Thais, ٹھیس : (Urdu/Hindi)
Afsancha; افسانچہ ; Ministory
ठेस
ज्यूँ ही मुझे पहली बार दिल्ली में नौकरी मिली मैंने मोती नगर में एक कमरा किराये पर ले लिया। मकान मालकिन चालीस पैंतालीस साल की एक खूबसूरत औरत थी जो उस उम्र में भी बन संवर कर रहती थी। मैं हमेशा उसको माँ की तरह इज्ज़त करता था यहाँ तक कि उस घर को अपना घर समझने लगा था। चूंकि वह पाकिस्तान से पलायन करके आई थी इसलिए कभी कभार अपने अतीत को कुरेदती रहती और दुखद तथा उदास करने वाली कहानियां सुनाती थी।
एक रोज़ वह बेड पर लेटी अपना एल्बम देख रही थी कि मैं कमरे में दाखिल हुआ और उसके सामने कुर्सी पर बैठ गया। उसके चेहरे की उद्दीप्ति से लग रहा था कि वह अपनी जवानी की कोई हसीन घटना याद कर रही थी। मुझे एल्बम थमाते हुए वह बोली, "अरुण देखो तो कितनी सुंदर थी मैं जवानी के दिनों में।"
"हाँ आंटी आप तो सुचमुच बहुत खूबसूरत थीं" मैंने हाँ में हाँ मिलाई।"
"बेटे जब हम पाकिस्तान से पलायन करके आये थे तो मेरे भाई हरीश,जो फिल्म प्रोडूसर था,ने मुझे मुंबई बुलाया और अपनी नई फिल्म 'हीराभाई' के लिए हेरोइन का रोल ऑफर किया था।"
" बड़ी अच्छी ऑफर थी, फिर आपने क्यों ठुकराई।"
"इसी बात पर तो अबतक पछता रही हूँ। गई होती तो ऐश की ज़िन्दगी बसर कर लेती। जुबैदा एक रात के बीस हज़ार रुपए चार्ज करती है और बीना कुमारी की तो बात ही नहीं वह तो रात भर के चालीस हज़ार लेती है। मेरी रेट तो कम से कम पचास हज़ार होती।"
मैं विस्मित होकर उसको बहुत देर तक देखता रहा। मुझे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था।
واقعی آدمی بعض اوقات ہماری توقعات کے برعکس نکلتا ہے
ReplyDeletesaleem aazar saheb Tasurat ke liye shukriya. sorry for delayed response. watch out for my next post. U may become member of my blogs if u like
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