Udan, Roshan Zameer Aurat, Cycle Rickshaw, Shola-e-Betaab, Ajnabiyat ka Azab
اڑان ؛روشن ضمیر عورت ؛سائیکل رکشہ ؛
شعلہ بیتاب ؛اجنبیت کا عذ اب
UrduAfsancheاردو افسانچے ;
HindiLaghuKahaniyan;हिंदी लघु कहानियां
उड़ान
फ़राज़ अंद्राबी और उसकी बेगम उस समय कितने खुश हुए थे जब उनके तीन बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक के बाद एक अमेरिका चले गए जैसे दुनिया की सारी दौलत उनके हाथ लगी हो। तीनों ने स्थानीय लड़कियों से विवाह कर लिया और वहीँ पर स्थायी निवासी बन गए। एक बेटी बची थी सो वह भी विवाह करके अपने पति के साथ ब्रिटैन चली गई।
एक दिन दोनों डिस्कवरी चैनल पर हवाई जहाज़ के अविष्कार के बारे में प्रोग्राम देख रहे थे कि किस तरह सबसे पहले यूनान के एक कारीगर डेडेलस ने स्वतंत्रता पाने के लिए अपने और अपने बेटे इकारस के लिए पक्षियों के पंख मोम से जोड़ कर बड़े पंख बनाये थे और उनकी सहायता से उड़ने की कोशिश की थी। उसने इकारस को सचेत किया था कि ज़्यादा ऊँची उड़ान ना भरे परन्तु वह ना माना और सूरज के ताप से उसके पंखों का मोम पिघल गया और वह औंधे मुंह समुद्र में गिर गया।
मियां-बीवी दोनों की आँखों में आंसूं तेरने लगे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि उन्होंने भी अपने बच्चों को समुद्र पर उड़ने के लिए ऐसे ही पंख लगाए थे।
उद्धारवादी औरत
मुझे आश्चर्य हो रहा था कि एक नारी ने, जो स्वयं अनपढ़ थी, कैसे घर-घर जाकर लोगों को निरक्षरता के दुष्प्रभाव के बारे में सूचित करने का भार उठाया था। वह बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, को स्कूल भेजने के लिए गांव वालों को प्रोत्साहित करती थी। इसके अतिरिक्त वह उन्हें अपनी घरेलू समस्याएं जैसे वैवाहिक समस्याएं, मनोवैज्ञानिक उलझनें और रोज़गार के झमेले सुलझाने में भी मदद करती थी। सभी लोग उसको 'दीदी' के नाम से पुकारते थे।
उसको ज़िन्दगी से एक ही शिकायत थी। बाल विवाह के कारण उसकी अपनी शिक्षा चौथी श्रेणी से आगे नहीं बढ़ पाई थी और फिर क्षय रोग ने तीन वर्ष ही में उसे उसका पति छीन लिया था। फलस्वरूप उसको पूरी ज़िन्दगी वैधव्य में गुज़ारना पड़ा।
एक रोज़ मैंने डरते डरते उसे पुछा, "दीदी, आप इस उम्र में इतना परिश्रम क्यों करती हैं? अपने स्वास्थ का तो कुछ ख्याल करना चाहिए।"
"नहीं बेटे" वह बोली, "मैं नहीं चाहती कि किसी लड़की का जीवन मेरी तरह अंधकार में बीत जाए। अगर मैं पढ़ी लिखी होती उम्र भर दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। शिक्षा तो बेटे जीवन का उजियारा है।
साइकिल रिक्शा
उसकी साइकिल रिक्शा पर हर रोज़ कोई न कोई नया जोड़ा बैठ जाता और वह पसीने में डूबा हुआ चुप-चाप अपना रिक्शा हांकता रहता। इन जोड़ों की बातें सुन कर उसे आश्चर्य भी होता और कुढ़न भी। वही कसमें-वादे, आसमान से चाँद तारे लाने की बातें, नोक-झोंक और गिले-शिकवे।
एक अमीरज़ादा था की अड्डे पर उसी को ढूंढ लेता और खामोशी से रिक्शे पर बैठ जाता। ना मोलभाव करता और ना यह पूछता कि जाने की मर्ज़ी है या नहीं। वह हर बार किसी नई प्रेमिका के साथ नज़र आता और रास्ते भर उस से इश्क़ जताता, बीवी बनाने के सपने दिखाता और फिर सिनेमा के अँधेरे में गुम हो जाता।
दिन भर रिक्शा चलाने के बाद जब वह थक कर चूर हो जाता तो देसी के दो चार पेग चढ़ा कर अपनी प्रीमिका को याद करता जिसको वह पांच वर्ष पूर्व गांव के बस स्टैंड पर यह कहकर छोड़ गया था कि वह शहर से ढ़ेर सारा रुपया कमा कर लौट आए गा और फिर उसके साथ घर बसाए गा। आजतक ना वह दौलत ही इकट्ठा कर पाया और ना ही गांव वापस जा सका।
कुछ दिन पहले उसको एक मित्र का पत्र मिला। लिखा था कि "एक महीना हुआ तुम्हारी भैरवी कैंसर की बीमारी के कारण सरकारी अस्पताल में दम तोड़ बैठी। उसकी लाश को ले जाने वाला कोई न मिला क्यूंकि उसकी विधवा माँ पहले ही मर चुकी थी।
व्याकुल ज्वाला
अगरतला में हमारे सामने एक जनजातीय जोड़ा रहता था। औरत बड़ी शर्मीली और अल्पभाषी थी मगर बहुत गर्म और जोशीली। कई बार कोशिश के बावजूद मेरी पकड़ में नही आई।
साल भर वहां रहने के बाद मेरी बीवी मैके चली गई और घर में मैं और मेरा बेटा रह गया। चूँकि मेरा बेटा मेरे आने से पहले ही घर पहुँच जाता था इसलिए चाबियाँ सामने पड़ोसियों के पास रखनी पड़ती थीं। प्रातः जाते समय मैं कॉल बेल दबाता, क़बाइली पड़ोसन दरवाज़ा खोल कर सामने खड़ी हो जाती, सिर को ऊपर उठाये बिना ख़ामोशी से चाबियाँ ले लेती और फिर दरवाज़ा बंद करके अंदर चली जाती। तीन साढ़े तीन बजे मेरा बेटा स्कूल से लौट कर आ जाता और उसे चाबियाँ मांग कर अपने घर में घुस जाता।
एक दिन मैं चार बजे के आसपास दफ्तर से घर लौट आया। घर में ताला देख कर परेशान हुआ कि बेटा अब तक स्कूल से वापस क्यों नहीं आया है। खैर मैंने चाबियाँ लेने के लिए पड़ोसन की कॉल बेल बजाई। कुछ देर बाद वह नाईट गाउन में प्रकट हुई। मुझे सामने पाकर वह हैरान व परेशान देखती रही। उसके चेहरे पर अजीब सी लाली और दीप्ती नज़र आ रही थी। विवशतावश वह पीछे मुड़ी और चाबियाँ लाकर मुझे देदीं। इतने में मेरी नज़र अपने बेटे के स्कूल बैग पर पड़ी जो सामने कुर्सी पर रखा हुआ था मगर मैंने किसी शंका को व्यक्त किए बिना चाबियाँ ले लीं और अपने घर के अंदर चला गया।
जिज्ञासा के कारण मैं ने अपने दरवाज़े की दरार से पडोसी के दरवाज़े पर नज़र रखी। कुछ पंद्रह बीस मिनट बाद दरवाज़ा खुला और मेरा बेटा डरा-डरा सहमा-सहमा, दाएं-बाएं देखता हुआ वहां से निकल आया।
घर के अंदर आकर वह मेरे पूछे बग़ैर ही बोल उठा, "पापा, आज ना स्कूल में फुटबॉल मैच हो रहा था इस लिए देर हो गई।"
बेजोड़ता की व्यथा
उनका वैवाहिक जीवन प्रारंभ से ही नफरतों और यातनाओं के हिंडोले में हिचकोले मारता रहा। इसके बावजूद वह बीते हुए बीस वर्षों में एक दुसरे के साथ चिपके रहे। स्त्री की कोख से तीन बच्चे पैदा हुए फिर भी दोनों एक दुसरे के लिए अजनबी रहे। कई मध्यस्थों ने समझौता कराने के प्रयास किये लेकिन समस्याएं सुलझने की बजाय उलझती चली गईं। ऐसी बेगानगी में अगर कोई सहानुभूति रखने वाला हमदर्द मिल जाये तो आत्मसमर्पण करने में देर नहीं लगती। पिछले वर्ष पति की ज़िन्दगी में एक और स्त्री ने क़दम रखा। विचारों की अनुरूपता और व्यवहारों की समानता ने दोनों को शारीरिक और मानसिक तौर पर इतना निकट लाया कि एक दुसरे के बग़ैर जीना मुश्किल होने लगा। इस संबंध की भनक पड़ते ही पत्नी बिफर गई और क्रोध से उग्र होकर वह अपनी बैरी से झगड़ने के लिए उसके घर पुहंची और चिल्लाने लगी, "तुम्हें यह पेशा अपनाना था तो क्या मेरा ही घर मिला? तुमने मेरे घर को बर्बाद कर दिया। मेरे बच्चों का भविष्य ख़राब कर दिया। तुम सोच रही हो कि मैं तुम्हें यूँ ही जाने दूँगी। मैं तुम दोनों के जीवन को नरक बना दूँगी। तुम मेरे रास्ते से हट जाओ और मेरे पति को छोड़ दो अन्यथा मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।"
प्रेयसी ने अति अधिक धीरज और सहनशीलता का प्रदर्शन किया। उसे सोफे पर बैठने की विनती की, फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक निकाल कर उसके सामने रख दी और जब उसको एहसास हुआ कि गुस्सा कम हो चूका है तो बड़ी विनम्रता और शालीनता से बोली, "बहन मैं तुम्हारे दुःख दर्द को समझ सकती हूँ। यह सच है कि तुम उसकी विवाहित धर्मपत्नी हो और क़ानून के अनुसार तुम्हें उसपर पूरा हक़ बनता है परन्तु इतना तो सोचो कि तुम गत बीस वर्षों से एक ही छत के नीचे दो अजनबियों की तरह ज़िन्दगी बसर कर रहे हो। इसमें कोई शक नहीं कि तुम मुझ से अपना पति छीन सकती हो मगर उसे कदापि अपना जीवन साथी नहीं बना सकती। फैसला तुम्हें करना होगा मुझे नहीं।"