Guruji Maharaj; गुरूजी महाराज; گوروجی مہاراج
Ministory;लघु कहानी; افسانچہ
गुरूजी महाराज
अशोक होटल दिल्ली में कश्मीर एम्पोरियम की एक ब्रांच थी जहाँ मैं सेल्स मैनेजर था। नाना प्रकार की सुंदरियां कपडे और अन्य हस्तशिल्प वस्तुएं खरीदने के लिए शोरूम में चली आती थीं। एक दिन एक सूंदर सांवली अमरीकी युवती डोरोथी शोरूम के अंदर आई। उसकी नज़र ज्यूंही मुझ पर पड़ी उसने अपने लेडीज बैग से कुछ पुस्तिकाएं निकालीं और मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली, "आप यह कुछ पैम्फलेट रख लीजिये। इनको पढ़ कर आध्यात्मिक तुष्टि मिलेगी।"
"सॉरी मैडम, मुझे इन बातों में कोई रूचि नहीं है क्यूंकि मैं नास्तिक हूँ।" मैंने यह कहकर पुस्तिकाएं लेने से इंकार कर दिया। उसके चेहरे पर आश्चर्य और अप्रसन्नता के मिले जुले चिन्ह दिखाई दिए। फिर संभल कर बोली, "अगर आप एक बार हमारे गुरूजी महाराज से मिलेंगे आपके सारे संदेह दूर हो जाएँगे। उनसे मिलने के बाद आप नास्तिकता की बातें करना छोड़ देंगे।"
"मुझे उनसे मिलने में कोई आपत्ति नहीं है मगर मेरी दो शर्तें हैं। एक, वह मुझ से मिलने यहाँ आजाऐं और दूसरी, उनके साथ कोई चेला नहीं होना चाहिए।" मैं ने उत्तर दिया।
"क्या बात कर रहे हैं आप। इतनी महान हस्ती आपको मिलने के लिए यहाँ चली आएगी। ऐसा कैसे होसकता है?" उसने ताज्जुब व्यक्त किया।
"चलो, अगर यह शर्त मंज़ूर नहीं है, ना सही। वह आधा फासला तय कर लें और मैं आधा। किसी होटल में मिलेंगे। लेकिन अकेले। मंज़ूर?"
डोरोथी दुविधा में पड़ गई। बोली, "ऐसा करना तो मुमकिन नहीं है।"
मैंने अपना तर्क दिया, "यही तो चक्कर सारे खेल का है। अगर मैं उस के पास जाऊँगा तो मेरे दिल में पहले ही से उसकी महानता का प्रभाव हो जाएगा। और फिर अगर उसके चेले-चपाटे साथ होंगे तो वह उसके गिर्द बने हुए तथाकथित प्रभामंडल को और भी प्रचंड बनायेंगे। आधी लड़ाई तो वह पहले ही जीत जाएगा। अलबत्ता जब हम दोनों एक दुसरे से बराबरी के साथ वन-टु-वन मिलेंगे फिर देखिये कौन किसको परास्त करता है।
डोरोथी को मेरी बात समझ में आ गई। बहुत देर मैंने अपने जीवन के सिद्धांत की व्याख्या की जिसका निचोड़ था, "जीवन केवल एक घटना है और हम अज्ञानतावश इसका अर्थ ढूंढने की कोशिश करते हैं। ना आगे की खबर और ना पीछे का ज्ञान। जन्नत जहनुम किस ने देखा है। हमारे पास जो कुछ भी है वह यही पल है जो हमारे पास है।
उसके बाद आधी रात तक डोरोथी अशोक होटल के पीकॉक रेस्टोरेंट में मेरी बाँहों में बाहें डाले नाचती रही और जाम पर जाम पीती रही।
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