Asasa:اثاثہ संपत्ति
Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ
संपत्ति
"कल आधी रात को मेरे घर में कोई चोर घुस आया और कमरे की अलमारियों की तलाशी लेने लगा।" प्रोफेसर खुर्शीद विद्यार्थियों से संभोधित हुआ। "चोर की आहट पाकर मैं ख़ामोश रहा। फिर चुपचाप बिस्तर से उठकर मैं उसके पीछे खड़ा हो गया और अलमारी पर टोर्च की रोशनी डाल दी। सामने अलमारी में किताबें ही किताबें थीं।" उसके बाद मैंने चोर से कहा, "भाई यही संपत्ति है मेरे पास। जो भी किताब पसंद आये उठा कर ले जाओ। मैं केवल रौशनी दिखा सकता हूँ।"
चोर की नज़र ज्यूंही मुझ पर पड़ी वह घबरा कर भागने की कोशिश करने लगा परन्तु मैं उसके रास्ते में खड़ा हो गया। "क्यों भारी लगती हैं क्या?"
उसने मेरे पैर पकड़ लिए और कहने लगा, "जनाब मुझे माफ़ कर दो, मैं ग़लत घर में घुस आया हूँ। मुझे जाने दो। इन किताबों से मेरा क्या काम?"
"यही तो ग़लतफ़हमी है तुम्हारी। इनसे दोस्ती की होती तो आधी रात को यहाँ चोरी करने नहीं आते।"
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