Friday, April 24, 2020

Shareef Badmash;शरीफ बदमाश;شریف بدمعاش ; Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ

Shareef Badmash;शरीफ बदमाश;شریف بدمعاش 
 Afsancha;लघु कहानी ;افسانچہ 

शरीफ बदमाश
हर कोई उसे भोला-भाला, सज्जन और सभ्य समझता था जबकि मुझे गंवार, अशिष्ट और जड़बुद्धि घोषित किया गया था। उसकी शिक्षा ही ऐसी थी कि बड़े आदर से सबके साथ पेश आता, खाने की मेज़ पर उचित शिष्टाचार का प्रदर्शन करता और किसी से कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करता था। युवतियां कभी भी उससे दूर रहने की कोशिश नहीं करती थीं। 
समय गुज़रने के साथ साथ हमारी नज़दीकियां बढ़ती गईं। एक रोज़ वह काम करने वाली बाई को गले से लगा रहा था कि मैं अकस्मात उसके कमरे में घुस गया और उसका यह राज़ खुल गया। तत्पश्चात उसके व्यक्तित्व पर पड़े मोटे पर्दे परत-दर-परत खुलते चले गए। मालूम हुआ की श्रीमान जी इस अल्पायु में भी हस्तमैथुन और समलैंगिकता में रूचि रखते हैं। 
उसको क़रीब से जानने के बाद मुझे बोध हुआ कि मनुष्य भी हिमशैल के समान होता है।      


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