Hairaton Ke Silsile:हैरतों के सिलसिले;
حیرتوں کے سلسلے
Afsancha;लघु कहानी; افسانچہ
हैरतों के सिलसिले
शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह मानसिक तनाव के कारण माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध दुसरे शहर में नौकरी ढूंढने चला गया। उसकी आरज़ू थी कि कुछ बड़ा बन कर ही वह अपने माँ बाप को मुंह दिखाए गा ताकि उन्हें इस बात का सबूत मिले कि उसने जो निर्णय लिया था वह उचित था। सच तो यह है कि माता-पिता उसको कपूत समझते थे इसलिए उसे कोई उमीद ना थी। बहुत परिश्रम के पश्चात् अंततः एक प्राइवेट कंपनी में उसकी नियुक्ति हुई और पदोन्नतियां प्राप्त करते करते वह कुछ वर्षों में नेशनल सेल्स मैनेजर के पद पर नियुक्त हुआ।
यही अवसर था कि वह माता-पिता को आश्चर्यचकित कर सकता था। इसलिए एक दिन प्रातः पैतृक घर के द्वार पर दस्तक दी। द्वार खुला मगर एक अजनबी आदमी सामने खड़ा पाया। उसने पुछा, "कहिये किस से मिलना है?"
"आप.......? यह तो मेरा अपना घर है। मेरे पिता जी श्री योगिंदर प्रसाद जी का घर है यह। मैं उनका बेटा हूँ।"
"ओह मैं समझा, मगर वह तो छह महीने पहले स्वर्ग सिधार गए। उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया था। उनकी धर्मपत्नी ने घर बेच कर वृन्दावन के विधवा आश्रम में शरण ली है।"
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