Chor Sipahi;चोर-सिपाही;چور سپاہی
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ
चोर-सिपाही
ज़माना ही बदल गया। बचपन में हम चोर-सिपाही का खेल बड़े शोक से खेला करते थे मगर आजकल बच्चों को वीडियो गेम्स और न जाने कौन-कौन सी शरारतों में मज़ा आता है। जब देखो मोबाइल हाथ में लिए फिरते रहते हैं। वैसे भी अब शहरों में बच्चों के खेलने के लिए न कहीं मैदान हैं और ना ही खुली जगहें। माता-पिता स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हूँ तो सुबह सवेरे बच्चों को साथ लेकर धुंए और धुल से भरी प्रदूषित सड़कों पर हवा खोरी करते हैं।
पिछले महीने मैं एक दोस्त के निमंत्रण पर उस के गांव चला गया। वहां एहसास हुआ की देश में अब भी कुछ जगहें बची हैं जहाँ पुरानी सभ्यता, घुट-घुट कर ही सही, मगर सांसें ले रही है। शाम के समय मैं बाहिर टहलने निकला तो कुछ बच्चे चोर-सिपाही का खेल खेल रहे थे। जी बहुत प्रसन्न हुआ। कुछ देर उनको डिस्टर्ब किये बग़ैर मैं उनका खेल देखता रहा। एक लड़का ,जो उम्र में सब से बड़ा था, दूसरों को अपना अपना रोल समझा रहा था, "तुम चोर बन जाओ और तुम सिपाही, तुम पुलिस का अफसर.....और तुम...!"
उस की समझ में नहीं आ रहा था की चौथे लड़के को कौन सा रोल दे।
चौथे लड़के ने, जिसके हाथ में क्लाशन्कोफ जैसा खिलौना था, उसकी दुविधा का अंदाज़ा लगाया। वह ज़ोर से चिल्लाया, "मैं आतंकवादी बन जाओं गा और तुम सब को बंदूक से मार डालों गा।" उसने अपना दायां बाज़ू , जिस में टॉय-गन था, हवा में लहराया।
मैं अपनी सांस रोके सुनता रहा और मन ही मन में सोचता रहा कि "बारूद की बू ने तो गांव की फ़िज़ा में भी ज़हर घोल दिया है।"
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