Friday, April 1, 2016

Raftar, Samardar Darakht, Ravan, Andhe ki Lathi, Cigarette:رفتار ؛ثمردار درخت ؛راون؛اندھے کی لاٹھی؛سگریٹ; UrduAfsancheاردو افسانچے ;HindiLaghuKahaniyan हिंदी लघु कहानियां

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AndheKiLathi,Cigarette
رفتار ؛ثمردار درخت ؛راون؛اندھے کی لاٹھی؛سگریٹ
UrduAfsancheاردو افسانچے ;
HindiLaghuKahaniyan हिंदी लघु कहानियां 

गति
माया अपनी खिड़की से डामर बिछी सड़क पर घंटों ट्रैफिक की आवाजाही देखना पसंद करती है। बसों, ट्रकों, कारों, मोटर साइकिलों, स्कूटरों और पथिकों का कभी न ख़त्म होने वाला दृश्य उसे बहुत अच्छा लगता है। तेज़ गति से उसको अत्यधिक अभिरुचि है। तेज़ गाड़ी को देखकर वह  ख़ुशी से झूम उठती है। 
कल एक अजीब सी घटना घटी। एक खाली ट्रक दनदनाते हुए, हवा से बातें करते हुए सामने से निकल गया। यह कोई नई बात नहीं थी। प्रायः ट्रक जितना खाली होता है उतनी ही तेज़ गति से दौड़ता है। माया को ट्रक की रफ़्तार देखकर अजीब सा आनंद आ रहा था। वह मन ही मन में ड्राइवर को शाबाशी दे रही थी। "शाबाश तेज़... और तेज़... इससे भी तेज़....!"उस की आँखें ट्रक का पीछा कर रही थीं परन्तु होंठ सिले हुए थे। 
एक मनुष्य जो फूँक-फूँक कर क़दम उठाने  का आदी है बहुत समय से ट्रैफिक के कम होने के इंतज़ार में सड़क की एक तरफ खड़ा था। ट्रैफिक की आवाजाही को देख कर वह सड़क पार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। 
ट्रक अभी ज़्यादा दूर नहीं जा चूका था कि टायर घिसटने की ज़ोरदार आवाज़ आई और ऐसा लगा कि ट्रक के पहियों को तेज़ी से रोकने की कोशिश की गई हो। पहियों के नीचे एक दरिद्र और अनाश्रित बूढा, जिसने ज़िन्दगी में कभी गलती से भी कोई नियम तोड़ने की कोशिश नहीं की थी, कुचला जा चूका था। आज भी वह सावधानी से दाएं-बाएं देखकर ज़ेबरा क्रासिंग पर सड़क पार कर रहा था कि ना जाने कहाँ से ट्रक प्रकट हुआ। देखते ही देखते उसके शरीर से रक्त का फव्वारा फूट पड़ा और सड़क पर फैलता चला गया। 
पुलिस ने घटना की जगह पर ट्रक ड्राइवर बलदेव सिंह और ट्रक मालिक सेठ दौलत राम के नाम ऍफ़ आई आर दर्ज की। 

फलदार वृक्ष
  
हाजी सन्नाउल्लाह अपने सेबों के बागों के बीचों बीच जा रहा था कि अनवर दौड़कर उसके पास आया और फिर उसके साथ हो लिया। पेड़ फलों से लद्दे हुए थे। हाजी साहब ने उनकी ओर इशारा करते हुए अपने पुत्र को मार्गदर्शन हेतु कहा, " अनवर बेटे, देखो इन फलों से भरे हुए पेड़ों को, इन सब की शाखाएं धरती की और झुकी हुई हैं। पेड़ पर जितना अधिक फल होता है उतना ही वह झुक जाता है। हमें इस से सीख लेना चाहिए।"
अनवर थोड़ी देर चुप रहा किन्तु फिर उसे रहा न गया। "अबू जान, आपका अवलोकन अनुचित है। यह अनिवार्य नहीं है कि फलों से भरा हुआ हर वृक्ष झुका हुआ हो। आप हाल ही में हज करने गए थे क्या आपने वहां खजूर  के पेड़ नहीं देखे? सुपारी, नारियल और केले के पेड़ों के बारे में सुना तो होगा अगर देखा ना हो। सब स्तम्भ के समान उगते हैं, कहीं कोई शाखा नहीं होती और इन के सीधे तने के ठीक ऊपरी सिरे पर भारी भरकम फल लगते हैं। यह सच है कि सेब, नाशपाती, चेरी और आड़ू आदि की शाखाएं फलों के बोझ से झुकी रहती हैं मगर यह निष्कर्ष सभी वृक्षों पर लागू नहीं होता।" 
बेटे का उत्तर सुन कर हाजी साहब अवाक् हो गए।

रावण
 
दशहरे की रात मैं और मेरा बेटा राम लीला मैदान में रावण के पुतले को जलता छोड़ कर वापस अपने घर लौट रहे थे कि मेरे बेटे ने मुझे संबोधित किया, "पापा इस रावण का दहन क्यों किया जाता है?"
"बेटे रावण एक राक्षस था जिसने भगवान श्रीराम की निर्मल और सौम्य पत्नी सीता जी का अपहरण किया था। सीता जी को वापस पाने के लिए राम जी ने उसकी लंका ढहा दी और उसको मार डाला।"
"वह तो एक बार हो गया पर हम हर वर्ष रावण के पुतले को क्यों जलाते हैं। क्या वह हर वर्ष दोबारा जन्म लेता है?" वह भोलेपन से पूछने लगा मगर मुझे यूँ लगा कि उसकी बात में बड़ा वज़न है। 
मैं असमंजस में पड़ गया। वास्तविकता तो यही है कि दहन के बाद रावण  हर वर्ष फ़ीनिक्स पक्षी की मानिन्द दुबारा जन्म लेता है और हमें उसको फिर से अग्नि को अर्पण करना पड़ता है। मगर यह बात मैं अपने बेटे को कैसे समझाता इसलिए मैंने बात काटते हुए उत्तर दिया, "बेटे यह त्यौहार हर वर्ष हम इसलिए मनाते हैं ताकि हमें यह याद रहे कि बुराई की हमेशा हार होती है और अच्छाई की जीत।" 
फिर दोनों चुप-चाप चलते रहे परन्तु मैं सोचने लगा कि इस सांकेतिक अभिव्यक्ति से भी कौनसा फ़र्क़ पड़ता है। हम लोग हर वर्ष मनोरंजन के लिए यह तमाशा करते हैं मगर अपने अंदर के रावण को कौन जलाता है।

अंधे की लाठी 

सिराजुद्दीन ने पीo एचo डीo के लिए अपने अनुसन्धान का विषय 'तवाइफ़ का पेशा - कारण और रोकथाम' चुन लिया। कई वेश्यालयों की खाक छानी और कई वारांगनाओं का साक्षात्कार लिया। इनमें से एक वैश्या के साथ हुई बात-चीत काफी महत्वपूर्ण थी। उसे यहाँ नक़ल कर रहा हूँ। 
"इस पेशे में आने का क्या कारण था?" सिराजुद्दीन ने प्रश्न किया। 
सकीना हंस दी और फिर कहने लगी, "एक कारण यह था की मैं एक गरीब  किसान की बेटी थी। दूसरा कारण यह था की तीन साल लगातार हमारी धरती वर्षा की बूंदों के लिए तरस गई और मेरे अबू क़र्ज़ में डूब गए। हिम्मत हार कर उन्होंने आत्महत्या कर ली। माँ ने चार बच्चों का बीड़ा उठा लिया। पहले घर-घर काम शरू किया और फिर जिस्मफरोशी के दलदल में फँस गई। तीनों बेटे एक एक करके माँ को छोड़ कर शहर की भीड़ में ना जाने कहाँ खो गए। माँ की हालत पर तरस खा कर मैंने एक दलाल से पांच हज़ार लेकर माँ को दे दिए और स्वयं इस शहर में अम्माँ के हाँ शरण ली। 
"घर की याद नहीं आती?"
"वहां रखा ही क्या है। क़र्ज़ा उतारने के लिए ज़मीन बिक गई। बेटे जिनके लिए मन्नतें मांगी गई थीं वह ग़ायब हो गए। अब बूढी माँ बची थी सौ उसको हाल ही में यहाँ लेकर आगयी। 
सिराजुद्दीन सोच में पड़ गया कि माता-पिता बेटों के लिए मन्नतें क्यों मांगते हैं।
 
सिगरेट
 
आम पत्नियूं की तरह मेरी पत्नी ने भी विवाह के कुछ दिन बाद ही मुझ पर शासन करने की ठान ली। कहने लगी, "आप यह सिगरेट पीना छोड़ दीजिये, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। मुझे उसके रोबदार स्वर से इतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना इस बात पर कि विवाह से पूर्व हमारा मुआशिक़ा करीब पांच साल चलता रहा और हम कई बार किसी बाग़ या रेस्टोरेंट में मिलते रहे। बातों-बातों में मैं उसके सामने दो-तीन सिगरेट फूँका करता था। उसने कभी भी मुझे सिगरेट पीने पर नहीं टोका। इसके विपरीत वह मेरे सिगरेट पीने को सराहती और उसमें भी रोमांस तलाश करती। अगर मेरी याददाश्त मुझे धोका नहीं दे रही है उसने खुद भी कई बार मेरे हाथ से सिगरेट छीन कर दो चार कश लगाए और फिर कुछ देर खांसती रही।
खैर मैंने थोड़ी देर सोच कर उत्तर दिया, "तुम्हें मालूम है कि मैं दस साल का था जबसे मैं सिगरेट पी रहा हूँ जबकि तुम पांच साल पहले मेरी ज़िन्दगी में आई। अगर आज में एक नए दोस्त के कहने पर पुराने दोस्त को छोड़ दूँ तो क्या यह मुमकिन नहीं कि कल मैं किसी और के कहने पर तुम्हें छोड़ दूँ?"
वह मेरी बात का मतलब समझ गई और उसके बाद फिर कभी मुझको सिगरेट छोड़ने को नहीं कहा।