Saturday, April 25, 2020

Hum Gudaz; स्नेहवान; ہم گداز ; Afsancha; लघुकहानी ;افسانچہ

Hum Gudaz; स्नेहवान; ہم گداز 
 Afsancha; लघुकहानी ;افسانچہ 

स्नेहवान 
रास्ते में वह मुझ से अचानक टकरा गयी और फिर मेरे साथ चलने को तैयार हो गयी। संयोग से मैं उन दिनों एक घनिष्ट मित्र के माध्यम से एक संसद सदस्य के फ्लैट में दो दिनों के लिए ठहरा हुआ था क्यूंकि उस समय संसद सत्र नहीं चल रहा था। घर में प्रवेश करके मैंने उसको आराम और संतोष से बैठने को कहा। कुछ समय तक किसी हिचकिचाहट के बग़ैर बातें हुईं। फिर वह उठी, बाथरूम में नहा-धो लिया, खुशबूदार साबुन और इत्र से अपना बदन महकाया और बालों को खुला छोड़ कर अपनी छातियों पर तौलिया बांधे बाहर निकल आई जैसे मुझसे कोई पर्दादारी ना हो। उसके बाद हम दोनों बियर पीने में व्यस्त हो गए। इतने में मैंने होम डिलीवरी से खाना मंगवाया और फिर दोनों उत्साह से भोजन करने लगे यहाँ तक कि एक दुसरे के मुंह में भी कुछ प्यार भरे निवाले डाल दिए। 
रात कैसे व्यतीत हुई इस का आभास ही नहीं हुआ। प्रातः प्रस्थान के समय मैंने उसे पांच सौ रुपए देने की कोशिश की मगर उसने लेने से इंकार कर दिया। प्रतिक्रिया के तौर पर वह केवल मुस्कराती रही और ऑटो रिक्शा में बैठकर दिल्ली की भीड़ में खो गयी।    




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