Wednesday, April 15, 2020

Kunba Parwari:کنبہ پروری भाई-भतीजावाद ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Kunba Parwari:کنبہ پروری ;भाई-भतीजावाद 
 Afsancha;लघु कहानी ; افسانچہ 

भाई-भतीजावाद 

शिलांग जाते हुए मुझे सिल्चर, आसाम के गेस्ट हाउस में रुकना पड़ा। वहां से प्रस्थान करते समय मेरे ड्राइवर ने कहा, "सर यहाँ का अधीक्षक डाकघर बहुत ही भ्रष्ट है। पिछले वर्ष ग्रामीण डाक सेवकों की भर्ती के दौरान मेरी बहन ने अपने बेटे की सिफारिश करने के लिए मुझ पर ज़ोर डाला। मजबूर होकर मैंने साहब से अनुरोध किया परन्तु उसने कोई विचार नहीं किया। कुछ महीनों बाद मेरी बहन ने नाराज़ होकर मुझसे कहा, "भाई तुम पर निर्भर रहती तो कुछ भी ना होता। इंस्पेक्टर से सीधे बात कर ली, तीस हज़ार में सौदा तय हुआ और बेटा जी डी एस नियुक्त हुआ।"
मैंने कुछ अंतराल के बाद उसे पुछा, "चन्दन यह बताओ कि तुम्हारे दोनों बेटे डाक विभाग में जी डी एस पदों पर काम कर रहे हैं, उनके पास ऐसी कौन सी शैक्षिक योग्यता है जिसके आधार पर उन्हें दुसरे शिक्षित बेरोज़गारों के स्थान पर प्राथमिकता दी गयी। यह भी तो एक क़िस्म की रिश्वत ही है। कोई रिश्वत लेता है और कोई अपने परिवार के सदस्यों को नौकरी दिलवाता है। बात तो एक जैसी हुई।        



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