Zehni Tashnagi:मानसिक असंतोष;
ذہنی تشنگی
Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ
मानसिक असंतोष
पहली भेंट में मुझे उसपर तरस आ गया था कि वह साधारण सी क्लर्की करने पर क्यों संतुष्ट थी। वह सुन्दर थी, बुद्धिमान थी, उद्यमी थी, और फर फर अंग्रेजी बोलती थी। मुझे अपने विचार व्यक्त करने में कोई संकोच नहीं हुआ। "तुम विवेकशील हो, तुम्हारे पास टैलेंट है, तुम और भी शिक्षा प्राप्त कर सकती हो, क्यों अपने करियर को बर्बाद करने पर उतारू हो?" उसने कोई उत्तर नहीं दिया केवल मुस्कराकर मेरे कमरे से बाहर निकल गई।
उसके साथ मेरी दूसरी मुलाक़ात बाईस वर्ष बाद हुई। वही मोहिनी सी सूरत, वही उत्साह, वही उत्सुकता, कुछ भी नहीं बदला था सिवाय इसके कि वह उत्कट कामुकता की अभ्यस्त हो चुकी थी। मानसिक असंतोष को दूर करने के लिए वह अपने शरीर का शोषण कर रही थी। इस बार हमें एक दुसरे को निकट से देखने का अवसर मिला। कहने लगी, "काश उस दिन जब मैंने आप को पहली बार देखा था आप विवाहित ना होते....।" उसने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया। हमारी नज़दीकियां इतनी बढ़ गयीं कि हम एक दुसरे की शारीरिक पिपासा को दूर करने की कोशिश करते रहे। अलबत्ता आत्मा फिर भी अपरिचित ही रही।
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