Wednesday, March 17, 2021

Dak Khane Ki Mulazmat;डाक खाने की नौकरी; ڈاک خانے کی ملازمت ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Dak Khane Ki Mulazmat;डाक खाने की नौकरी
ڈاک خانے کی ملازمت 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

डाक खाने की नौकरी 

मई का महीना था।  मैं ऑफिस में बैठा मातहत कर्मचारियों का वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिख रहा था। 
एक मेहनती और सत्यवादी पोस्टमॉस्टर ने आत्म मूल्यांकन के कॉलम में अपने कामकाज के बारे में यूँ  लिखा था :
"सताईस साल पहले मैंने पोस्टग्रैजुएशन करने के बाद डाक खाने में नौकरी शुरू की थी और आज तक ईमानदारी से काम कर रहा हूँ।  मेरे सहपाठी, जो राजस्व, एक्साइज और इनकम टैक्स विभागों में मुलाज़िम हो गए, आज लाखों के मालिक हैं जबकि मैं यहाँ इस ठिठुरती सर्दी में हर रोज़ रात के आठ नौ बजे तक  केरोसीन लैम्प की रौशनी में आमदनी और खर्चा मिलाने की कोशिश करता हूँ क्यूंकि हिसाब में सावधानी के बावजूद कहीं न कहीं कुछ पैसों का फ़र्क़ रह ही जाता है।"
मेरी  क़लम रुक गयी।  मुझे समझ  नहीं आ रहा  था की अब मैं उसके बारे   में  लिखूं! 

 

2 comments:

  1. Meri kahani mujhey yaad aayi.
    Maggar az chhu samejh yivaan asi kaer barkatech mulzamat .

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    1. I agree with you but that is because of contentment taught to us by our parents. I have number of cases who often cursed themselves for having joined in Post Office or even as teachers especially when they looked at their friends who had gone far ahead.

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