Bosa-e-Hayat; प्राण-संचार; بوسہ حیات
Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ
प्राण-संचार
वृद्ध यात्री सामने रेल गाड़ी की सीट पर बैठी एक सूंदर युवती को कन-अँखियों से देख रहा था और मन ही मन में सोच रहा था कि काश यह अप्सरा मुझे जवानी के दिनों में मिल गयी होती, मैं भगवान से और कुछ भी ना मांगता। वह उसके बालों, होंठों और आँखों पर दिल ही दिल में न्योछावर हो रहा था।
दो तीन स्टेशन क्रॉस करने के पश्चात् न जाने बुड्ढे को क्या हो गया, सारे शरीर में कुछ कंपकंपी सी हुई। वह सीने को ज़ोर से पकड़ते हुए इशारों में कम्पार्टमेंट के यात्रियों से सहायता मांगने लगा। युवती उठी, शीघ्र उसको बर्थ पर लिटा दिया, उसके सीने को बार बार धौंकनी की तरह दबाने लगी, फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसके मुंह में ज़ोर से हवा फूंकने लगी जब तक वह दोबारा सांस लेने लगा। फिर अपने बैग से स्टेथस्कोप निकाल कर उसके दिल की धड़कन जांचने लगी और अंततः उसको इंजेक्शन लगा दिया।
होश में आकर वृद्ध यात्री ताज्जुब से उस युवती को अपनी तीमारदारी करते देख रहा था। उसको नया जीवन मिल गया था इसलिए वह पश्चातापी नज़रों से उस युवती को मन ही मन में कृतज्ञता प्रकट कर रहा था। उसके सामने अब कोई मोहिनी नहीं थी बल्कि एक मसीहा खड़ा था।
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