Kitabi Prem, کتابی پریم :
(Urdu/Hindi)
Afsancha; Laghu Kahani; افسانچہ
किताबी प्रेम
यह कहानी उस ज़माने की है जब न मोबाइल थे और न इन्टरनेट। प्यार को पत्रों के माध्यम से प्रकट किया जाता था। एक दिन तेरह वर्षीय प्रेम अपनी प्रेमिका रजनी को पत्र लिख रहा था कि अचानक मेरी दृष्टि उसपर पड़ी।
"यह तुम क्या नक़ल कर रहे हो? कोई कविता आधि लिख रहे हो क्या?" मैंने प्रश्न किया।
"नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। रजनी भी मेरी तरह पांचवीं में दो बार फ़ैल हो चुकी है। वह भी इसी पुस्तक में से क्रमबद्ध मेरे पत्रों का उत्तर देती है।"
"ओह मैं समझा। इससे बेहतर तो यह है कि टेलीग्राम की तरह तुम केवल नंबर लिख दिया करो और वह उस अंक का पत्र पढ़ लिया करेगी. इतनी मेहनत करने की क्या ज़रुरत है।"
"हाँ भैया तुमने अच्छा सुझाव दिया। मेरा तो इस ओर ध्यान ही नहीं गया।"
उस दिन के पश्चात् इत्र मले पत्रों में केवल यह शब्द नज़र आने लगे।"आँखों से प्यारी रजनी, नंबर सात, तुम्हारा सदा तुम्हारा, प्रेम।"
"मेरे दिल के राजा, नंबर आठ, तुम्हारे चरणों की धूल, रजनी।"
यह सिलसिला तब तक यूँ ही चलता रहा जब तक प्रेम घर से भाग कर दिल्ली की सड़कों पर जेबें कुतरने लगा ओर रजनी पांच हज़ार रुपयों के बदले मालेगांव में अश्लील फिल्मों में अपने शरीर की नुमाइश करने लगी।
उस दिन के पश्चात् इत्र मले पत्रों में केवल यह शब्द नज़र आने लगे।"आँखों से प्यारी रजनी, नंबर सात, तुम्हारा सदा तुम्हारा, प्रेम।"
"मेरे दिल के राजा, नंबर आठ, तुम्हारे चरणों की धूल, रजनी।"
यह सिलसिला तब तक यूँ ही चलता रहा जब तक प्रेम घर से भाग कर दिल्ली की सड़कों पर जेबें कुतरने लगा ओर रजनी पांच हज़ार रुपयों के बदले मालेगांव में अश्लील फिल्मों में अपने शरीर की नुमाइश करने लगी।
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