Naukri; नौकरी; نوکری
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नौकरी
अपने बेटे के असंयम को देखकर मैंने एक बार उसको नसीहत की, "बेटे, बेहतर यह रहेगा कि तुम सिविल सेवा की परीक्षा पास कर लो। जीवन की अधिकतर सुविधाएँ सदा उपलब्ध रहेंगी और फिर स्वतंत्र भी रहोगे और किसी की ग़ुलामी भी नहीं करनी पड़ेगी।"
बहुत समय के बाद मेरी बॉस मेरे दफ्तर का निरीक्षण करने के लिए आ गयीं। शिष्टाचार के नाते मैंने उससे घर पर डिनर के लिए निमंत्रण दिया। हालाँकि मैंने पहले ही से सब इंतेज़ाम कर रखा था फिर भी जब वह आई , उसके आदर-सत्कार में कोई कसर ना छोड़ी। बेटा सब कुछ नोट किये जा रहा था कि कैसे मैं अपनी बॉस के आगे-पीछे चल रहा हूँ,बार-बार उसका जाम भरने की कोशिश कर रहा हूँ और फिर खाने की मेज़ पर उसको भिन-भिन प्रकार के व्यंजन पेश कर रहा हूँ।
खैर वह डिनर खाकर वापिस चली गई। उसके जाने के बाद मेरे बेटे ने मुझ से पूछ लिया, "पापा आप तो कहते थे कि सिविल सेवाओं में मनुष्य आत्म निर्भर हो जाता है और उसको किसी की दासता नहीं करनी पड़ती है। फिर आज आप क्या कर रहे थे? अपनी बॉस के पीछे-पीछे यूँ चल रहे थे जैसे उस के नौकर हूँ। डैड, नौकरी कितनी भी बड़ी हो, नौकरी तो नौकरी ही होती है।"
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