Prativad, प्रतिवाद : (Hindi)
Kahani; Katha; कहानी
उस दिन मैं कार से यात्रा कर रहा था. ड्राईवर को इस बात का एहसास था कि मुझे कॉन्फ्रेंस में देर हो रही है.इस लिए वह बहुत तेज़ी से गाड़ी चला रहा था. न जाने क्यों दिन कि शुरूआत उपशगुन से हुई थी. सुबह से ही घर में कुहराम मचा हुआ था. एक ओर बीवी की फरमाईशें ओर दूसरी ओर बच्चों की मांगें. दो चार दिन पहले पत्नी ने घरेलू कामों की लिस्ट थमा दी थी और आज सुबह सवेरे ही हिसाब मांगने लगी. बच्चों की फीस जमा करने की आखरी तारिख भी आज ही थी. यही नहीं मिलोनी की यूनिफार्म भी फट चुकी थी. इधर नौकरानी का पति पोलियोग्रस्त हो कर अस्पताल में भर्ती हो गया था और वह भी एडवांस वेतन मांग रही थी जैसे यह उत्तरदायित्व भी मेरा ही था. यही कारण था कि घर में समाचारपत्र पढ़ने का समय भी नहीं मिला. मैंने समाचारपत्र अपने साथ उठा लिया ताकि रास्ते में पढ़ सकूँ.
संपादकीय पन्ने पर मेरे चहेते जर्नलिस्ट का लेख छपा था. लेख इतना रुचिकर था कि लेखक की उंगलियाँ चूमने को जी चाह रहा था. कितना निडर और निर्भीक पत्रकार था. कितनी सच्चाई थी उस के लेख में. उसने अकेले ही प्रशासन में हर तरफ फैले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने का बीड़ा उठाया था. प्रशासन तंत्र की परतों को एक-एक करके वह उधेड़ता चला जा रहा था. मुझे उसकी निडरता और निर्भीकता पर गर्व था.
अन्तर्मन से आवाज़ आई. " अगर ऐसे ही दस पंद्रह कर्तव्यनिष्ट खोजी पत्रकार देश में पैदा हो जाएँ तो देश का भाग्य ही बदल जाए "
तत्पश्चात मैं अपने गिरेबान में झाँकने लगा.
इस बीच एकाएक गाड़ी जे जे कालोनी के पास तीव्र झटके के साथ रुक गयी. झटके के कारण मेरा समाचारपत्र हाथों से छूटकर कार की सीटों के बीच बिखर गया. "क्यों.... क्या हुआ.....? रुक क्यों गए?" समाचारपत्र समेटते हुए मैंने ड्राईवर से पुछा.
"सर गाड़ी के नीचे एक पिल्ला आ कर मर गया."
इतनी देर में सामने से एक बिफरी हुई काली कुतिया दौड़ती हुई चली आई और अपना खूंखार जबड़ा खोलकर श्वेत एम्बेसडर कार पर भोंकने लगी. हमारे इस देश की अफसरशाही में श्वेत एम्बेसडर का खूब प्रचलन है. इन एम्बेसडर कारों के सामने तो बड़े बड़ों की बोलती बंद हो जाती है फिर कुत्तों की क्या मजाल. मुझे यकीन था की कुतिया स्वयं ही थक हार कर चुप हो जाएगी.
"शायद पिल्ले की माँ होगी ?" मैंने ड्राईवर से पुछा मगर उसने सुनी अनसुनी कर दी. इस दरमियान एक पुलिसकर्मी कहीं से आ निकला और सलूट बजा कर कार को आगे बढ़ाने का इशारा करने लगा.
ड्राईवर ने फिर से गाड़ी का इंजन स्टार्ट कर लिया और पहले की भांति ही अपनी गाड़ी दौड़ाने लगा. कुतिया वहीँ उसी स्थान पर भौंकती रह गयी मगर उस फौलादी ढांचे का कुछ नहीं बिगाड़ सकी.
कांफ्रेंस समाप्त होने के बाद दिन के चार बजे जब हम उसी रास्ते से लौट रहे थे तो वही काली कुतिया न जाने कहाँ से फिर उसी स्थान पर प्रकट हो गयी. वह पागलों की तरह लगातार भौंकती और ललकारती हुई फुर्ती से अकस्मात कार के सामने आई. ड्राईवर स्टेरिंग पर नियंत्रण न रख सका और वह कुतिया भी गाड़ी के नीचे आकर लहुलुहान हो गयी.
गाड़ी थोड़ी देर बाद नियंत्रण में आ गयी और अपने आप ही रुक गयी.
वहां कुछ लोग एकत्रित हो गए. मैं गाड़ी से नीचे उतरा. अपने पीछे दृष्टि दौडाई. वहां सड़क पर कुतिया की तड़पती हुई लाश थी, बहता हुआ उसका गर्म गर्म रक्त और क्षतविक्षत अंतड़ियाँ नज़र आ रही थीं. उस के शरीर में अभी भी कंपन था और जबड़े से रक्त बहता चला जा रहा था.
कुछ लोग मेरी और ऐसे देख रहे थे जैसे मैं ही अपराधी हूँ. उनकी आँखों में विरोध की भावना थी. मगर श्वेत एम्बेसडर को देख कर वे चुप हो गए. मैं घबरा कर वापिस अपनी गाड़ी में बैठ गया.
"उन लोगों को ड्राईवर पर गुस्सा आना चाहिए था. मुझ पर क्यों?" कार में बैठ कर मैं अपने आप से पूछता रहा.
" ड्राईवर पर क्यों? कार तो आप की है और फिर जल्दी दौड़ाने का आदेश भी आप का ही था." स्वयं ही उत्तर भी ढूंढ लिया.
क्षण भर के बाद उस काली कुतिया पर, जो एक माँ भी थी, मुझे बहुत तरस आया. उसने अपने बच्चे के मारने वाले के सामने विरोध प्रदर्शन किया था और ऐसा करते हुए अपनी जान भी गंवाई थी. कितनी साहसी माँ थी वह!
"संभवतः उसने हमारी गाड़ी को पहचान लिया होगा." मैंने ड्राईवर से पुछा.
" हाँ साहब ऐसा ही लगता है जानवरों के बारे में यही सुना है कि उनकी याद्दाश्त बहुत तेज़ होती है. उनको थोड़ा सा आघात भी पहुँचाओ तो पलटकर काट लेते हैं. सांपों के बारे में तो मेरी अम्मां कहती थी कि मरते मरते भी वह मरने वाले की तस्वीर अपनी आँखों में उतार लेते हैं और फिर उनके बाल बच्चे उस व्यक्ति से बदला लेते हैं."
भीड़ में से किसी की आवाज़ गूँज उठी, " न जाने किस अंधे ने सुबह सवेरे इसके बच्चे को अपनी मोटर के नीचे रौंद डाला था. तब से बेचारी विक्षिप्त हो गयी थी और दिन भर आने जाने वाली गाड़ियों पर भौंकती फिरती थी."
देखने वाले कुतिया की लाश को देख कर त्राहि त्राहि कर रहे थे.
इस के बावजूद सड़क पर रात भर पहले की भांति ट्रैफिक चलता रहा. सभी अपनी अपनी मंजिल की और तेज़ गति से चले जा रहे थे.
रात भर सड़क पर लाश पड़ी सड़ती रही. यदाकदा गिद्ध और कौए उस में से मांस नोच कर ले जाते. राहगीर लाश की ओर देखना भी गवारा न करते. अपने मुंह को रुमाल से ढांप कर दूसरी ओर देखते और तेज़ तेज़ क़दमों से निकल जाते.
दुसरे दिन म्युनिसिपल कमेटी की कचरा गाड़ी लाश उठा कर ले गयी.
दो दिन पश्चात् समाचार पत्रों में बड़ा ही रोचक समाचार छपा. मेरे निडर, निर्भीक और सत्यनिष्ट पत्रकार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद की शपथ ली और अब उसी प्रशासन का हिस्सा बन गया था जिसके विरुद्ध वह बरसों से आवाज़ उठाता रहा.
(कहानी संग्रह "चिनार के पंजे " Chandermukhi Prakashan, E-223, Shivaji Marg,Main Rd,Teesra Pusta, Jagjit Nagar, Delhi. tel-9250020816)Also available online.
ambassador car syndrome in india.
ReplyDeletehandoovijay thanks for the thoughtful comments.
Deletekahani dil ko choone me kamyab hui vyang ka put bhi spasht hai janvaron me bhi humari hi tarah bhaavnayen hoti hain fir vo kutia to ek maa bhi thi uska yeh aachran karna jaayaj tha.
ReplyDeleteRajesh Kumari ji Comments ke liye shukriya. Main basically urdu mein likhta hoon aur us ke baad jab time milta hai un kahaniyon ko Hindi mein kisi ki madad lekar translate karta hoon taki Hindi ke pathak bhi in kahaniyon ko parh sakein.Aap ke comments se kafi hausla afzai hui.
Deletevaqt mile to mere blog par bhi tashreef laaiye aapka swagat hai.
ReplyDeleteRajesh Kumari ji Zaroor. Jaldi hi main koshish karon ga.
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