Karva Chauth: करवा चौथ; کروا چوتھ
Afsancha;लघु कहानी;افسانچہ
करवा चौथ
सब औरतें चन्द्रमा की प्रतीक्षा कर रही थीं। उसने भी दिन भर व्रत रखा था और अपने स्वामी का इंतज़ार कर रही थी।
वह हमारे पड़ोस में रहती थी। ऐसा कोई दिन व्यतीत नहीं होता था जब वह अपने पति के साथ लड़ती झगड़ती ना थी और लड़ते लड़ते दुर्वचन ना कहती थी। कभी कभी वह इस सीमा तक चली जाती की भगवान् से अपने पति को उठाने की प्रार्थना करती। उसका पति शारीरिक रूप से कमज़ोर था, इसलिए सब कुछ सहन कर लेता जब तक वह स्वयं ही चुप ना हो जाती।
अंततः चन्द्रमा ने अपनी शक्ल दिखाई और मेरी अर्धांगनी ने मेरा चेहरा छलनी में से देखकर पूजा शरू कर दी। अकस्मात् हम दोनों की नज़रें अपने पड़ोसियों पर पड़ीं जो यही कार्यवाही दूसरी छत पर कर रहे थे। उन्हें देख कर मेरी पत्नी से रहा ना गया। कहने लगी, "क्या आप अनुमान लगा सकते हैं?"
मैंने पुछा, "किस बारे में?"
उसने कहा, "हमारी पड़ोसन ने आज पति के मरने की दुआ मांगी होगी या जीने की?"
मुझे कोई उत्तर सूझ नहीं रहा था इसलिए खामोश रहना ही उचित समझा।
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