Martaba; रुतबा; مرتبہ
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ
रुतबा
मैं बाटा की दुकान पर अपने लिए जूता खरीदने गया था कि मेरी बग़ल वाली कुर्सी पर एक आदमी और उसका बेटा आकर बैठ गए। शक्ल-ओ-सूरत से कोई बड़ा अफसर लग रहा था। सेल्समेन ने मुझे छोड़ कर तुरंत उनकी तरफ ध्यान दिया और क़िस्म-क़िस्म के जूते दिखाने लगा। आदमी ने अपने लिए पांच सौ का जूता, जो डिस्काउंट पर मिल रहा था, पसंद किया, जबकि बेटे ने पांच हज़ार का जूता पसंद कर लिया। पिता घबरा गया और दबी आवाज़ में बेटे से कहने लगा।
"बेटे मेरा पहला वेतन केवल पांच सौ रुपए था और तुम हो कि पांच हज़ार का जूता खरीद रहे हो..... !"
"इस में क्या आपत्ति है। आपके पिता जी हॉस्पिटल में दो सौ रुपए की नौकरी कर रहे थे और मेरे पिता जी फाइनेंस कमिशनर हैं जिनका वेतन साठ हज़ार प्रति महीना है। अपने अपने स्टेटस की बात है।
बेटे की हाज़िर जवाबी दैख कर पिता लाजवाब होगया।
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