Thursday, April 30, 2020

Kaudi Ke Teen Teen;कौड़ी के तीन तीन;کوڑی کے تین تین ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Kaudi Ke Teen Teen;कौड़ी के तीन तीन;
کوڑی کے تین تین 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

कौड़ी के तीन तीन
गरीबों की समस्याएं भी विचित्र होती हैं। मेरे फूफा जी श्रीनगर से साठ किलोमीटर दूर रहते थे। उनके जन्म दिन पर पिता जी उन्हें इक्यावन रुपए शगुन के तौर पर मेरे हाथ भेजना चाहते थे। एक दिन पहले दफ्तर जाते समय उन्होंने इकहत्तर रुपए मेरे हाथ में यह कहकर थमा दिए कि इक्यावन रुपए फूफा जी को देना और बीस रुपए बस में आने जाने का किराया। 
उस दिन मैं रात गए घर लौट आया कि रास्ते में एक चटाई विक्रेता मिल गया जिस के सिर पर केवल तीन घास की चटाइयां (वगुव) बची थीं। यह चटाइयां अत्यधिक ठंड से बचने के लिए बहुत लाभदायक होती हैं। मैंने यूँही क़ीमत पूछी तो उसने एक की क़ीमत सौ रुपए बताई और तीन ढाई सौ रुपए में देने को तैयार हो गया। मैंने कहा कि मेरे पास केवल सत्तर रुपए हैं, अगर तीनों दोगे तो खरीद लूँ गा। बहुत भाव-ताव के बाद वह मान गया और मैं तीनों चटाइयां लेकर जोशपूर्ण घर पहुँच गया। सोचा था पिता जी इतनी सस्ती चटाइयां देखकर बहुत प्रसन्न होंगे मगर वह तो आग बबूला हो गए। चूँकि महीना समाप्त होने में अभी दो दिन बाक़ी थे, उनके पास बस यही इकहत्तर रूपए बचे थे और उन्हें किसी से उधार लेना गवारा न था। 
दुसरे रोज़ प्रातः उठ कर ना जाने कहाँ से वह लाचारी में सत्तर रुपए उधार ले कर आए और मेरे हवाले कर दिए। उनके चेहरे पर सतत क्रोध और उदासी देख कर मुझे शर्म महसूस हो रही थी और एक कश्मीरी कहावत याद आ रही थी, 'हारि हुस करि क्या हारि रुस' (कौड़ी के सब जहाँ में नक़्शो नगीन हैं. कौड़ी न हो तो कौड़ी के फिर तीन तीन हैं [नज़ीर ])

 
        

Tuesday, April 28, 2020

Katba...!;शिलालेख;!...کتبہ ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Katba...!;शिलालेख;!...کتبہ 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

शिलालेख.....! 

यहाँ एक बेसहारा अनपढ़ औरत दफ़न है जो सारी उम्र अपने लेखक पति के झूठे आरोपों का उत्तर नहीं दे पाई। 


Monday, April 27, 2020

Shutur Murgh; शुतुरमुर्ग; شتر مرغ ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Shutur Murgh; शुतुरमुर्ग; شتر مرغ  
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

शुतुरमुर्ग  

मैं उठा और खिड़की का पर्दा हटाया। 
बाहर नरसंहार हो रहा था और मकान जल रहे थे जिनके धुंए से कुछ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। तथापि इतना तो स्पष्ट था कि यह सब कुछ मेरे मकान से बहुत दूर हो रहा था। इसलिए मैंने भगवान् का  शुक्र अदा किया। मैं वापस अपनी रज़ाई में शुतुरमुर्ग की तरह सिर दबाये घुस गया और निश्चिन्त सो गया। 

Sunday, April 26, 2020

Karva Chauth: करवा चौथ; کروا چوتھ ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Karva Chauth: करवा चौथ; کروا چوتھ 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

करवा चौथ 
सब औरतें चन्द्रमा की प्रतीक्षा कर रही थीं। उसने भी दिन भर व्रत रखा था और अपने स्वामी का इंतज़ार कर रही थी। 
वह हमारे पड़ोस में रहती थी। ऐसा कोई दिन व्यतीत नहीं होता था जब वह अपने पति के साथ लड़ती झगड़ती ना थी और लड़ते लड़ते दुर्वचन ना  कहती थी। कभी कभी वह इस सीमा तक चली जाती की भगवान् से अपने पति को उठाने की प्रार्थना करती। उसका पति शारीरिक रूप से कमज़ोर था, इसलिए सब कुछ सहन कर लेता जब तक वह स्वयं ही चुप ना हो जाती। 
अंततः चन्द्रमा ने अपनी शक्ल दिखाई और मेरी अर्धांगनी ने मेरा चेहरा छलनी में से देखकर पूजा शरू कर दी। अकस्मात् हम दोनों की नज़रें अपने पड़ोसियों पर पड़ीं जो यही कार्यवाही दूसरी छत पर कर रहे थे। उन्हें देख कर मेरी पत्नी से रहा ना गया। कहने लगी, "क्या आप अनुमान लगा सकते  हैं?"
मैंने पुछा, "किस बारे में?"
उसने कहा, "हमारी पड़ोसन ने आज पति के मरने की दुआ मांगी होगी या जीने की?"
मुझे कोई उत्तर सूझ नहीं रहा था इसलिए खामोश रहना ही उचित समझा।    

Jahez Ki Karamaat;दहेज का चमत्कार;جہیز کی کرامات ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Jahez Ki Karamaat;दहेज का चमत्कार;جہیز کی کرامات 
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दहेज का चमत्कार 
यह उन दिनों की बात है जब मैं अशोक होटल दिल्ली के कश्मीर गवर्नमेंट एम्पोरियम ब्रांच में मैनेजर था। वहां के टेलीफोन एक्सचेंज का इंचार्ज मेरा अच्छा मित्र बन गया। मैं अक्सर उसके पास चाय या कॉफ़ी पीने के लिए चला जाता और बहुत समय तक गप्पें हांकता। विनायक अग्रवाल की काय  मध्यम, रंग सावंला,और शरीर मांसल था। परन्तु मिलनसार और मृदुभाषी था। 
एक रोज़ उसने मुझे सूचना दी कि दो दिन पहले उसकी मंगनी हो गयी और शादी दुसरे महीने होने वाली है। बातों बातों में यह भी बताया कि उसे तीन  लाख रुपए दहेज के तौर पर मिल रहे हैं। उन दिनों लाखों का महत्व उतना ही होता था जितना आज कल करोड़ों का होता है। मुझे आश्चर्य हुआ कि विनायक में ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जिसके कारण इतना सारा दहेज मिल रहा है। 
खैर विवाह हुआ और मैं भी अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुआ। उसकी धर्मपत्नी के दर्शन करते ही मेरा दिल धक् से रह गया। मुझे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया कि अग्रवाल इतने महंगे दामों क्यूँकर बिक गया। उसकी अर्धांग्नी भारी भरकम, श्याम वर्ण और कुछ हद तक कुरूप थी। देखने में वह उसकी माँ जैसी लग रही थी।     



Saturday, April 25, 2020

Yeh Kaisa Rishta: यह कैसा रिश्ता; یہ کیسا رشتہ ;Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Yeh Kaisa Rishta: यह कैसा रिश्ता; یہ کیسا رشتہ 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

यह कैसा रिश्ता !
मैं और मेरी पत्नी तेजपुर असम से वापस टँगावैली, अरुणाचल प्रदेश जा रहे थे कि रास्ते में सेसा के पास चाय नाश्ता करने के लिए रुक गए। रेस्टोरेंट में प्रवेश करते ही मेरी दृष्टि एक अधीनस्थ अफसर पर पड़ी जो टँगावैली में अपने फील्ड पोस्ट ऑफिस का निरीक्षण करके वापस अपने हेडक्वार्टर जा रहा था। उसके साथ एक सांवली महिला थी जो देखने में कुछ जवान लग रही थी। उसने हमें अपने पास बैठने के लिए आमंत्रित किया और हम दोनों के लिए डोसा और चाय का आर्डर दे दिया। 
बहुत देर तक मैं ऑफिस की बातें करता रहा जबकि मेरी श्रीमती जी बिलकुल खामोश रही। मुझे कुछ संदेह सा हो गया क्यूंकि वह बात करने के बग़ैर रह ही नहीं सकती। खैर नाश्ता करने के पश्चात् जब हम एक दुसरे से विदा हो गए तो मैंने अपनी पत्नी से रोष प्रकट किया, "तुमने उसकी बीवी से बात क्यों नहीं की, तुम अपने आप को ना जाने क्या समझती हो?"
"वह कौन सी उसकी बीवी है, वह तो उसकी बहु है जिस को वह अपने पास रखता है जबकि अपनी बीवी को बेटे के पास रख छोड़ा है।" उसने शरारत भरे लहजे में उत्तर दिया।  

   
 





Hum Gudaz; स्नेहवान; ہم گداز ; Afsancha; लघुकहानी ;افسانچہ

Hum Gudaz; स्नेहवान; ہم گداز 
 Afsancha; लघुकहानी ;افسانچہ 

स्नेहवान 
रास्ते में वह मुझ से अचानक टकरा गयी और फिर मेरे साथ चलने को तैयार हो गयी। संयोग से मैं उन दिनों एक घनिष्ट मित्र के माध्यम से एक संसद सदस्य के फ्लैट में दो दिनों के लिए ठहरा हुआ था क्यूंकि उस समय संसद सत्र नहीं चल रहा था। घर में प्रवेश करके मैंने उसको आराम और संतोष से बैठने को कहा। कुछ समय तक किसी हिचकिचाहट के बग़ैर बातें हुईं। फिर वह उठी, बाथरूम में नहा-धो लिया, खुशबूदार साबुन और इत्र से अपना बदन महकाया और बालों को खुला छोड़ कर अपनी छातियों पर तौलिया बांधे बाहर निकल आई जैसे मुझसे कोई पर्दादारी ना हो। उसके बाद हम दोनों बियर पीने में व्यस्त हो गए। इतने में मैंने होम डिलीवरी से खाना मंगवाया और फिर दोनों उत्साह से भोजन करने लगे यहाँ तक कि एक दुसरे के मुंह में भी कुछ प्यार भरे निवाले डाल दिए। 
रात कैसे व्यतीत हुई इस का आभास ही नहीं हुआ। प्रातः प्रस्थान के समय मैंने उसे पांच सौ रुपए देने की कोशिश की मगर उसने लेने से इंकार कर दिया। प्रतिक्रिया के तौर पर वह केवल मुस्कराती रही और ऑटो रिक्शा में बैठकर दिल्ली की भीड़ में खो गयी।    




Friday, April 24, 2020

Shareef Badmash;शरीफ बदमाश;شریف بدمعاش ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Shareef Badmash;शरीफ बदमाश;شریف بدمعاش 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

शरीफ बदमाश
हर कोई उसे भोला-भाला, सज्जन और सभ्य समझता था जबकि मुझे गंवार, अशिष्ट और जड़बुद्धि घोषित किया गया था। उसकी शिक्षा ही ऐसी थी कि बड़े आदर से सबके साथ पेश आता, खाने की मेज़ पर उचित शिष्टाचार का प्रदर्शन करता और किसी से कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करता था। युवतियां कभी भी उससे दूर रहने की कोशिश नहीं करती थीं। 
समय गुज़रने के साथ साथ हमारी नज़दीकियां बढ़ती गईं। एक रोज़ वह काम करने वाली बाई को गले से लगा रहा था कि मैं अकस्मात उसके कमरे में घुस गया और उसका यह राज़ खुल गया। तत्पश्चात उसके व्यक्तित्व पर पड़े मोटे पर्दे परत-दर-परत खुलते चले गए। मालूम हुआ की श्रीमान जी इस अल्पायु में भी हस्तमैथुन और समलैंगिकता में रूचि रखते हैं। 
उसको क़रीब से जानने के बाद मुझे बोध हुआ कि मनुष्य भी हिमशैल के समान होता है।      


Humjinsiyat;समलैंगिकता;ہم جنسیت ;Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Humjinsiyat;समलैंगिकता;ہم جنسیت 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 
समलैंगिकता
मुझे उसकी विकृति का एहसास पहली मुलाक़ात में  ही हुआ। उसने अपने दोस्तों से भी मेरा परिचय कराया। मालूम हुआ कि तीनों समलिंगी रिश्ते में बंधे हुए हैं और एक दुसरे की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। मेरे स्वास्थ्य को देख कर उसने मुझे भी ऑफर किया था। 
दो वर्ष बाद मैं उसके विवाह में सम्मिलित हुआ। फिर उनके दो बच्चे भी हुए। जब भी मैं उसकी फैमिली से मिलता सभी प्रसन्न तथा संतुष्ट नज़र आते थे। हर बार जब उसकी पत्नी का सामना होता तो दिल में यही ख्याल आता कि पूछ लूँ तुम्हें अपने पति की समलैंगिकता की खबर है या नहीं? अगर है तो फिर तुम उसके साथ कैसे निर्वाह कर रही हो? परन्तु हर बार मन की मन में ही रह जाती।    

Thursday, April 23, 2020

Zehni Tashnagi:मानसिक असंतोष;ذہنی تشنگی : Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Zehni Tashnagi:मानसिक असंतोष;
ذہنی تشنگی 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 
मानसिक असंतोष 
पहली भेंट में मुझे उसपर तरस आ गया था कि वह साधारण सी क्लर्की करने पर क्यों संतुष्ट थी। वह सुन्दर थी, बुद्धिमान थी, उद्यमी थी, और फर फर अंग्रेजी बोलती थी। मुझे अपने विचार व्यक्त करने में कोई संकोच नहीं हुआ। "तुम विवेकशील हो, तुम्हारे पास टैलेंट है, तुम और भी शिक्षा प्राप्त कर सकती हो, क्यों अपने करियर को बर्बाद करने पर उतारू हो?" उसने कोई उत्तर नहीं दिया केवल मुस्कराकर मेरे कमरे से बाहर निकल गई। 
उसके साथ मेरी दूसरी मुलाक़ात बाईस वर्ष बाद हुई। वही मोहिनी सी सूरत, वही उत्साह, वही उत्सुकता, कुछ भी नहीं बदला था सिवाय इसके कि वह उत्कट कामुकता की अभ्यस्त हो चुकी थी। मानसिक असंतोष को दूर करने के लिए वह अपने शरीर का शोषण कर रही थी। इस बार हमें एक दुसरे को निकट से देखने का अवसर मिला। कहने लगी, "काश उस दिन जब मैंने आप को पहली बार देखा था आप विवाहित ना होते....।" उसने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया। हमारी नज़दीकियां इतनी बढ़ गयीं कि हम एक दुसरे की शारीरिक पिपासा को दूर करने की कोशिश करते रहे। अलबत्ता आत्मा फिर भी अपरिचित ही रही।            

Liaison Officer:संपर्क अधिकारी ;لیازن افسر : Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Liaison Officer:संपर्क अधिकारी ;لیازن افسر 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

संपर्क अधिकारी 
स्वामीजी से मेरा परिचय मकान मालिक गोविन्द गोस्वामी ने कराया। वह उसका छोटा भाई था। अर्धांगिनी के स्वर्गवास होने के बाद स्वामीजी ने अपनी बेटी को उसकी नानी के घर छोड़कर सन्यास  लिया था। गोविन्द ने स्वामीजी को बताया कि शिक्षित होने के बावजूद मुझे उपयुक्त नौकरी नहीं मिली है। 
बात चीत के दौरान स्वामीजी ने यह भेद खोला कि उसके शिष्यों में आयात निर्यात से जुड़े कई बड़े अफसर हैं जिनके माध्यम से उसने अपने कई व्यापारी शिष्यों को आयात निर्यात के लाइसेंस दिलवाये। अब वह इस फ़िक्र में है कि बेटी के भविष्य  के लिए स्वयं एक एक्सपोर्ट हाउस खोल ले जिसके लिए उसे एक संपर्क अधिकारी की आवश्यकता होगी। स्वामीजी के अनुसार मुझसे बेहतर बुद्धिमान और शिक्षित युवक कहाँ मिले गा।
मैं उसके प्रस्ताव से तुरंत प्रसन्न हुआ परन्तु थोड़ी देर के बाद मुझे ख्याल आया कि कहीं स्वामीजी मुझे चारा तो नहीं डाल रहा है और बाद में मुझे अपनी बेटी से विवाह करने के लिए मजबूर करेगा। ना जाने कैसी होगी.....? बहुत सोच विचार करके मैंने उत्तर दिया। "वास्तव में  स्वामीजी मैं केवल शिक्षक की नौकरी का इच्छुक हूँ। बिज़नेस मैनेजर तो इस समय भी हूँ मगर इसमें मुझे कोई रूचि नहीं है।"   

 

Wednesday, April 22, 2020

Ahde Hazir Ka Farhaad;नवीन काल का फरहाद; عہد حاظر کا فرہاد; (Urdu/Hindi); Afsancha; लघु कहानी ;افسانچہ

Ahde Hazir Ka Farhaad;नवीन काल का फरहाद 
عہد حاظر کا فرہاد 
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नवीन काल का फरहाद 
मांझी के नगर से अस्पताल 55 किलोमीटर दूर था मगर पहाड़ी रास्ते से केवल 15 किलोमीटर रह जाता था। पर्वतीय मार्ग से उसने यह दूरी पैदल तय कर ली। कंधे पर कराहती हुई उस की ज़ख़्मी धर्मपत्नी थी जिसकी सांसें उखड रही थीं। वह जैसे गया वैसे ही लौट आया। फ़र्क़ केवल इतना था कि वापसी पर फाल्गुनी कफ़न में लिपटी हुई थी। 
उसने संकल्प लिया कि वह पर्वत काट कर छोटे नगर और शहर के बीच रास्ता निकाले गा। दुसरे दिन वह उठा और हथोड़ा, छेनी और टोकरा लेकर चल पड़ा। बाईस वर्ष वह हर दिन धरती का कुछ हिस्सा समतल कर लेता, पर्वत काटता, गहरे गड्डे भर देता और बड़े बड़े पत्थरों को कूट कर उन्हें समतल की हुई ज़मीन पर बिछा देता। गांव के लोग उसे बावला समझने लगे। धीरे धीरे सड़क आगे बढ़ती गयी और तमाशा  देखने वालों की भीड़ कम होती गई। फिर एक दिन ऐसा आया कि पर्वतीय सड़क तैयार हो गई जिस पर कंकड़ बिछे हुए  थे और बेल गाड़िया तथा अन्य परिवहन के साधन आसानी से चल रहे थे। 
उस दिन मांझी बहुत प्रसन्न हुआ। वह घर में जाकर अपनी अर्धांग्नी के फोटो से बातें करने लगा, "फाल्गुनी, मैं तुम्हारी ज़िन्दगी तो बचा ना पाया मगर अब और किसी की ज़िन्दगी नष्ट नहीं होगी।"       

Ida'apasand; ادعا پسند ;मिथ्याभिमानी; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Ida'apasand; ادعا پسند ;मिथ्याभिमानी
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

मिथ्याभिमानी
जिन दिनों मैं छुट्टियाँ मनाने श्रीनगर गया था मेरे मित्रों ने शर्त लगाई कि एक मिथ्यभिमानी बहरूपिये को वश में करके दिखाओ तो जानें। ऊपरी आमदनी के कारण मैं सुपरिधानित भी था और विनीत भी। 
उधर बहरूपिये ने अपना नाम, वेशभूषा, धर्म और बलाघात सब कुछ बदल डाला था। पहली मुलाक़ात में उसने अपना परिचय दे दिया, "हेलो, आई ऍम डी के जॉन, ए फ्री लांसर।" इतना तो मुझे पता चला था कि उसका असली नाम द्वारिका नाथ जान है, नगर के अंदरूनी इलाक़े में रहता है और एक साधारण अंग्रेजी दैनिक का रिपोर्टर है। मैंने उत्तर दिया, "ओह आई सी, मय नेम इज़ लक्ष्मण बुड़शाह, कल ही बैंगलोर से आया हूँ। वहां पर मेरी बहुत बड़ी लेदर गुड्स की फैक्ट्री है। यहाँ बिज़नेस के सिलसिले में आया हूँ। वैसे बाई द वे आप क्या करते हैं?" मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। "जस्ट ऐ फ्री लांसर।"
"तब तो आप मेरे काम के आदमी निकले। आई एम लुकिंग फॉर ए पी आर ओ इन मय कंपनी।"
उसके बाद वह मुझे 'सर, सर' करता रहा और साये की तरह मेरा पीछा करता रहा जब तक मैंने निर्दिष्ट दिन दिल्ली की फ्लाइट पकड़ ली और उसे विदा हुआ। वह एयरपोर्ट पर बाज़ू हिलता रह गया।                 

 

Tuesday, April 21, 2020

Keena Toz:کینہ توز ;विद्वेषी : (Urdu/Hindi); Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Keena Toz:کینہ توز ;विद्वेषी 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

विद्वेषी 
वह अपनी बेटी से जितना प्यार करता था उतनी ही नफरत उसकी माँ से करता था यहाँ तक कि उसकी उपस्थिति से विकल होता था। अंततः दोनों का तलाक़ हो गया और पिता ने बेटी को माँ से छीन कर अपने पास रख लिया। 
बेटी पढ़ लिख कर जवान हो गई और डॉक्टर बनकर अमेरिका चली गई। माँ की जुदाई ने उसे खिन्न और प्रतिशोधी बना दिया था। अंततः वह फेसबुक के माध्यम से अपनी माँ को ढूंढने में सफल हो गई और फिर भारत आकर उसको अपने साथ ले गई। 
वृद्ध पिता को खर्चे के लिए वह अमेरिका से रुपये भेजती रही मगर उसको देखने की इच्छा कभी ना हुई। उन दिनों भी नहीं जब वह प्राणनाशक कैंसर में ग्रस्त अस्पताल में तड़प रहा था। 



Budhape Ka Sahara:بڑھاپے کا سہارا ;बुढ़ापे का सहारा : (Urdu/Hindi); Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Budhape Ka Sahara:بڑھاپے کا سہارا 
बुढ़ापे का सहारा 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

बुढ़ापे का सहारा 
युवावस्था में दोनों पति पत्नी लड़के की कामना में एक के बाद एक बच्चे पैदा करते रहे। बेटा तो पैदा हुआ नहीं परन्तु तीन लड़कियों ने जन्म लिया जिनमें से एक पोलियो ग्रसित होने के कारण विकलांग थी। ज़िद्दी पत्नी की वजह से पिता पलायनवादी बन गया। डाक विभाग में मामूली सी नौकरी करने के बाद सेवानिवृत हुआ। उसे ना तो लड़कियां जवान होते नज़र आईं और ना ही उनका घर बसाने की कभी कोई चिंता की। अब तो ना पैसा था और ना  ही बल। उधर घरवाली वैसे ही निठल्ली थी और तबियत से आक्रामक भी। बड़ी लड़की का विवाह हो गया परन्तु कुछ महीनों में ही वह वापस आकर मायके में आकर बैठ गई और एक मानसिक रूप से विक्षिप्त बेटे को जनम दिया। 
घर का सहारा थी तो बस दूसरी शिक्षित बेटी ऋद्धिमा  जिसे भाग्य ने साथ दिया और खाड़ी में नौकरी मिल गई। वह घर के लिए टकसाल बन गई। प्रायः माता-पिता की अभिलाषा होती है कि लड़की के हाथ जल्दी से पीले हूँ लेकिन यहाँ माजरा उसके उलट था। ऋद्धिमा अपनी तेज़ी से बढ़ती उम्र की अनदेखी करती हुई माता-पिता और बहनों को संभालने में जुट गई यहाँ तक कि उसके बालों में चांदी के तार नज़र आने लगे। 
इससे क्या कहिए, माता-पिता की परजीविता या फिर संतान का प्रार्थभाव, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।  



Monday, April 20, 2020

Talbees: تلبیس ; छद्मावरण ; Afsancha; लघु कहानी ;افسانچہ

Talbees: تلبیس ; छद्मावरण 
 Afsancha; लघु कहानी ;افسانچہ 

छद्मावरण 
सज़ा से बचने के लिए वह छद्मावरण करके तमिलनाडु से जम्मू पहुँच गया। जटाधारी, लम्बी दाढ़ी, गेरवे वस्त्र, मतलब साधु का वेश धारण कर लिया। पेट की आग बुझाने का भारतवर्ष में इससे आसान तरीक़ा और क्या हो सकता है। 
जम्मू में उन दिनों नई कॉलोनियां बस रही थीं। उसने एक खंडहर में शरण ली, साफ़ सफाई करके एक मूर्ति स्थापित की, दो चार घंटियाँ लटका दीं और खंडहर को मंदिर में बदल दिया। धीरे धीरे श्रद्धालुओं का ताँता बंध गया और वह पुजारी के रूप में उनको अमृत और प्रसाद वितरण करने लगा। समय के साथ साथ मंदिर का विस्तार होता रहा, इंसान के क़द का शिवलिंग बीचों बीच खड़ा किया गया और जगह जगह मूर्तियां लगाई गईं। प्रातः सूर्योदय से पहले और शाम सूर्यास्त के बाद मंदिर से लाउड स्पीकर पर फ़िल्मी और ग़ैर-फ़िल्मी भजनों की आवाज़ें सारे इलाक़े में गूंजने लगीं। 
चूँकि यह समय पढ़ाई का होता है और कश्मीरी विस्थापित शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं, बच्चों को इस शोर-गुल के कारण कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था परन्तु कोई कुछ भी ना बोल पा रहा था कि कहीं किसी की भावनाओं को ठेस ना पहुँचे।             



Live-in Rishta: لو ان رشتہ ; लिव-इन-रिश्ता ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Live-in Rishta: لو ان رشتہ ; लिव-इन-रिश्ता 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

लिव इन रिश्ता 
सहकर्मी की सलाह पर निर्मला अपने पति पर कोर्ट केस दर्ज कराने के लिए केहर सिंह के पास चली गयी। उसने सहकर्मी के सामने ही वकील को विस्तार से बताया कि उसके पति को दूसरी औरत से अवैध संबंध हैं जिसके कारण वह अपने घर की उपेक्षा कर रहा है। वह घर के खर्चों के लिए पति के वेतन का उचित हिस्सा चाहती है। जब बाहर आई तो सहकर्मी ने पुछ लिया, "निर्मला तुम किस औरत की बात कर रही थी जो तुम्हारे हस्बैंड के साथ लिव इन रिश्ते में रहती है।"
"उसका नाम शीतल कौर है और सी पी एस स्कूल में टीचर है।"
"अरी पगली, तुम्हें मालूम नहीं कि शीतल कौर केहर सिंह की पत्नी है जो बहुत समय पहले अपने पति को छोड़ कर चली गई।      

Sunday, April 19, 2020

Khudgharzi: خود غرضی ; स्वार्थ ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Khudgharzi: خود غرضی  स्वार्थ 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

स्वार्थ 
घर छोड़ते समय वह अपनी बेटी को भी साथ ले गई। भरी दुनिया में कहाँ जाएगी उसे मालूम ना था मगर रोज़ रोज़ की मार-पीट से तो छुटकारा मिला। अंततः एक दलाल ने सहारा दिया, लालकुर्ती में  मामूली किराए  पर एक दुर्गंध-युक्त कमरा दिलवाया और फिर प्रतिदिन ग्राहक लाने लगा। कई सहव्यवसायी महिलाओं ने परामर्श दिया कि बेटी को इस धंधे से दूर रखो और शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल भेजा करो। पढ़े गी, लिखे गी तो हो सकता है कुछ अच्छा काम करने के योग्य बन जाये परन्तु वह नहीं मानी। उसे सदा यह आशंका  रहती थी कि कहीं बेटी शिक्षा प्राप्त करके भाग गई तो खुद उस का क्या होगा।   

Saturday, April 18, 2020

Rukawatein:रुकावटें; رکاوٹیں ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Rukawatein:रुकावटें; رکاوٹیں 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

रुकावटें

ना तो वह उसकी कोख से पैदा हुआ था और ना उसके स्तन से दूध पिया था। फिर वह उसकी माँ कैसे हुई? पिता की दूसरी शादी करने के बाद कोई उसकी माँ थोड़े ही बन सकती है? वह बहुत दिनों से इसी चिंता में छटपटा रहा था। 
फिर एक रोज़ उसे रहा ना गया वह सौतेली माँ की नखरेबाज़ी और प्रलोभन को रोक न सका। देखते ही देखते सारी रुकावटें कपूर की तरह उड़ गयीं।  

Friday, April 17, 2020

Extension: ایکسٹنشن ; एक्सटेंशन ; Afsancha; लघु कहानी ; افسانچہ

Extension: ایکسٹنشن ; एक्सटेंशन 
 Afsancha; लघु कहानी ; افسانچہ 

एक्सटेंशन 
वह क्लास में कभी हाज़री लगाती ही नहीं थी।  महीने के अंत में सब विद्यार्थियों को उपस्थित दिखा कर पहली तारीख को प्रिंसिपल के सामने रजिस्टर रख देती। इस महीने रजिस्टर देखकर प्रिंसिपल साहब आग बबूला हो गए, एक नाम पर ऊँगली रखकर उसने शिक्षिका से पूछ लिया, "यह विद्यार्थी तो पिछले महीने दरिया में डूब कर मर गया फिर इसको तुमने हाज़िर कैसे दिखाया?"
अध्यापिका ने किसी तिलमिलाहट या बोखलाहट के बग़ैर अपने चेहरे पर सहानुभूति के लक्षण उभारे और फिर उत्तर दिया, "सर मैं भगवान की तरह निर्दयी नहीं हूँ। यह बेचारा तो इतनी अल्पायु में मर गया, मैंने सोचा मैं इसे जीवन तो नहीं दे सकती कम से कम उपस्थिति रजिस्टर में एक महीने का एक्सटेंशन तो दे ही सकती हूँ।"       



Insaaf:انصاف ;न्याय ; Afsancha; लघु कहानी ; افسانچہ

Insaaf:انصاف ;न्याय 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

न्याय 

डाक सहायकों की भर्ती  हो रही थी। जिन प्रतियाशियों ने लिखित परीक्षा पास की थी  वह अब मौखिक परीक्षा देने के लिए आए थे। मेरे अलावा दो और साक्षात्कर्ता थे। तीनों मेम्बर बारी बारी प्रश्न पूछ रहे थे और फिर मार्क्स शीट पर उनके प्रदर्शन के हिसाब से नंबर दे रहे थे। 
कुछ समय के बाद एक लड़की की बारी आई। सामान्यतः उसे भी प्रश्न पूछे गए जिनमें से वह कुछ एक के उत्तर दे पाई। इससे पहले कि मैं अवार्ड शीट पर कुछ लिख देता दोनों साक्षात्कर्ता मुझसे संबोधित हुए, "सर यह लड़की हमारे ही डिपार्टमेंट के पोस्ट मास्टर की बेटी है।" वास्तव में वह इशारों में मुझे यह कहना चाहते थे कि इस लड़की को पास करलें, हम तो कर ही रहे हैं। परन्तु मेरी अन्तरात्मा ने मुझे गलत काम करने से रोक लिया। 
सारी रात मैं सो न सका क्यूंकि मेरी चेतना मुझे झिड़कती रही। "तुम्हारी इस कार्यवाही से न्याय बलि चढ़ गया। यह लड़की बाहर जहाँ कहीं भी जाये गी उसे नौकरी इसलिए नहीं मिले गी क्यूंकि वहां सिफारिश या रिश्वत चलती है। चूँकि उसका पिता एक गरीब डाकपाल है वह ना रिश्वत दे सके गा और ना ही  सिफारिश ला सके गा। बेचारी के लिए यह एक अवसर था कि सभी साक्षात्कर्ता  अपने थे परन्तु तुम्हारी ईमानदारी उसके लिए बाधा बन गई।"     

Thursday, April 16, 2020

Bosa-e-Hayat; प्राण-संचार; بوسہ حیات ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Bosa-e-Hayat; प्राण-संचार; بوسہ حیات 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

प्राण-संचार 
वृद्ध यात्री सामने रेल गाड़ी की सीट पर बैठी एक सूंदर युवती को कन-अँखियों से देख रहा था और मन ही मन में सोच रहा था कि काश यह अप्सरा मुझे जवानी के दिनों में मिल गयी होती, मैं भगवान से और कुछ भी ना मांगता। वह उसके बालों, होंठों और आँखों पर दिल ही दिल में न्योछावर हो रहा था। 
दो तीन स्टेशन क्रॉस करने के पश्चात् न जाने बुड्ढे को क्या हो गया, सारे शरीर में कुछ कंपकंपी सी हुई। वह सीने को ज़ोर से पकड़ते हुए इशारों में कम्पार्टमेंट के यात्रियों से सहायता मांगने लगा। युवती उठी, शीघ्र उसको बर्थ पर लिटा दिया, उसके सीने को बार बार धौंकनी की तरह दबाने लगी, फिर उसके होंठों पर अपने होंठ  रख कर उसके मुंह में ज़ोर से हवा फूंकने लगी जब तक वह दोबारा सांस लेने लगा। फिर अपने बैग से स्टेथस्कोप निकाल कर उसके दिल की धड़कन जांचने लगी और अंततः उसको इंजेक्शन लगा दिया। 
होश में आकर  वृद्ध यात्री ताज्जुब से उस युवती को अपनी तीमारदारी करते देख रहा था। उसको नया जीवन मिल गया था इसलिए वह पश्चातापी नज़रों से उस युवती को मन ही मन में कृतज्ञता प्रकट कर रहा था।  उसके सामने अब कोई मोहिनी नहीं थी बल्कि एक मसीहा खड़ा था।     



Mughalta:भ्रांति ; مغالطہ ; Afsancha;लघु कहानी; افسانچہ

Mughalta:भ्रांति ; مغالطہ 
 Afsancha;लघु कहानी; افسانچہ 

भ्रांति 

वह मेरे बेटे को ढूंढ रही थी। उन दिनों मोबाइल का चलन नहीं था। घर में एक ही टेलीफोन था। घर के सभी सदस्यों के लिए उसी पर टेलीफोन कॉल्स आ जाती थीं। मैंने रिसीवर उठाया और कान से लगा कर 'हेलो' कह दिया। 
"हेलो अंकल, मैं पूजा बोल रही हूँ। क्या मैं सुरेश से बात कर सकती हूँ?"
"बेटे मैंने कहा ना कि वह यहाँ नहीं है। माँ के साथ सुबह सवेरे कहीं चला गया है। यह बार-बार टेलीफोन करने का क्या तुक है? दस मिनट पहले ही तो मैंने तुम को बतलाया था।" मेरे स्वर में कुछ विमुखता सी थी। 
"सॉरी अंकल मैं तो पहली बार टेलीफोन कर रही हूँ" वह कुछ समय के लिए सोच में पड़ गयी और उसके बाद फिर बोल पड़ी, "ओह अंकल मैं समझ गयी, वास्तव में मैं हिंदी वाली पूजा बोल रही हूँ। हो सकता है इससे पहले अंग्रेजी वाली पूजा ने टेलीफोन किया होगा। वह भी हमारी क्लास फेलो है और आम तौर पर अंग्रेजी में बात करती है।"       




Wednesday, April 15, 2020

Hairaton Ke Silsile:हैरतों के सिलसिले;حیرتوں کے سلسلے ; Afsancha;लघु कहानी; افسانچہ

Hairaton Ke Silsile:हैरतों के सिलसिले;
حیرتوں کے سلسلے  
 Afsancha;लघु कहानी; افسانچہ 
हैरतों के सिलसिले

शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह मानसिक तनाव के कारण माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध दुसरे शहर में नौकरी ढूंढने चला गया। उसकी आरज़ू थी कि कुछ बड़ा बन कर ही वह अपने माँ बाप को मुंह दिखाए गा ताकि उन्हें इस बात का सबूत मिले कि उसने जो निर्णय लिया था वह उचित था। सच तो यह है कि माता-पिता उसको कपूत समझते थे इसलिए उसे कोई उमीद ना थी। बहुत परिश्रम के पश्चात् अंततः एक प्राइवेट कंपनी में उसकी नियुक्ति हुई और पदोन्नतियां प्राप्त करते करते वह कुछ वर्षों में नेशनल सेल्स मैनेजर के पद पर नियुक्त हुआ। 
यही अवसर था कि वह माता-पिता को आश्चर्यचकित कर सकता था। इसलिए एक दिन प्रातः पैतृक घर के द्वार पर दस्तक दी। द्वार खुला मगर एक अजनबी आदमी सामने खड़ा पाया। उसने पुछा, "कहिये किस से मिलना है?"
"आप.......? यह तो मेरा अपना घर है। मेरे पिता जी श्री योगिंदर प्रसाद जी का घर है यह। मैं उनका बेटा हूँ।"
"ओह मैं समझा, मगर वह तो छह महीने पहले स्वर्ग सिधार गए। उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया था। उनकी धर्मपत्नी ने घर बेच कर वृन्दावन के विधवा आश्रम में शरण ली है।"      



Kunba Parwari:کنبہ پروری भाई-भतीजावाद ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Kunba Parwari:کنبہ پروری ;भाई-भतीजावाद 
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भाई-भतीजावाद 

शिलांग जाते हुए मुझे सिल्चर, आसाम के गेस्ट हाउस में रुकना पड़ा। वहां से प्रस्थान करते समय मेरे ड्राइवर ने कहा, "सर यहाँ का अधीक्षक डाकघर बहुत ही भ्रष्ट है। पिछले वर्ष ग्रामीण डाक सेवकों की भर्ती के दौरान मेरी बहन ने अपने बेटे की सिफारिश करने के लिए मुझ पर ज़ोर डाला। मजबूर होकर मैंने साहब से अनुरोध किया परन्तु उसने कोई विचार नहीं किया। कुछ महीनों बाद मेरी बहन ने नाराज़ होकर मुझसे कहा, "भाई तुम पर निर्भर रहती तो कुछ भी ना होता। इंस्पेक्टर से सीधे बात कर ली, तीस हज़ार में सौदा तय हुआ और बेटा जी डी एस नियुक्त हुआ।"
मैंने कुछ अंतराल के बाद उसे पुछा, "चन्दन यह बताओ कि तुम्हारे दोनों बेटे डाक विभाग में जी डी एस पदों पर काम कर रहे हैं, उनके पास ऐसी कौन सी शैक्षिक योग्यता है जिसके आधार पर उन्हें दुसरे शिक्षित बेरोज़गारों के स्थान पर प्राथमिकता दी गयी। यह भी तो एक क़िस्म की रिश्वत ही है। कोई रिश्वत लेता है और कोई अपने परिवार के सदस्यों को नौकरी दिलवाता है। बात तो एक जैसी हुई।        



Tuesday, April 14, 2020

Promotion: پرموشن पदोन्नति ;Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Promotion: پرموشن पदोन्नति 
Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

पदोन्नति

कोर कमांडर के पद पर जनरल समीर चंद्र की पदोन्नति हुई। उनकी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी की चर्चा हर तरफ थी यहाँ तक कि जिस किसी की अलमारी में सड़े-गले पिंजर थे कोर कमांडर के पदभार ग्रहण करने से पहले ही उसने साफ़ कर दिए। जनरल साहब को देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ, जैसा सुना था वैसा ही सख्त काम लेने वाला और क़ानून का पालन करने वाला पाया। 
एक बार यूँही मेस बार में एक सहकर्मी से वार्तालाप हुआ। मैंने कहा, "कितना महान है मेरा देश, ईमानदारों का सम्मान करता है। जनरल समीर चंद्र ने अपनी सत्यवादिता के कारण कई अफसरों को पीछे छोड़ कर तरक्की पाई।"
सहकर्मी ने ठहाका लगाकर उत्तर दिया, "कर्नल साहब, किस दुनिया में रहते हो, जनरल समीर चन्दर के साथ जनरल गजेंद्र यादव को भी पदोन्नति मिली है। उस जैसा भ्रष्ट और बेईमान अफसर तो मेरी नज़र से और कोई नहीं गुज़रा।          



Asasa:اثاثہ संपत्ति ; Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ

Asasa:اثاثہ संपत्ति 
 Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ 

संपत्ति 

"कल आधी रात को मेरे घर में कोई चोर घुस आया और कमरे की अलमारियों की तलाशी लेने लगा।" प्रोफेसर खुर्शीद विद्यार्थियों से संभोधित हुआ। "चोर की आहट पाकर मैं ख़ामोश रहा। फिर चुपचाप बिस्तर से उठकर मैं उसके पीछे खड़ा हो गया और अलमारी पर टोर्च की रोशनी डाल दी। सामने अलमारी में किताबें ही किताबें थीं।" उसके बाद मैंने चोर से कहा, "भाई यही संपत्ति है मेरे पास। जो भी किताब पसंद आये उठा कर ले जाओ। मैं केवल रौशनी दिखा सकता हूँ।"
चोर की नज़र ज्यूंही मुझ पर पड़ी वह घबरा कर भागने की कोशिश करने लगा परन्तु मैं उसके रास्ते में खड़ा हो गया। "क्यों भारी लगती हैं क्या?"
उसने मेरे पैर पकड़ लिए और कहने लगा, "जनाब मुझे माफ़ कर दो, मैं ग़लत घर में घुस आया हूँ। मुझे जाने दो। इन किताबों से मेरा क्या काम?"
"यही तो ग़लतफ़हमी है तुम्हारी। इनसे दोस्ती की होती तो आधी रात को यहाँ चोरी करने नहीं आते।"        



Monday, April 13, 2020

Qalam Ki Dhar: क़लम की धार; قلم کی دھار ; Afsancha; लघु कहानी ; افسانچہ

Qalam Ki Dhar: क़लम की धार; قلم کی دھار  
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 
क़लम की धार 

उस की तलाक़शुदा बीवी से किसी रिश्तेदार ने पुछा, "तुम्हारे बारे में तुम्हारा पूर्व-पति अनाप शनाप लिखता रहता है। वह तुम्हारे चरित्र पर हमेशा कीचड़ उछालता है। वह जो कुछ लिखता है क्या वह सच है?"
बीवी का चेहरा संजीदा और संगीन हो गया। उत्तर दिया, "उसके पास तलवार जैसी क़लम है, सच को झूट और झूट को सच बना सकता है, मैं कैसे रोक सकती हूँ। मैं ठहरी अनपढ़ गँवार औरत, अपनी सफाई किसके सामने पेश करूँ। मैं ही एक इकलौती लेखक की पत्नी तो हूँ नहीं जो अपने पति की  क़लम से लहूलुहान हो रही है, यह तो सदियों से यूँ ही चला आ रहा है।"       

Mumaniat: अस्वीकरण;ممانعت ; Afsancha;लघु कहानी; افسانچہ

Mumaniat: अस्वीकरण;ممانعت 
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अस्वीकरण 

वह बार-बार अपने अतीत को खंगालता रहता।" अगर मेरी माँ ने ज़हर खाने की धमकी ना दी होती मैं इस समय मुंबई में कस्टम्स विभाग में ना जाने किस ऊँचे पद पर विराजमान होता।" मगर अब तो एक युग बीत गया था और वह कड़वी यादें अतीत का हिस्सा बन चुकी थीं। 
आज उस का इकलौता बेटा उसके सामने प्रार्थी बना खड़ा है क्यूंकि उसको अमरीका में बहुत अच्छी नौकरी मिल रही है और वह पिता जी से अनुमति चाहता है। पिता की आँखों में आंसुओं का एक सैलाब उमड़ आया, उसने दबे स्वर में इंकार कर दिया। उसे डर है की अगर बेटा चला जाये गा तो बुढ़ापे में वह किस के सहारे जिये गा।