Jannat Ka Visa:स्वर्ग का वीज़ा; جنّت کا ویزا
(اردو /हिंदी)
افسانچہ ;लघु कहानी; Ministory.
स्वर्ग का वीज़ा
जिन दिनों मैं वड़ोदरा में तैनात था एक ट्रेड यूनियन लीडर केंद्रीय सरकार की हज आयोजन समिति के साथ मक्का जाने की दौड़धुप कर रहा था, इसलिए अपने प्रार्थना पत्र पर मेरी सिफ़ारिश का इच्छुक था। सिफ़ारिश तो मैंने लिख दी मगर साथ ही उसको नसीहत भी की, "बसारत अली, सरकारी खर्चे पर हज क़बूल नहीं होता।"
बहुत समय बाद विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने मुझे अपने साथ कृष्ण की नगरी द्वारिका चलने का आदेश दिया। क्या करता, वरिष्ठों के आदेश का उल्लंघन करना असंभव है, इसलिए चल पड़ा। बातचीत के दौरान मालूम हुआ कि उन्हें जल्दी ही सेवामुक्त होना है, तीन धामों की यात्रा सरकारी खर्चे पर कर चुके हैं लेकिन चौथे धाम, द्वारिका, की यात्रा अभी बाक़ी है। इसलिए रिटायरमेंट से पहले वह आरज़ू भी पूरी करना चाहते हैं। जी में आया कि कह दूँ सरकारी खर्चे पर यात्रा स्वीकार नहीं होती मगर दो महीनों के बाद उन्हें मेरी गोपनीय रिपोर्ट लिखनी थी इसलिए खामोश रहना ही उचित समझा।
अभी तक दोनों स्वर्ग के वीज़ा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
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