Monday, March 8, 2021

Zehni Bediyan;मानसिक बेड़ियाँ; ذہنی بیڑیاں ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Zehni Bediyan;मानसिक बेड़ियाँ; ذہنی بیڑیاں 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

मानसिक बेड़ियाँ 

जागीरदारी समाप्त करने की जूंही हवा चली सभी ज़मींदार परेशान होगये। परन्तु ठाकुर रणधीर सिंह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने क़ानून बनने से पहले ही गांव के किसानों को बुला कर उनसे हमदर्दी जताई और उनको यह समझाया कि स्वयं उसका खानदान भी यही चाहता था कि गांव की ज़मीनें काश्तकारों को सौंप दी जाएं। यह उनका हक़ है। वह ज़मीनें जोतते हैं, बुआई करते हैं, और फिर फसल काटते हैं। मगर इससे पहले ऐसा करने में इस लिए असमंजस की सिथिति थी कि कहीं कोई बाहिर का आदमी किसानों की निरक्षरता का लाभ उठा कर उन्हें फुसलाने की कोशिश न करे और उन की ज़मीनें हड़प ले। लेकिन अब जबकि हर घर में शिक्षा से उजाला हो चूका है, इन ज़मीनों का स्वामित्व काश्तकारों के नाम करने का फैसला लिया गया है। क़ानून बनने से पहले ही ज़मीनों के कागज़ात किसानों में बाँट दिए गए और साहूकारी, जिस में ठाकुर भी साझेदार था, बंद हो गई। गांव के लोग इतने खुश हो गए कि ठाकुर साहब की जय जय कार करने लगे और सदियों की प्रताड़ना क्षणों में भूल गए। 
रणधीर सिंह ने अपना महल होटल में तब्दील  कर दिया और बची खुची पूँजी से निजी बैंक शरू कर दिया। किसानों को खेती के लिए जो क़र्ज़ की ज़रुरत पड़ती थी अब बैंक से उपलब्ध हो रही थी। उनकी ज़मीनें, ज़ेवरात और आदि जायदाद बैंक के पास गिरवी रहने लगे और मुनाफा ठाकुर रणधीर सिंह को मिलने लगा। धीरे धीरे उस ने अपनी पूँजी देशी और विदेशी कप्म्पनियों में लगाना आरम्भ किया। 
लोग ठाकुर साहब की उदारता से प्रभावित होकर फसल का कुछ हिस्सा बिन मांगे उसके पास पहुंचाते रहे। कुछ बरसों के बाद वह चुनाव में सफल हो कर संसद का सदस्य बन गया और फिर केंद्रीय मंत्री मंडल में मंत्री बन गया। लोग उससे देवता का रूप मानते हैं। उन्हें अभी भी 'हुक्म, हुक्म' कह कर संबोधित करते हैं। प्रजा अब भी 'हुक्म' के इशारों पर नाचती है। दिल्ली के पांच सितारा होटल में उसके लिए साल भर एक कमरा बुक रहता है।  रणधीर सिंह का वैभव आज भी पहले की तरह बरक़रार है यद्यपि नाम और रुतबे बदल चुके हैं। अब उसने अपने नाम के साथ पहले ठाकुर लगाना छोड़ दिया है। वह केवल रणधीर सिंह रह गया है और भूपति  के बदले पूंजीपति बन चूका है।           


 

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