Matrook;अप्रचलित;متروک
Ministory; लघु कहानी ; افسانچہ
अप्रचलित
मुझे वह ज़माना अच्छी तरह याद है जब पहले पहल ऑडियोकैसेट बाजार में आये थे। जोड़तोड़ करके मैंने एक टू-इन-वन खरीद लिया था और अपनी अलमारी धीरे-धीरे कैसेटों से भरी थी। जब भी ट्रांसफर हो जाता उनको लकड़ी के संदूक में भर कर अपने साथ एक स्थान से दुसरे स्थान ले जाता। हालाँकि कुछ वर्षों के बाद सी-डीज़ का ज़माना आ गया, फिर भी वह कैसेट अपने से अलग करने को मेरा जी नहीं चाहता था क्यूंकि उनमें मेरी पसंद की ग़ज़लों और पुराने फ़िल्मी गीतों का भंडार था।
कुछ दिन हुए कि मैं के एल सैगल का गाना सुन रहा था और मेरा पोता सामने कुर्सी पर बैठा, वातावरण से निश्चिंत, कानों में ईयर-फ़ोन लगाए, अपने मोबाइल पर यो यो हनी सिंह का गाना सुन रहा था। साथ ही साथ वह झूम भी रहा था। गाना समाप्त होते ही वह मुझ से कहने लगा, "दादू, यह क्या कालविरुद्ध वस्तुएं इस्तेमाल कर रहे हैं। इतना सारा ताम-झाम किस लिए लगा रखा है? यह लीजिये, जो गाना सुन्ना है डाउन लोड करके सुन लीजिये। आप भी ना इन वस्तुओं की तरह ही.......!" अचानक उस की नज़र अपनी मां की अप्रसन्न आँखों पर पड़ी और वह आगे कुछ भी न बोल पाया।
तथापि वह क्या कहना चाहता था मेरी समझ में आ चूका था मगर मैं अनजान सी सूरत बना कर खामोश मुस्कराता रहा।
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