Jahan Gard; भूपर्यटक; جہاں گرد
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भूपर्यटक
मैं, पूर्वी सभ्यता तथा संस्कृति में पला हुआ, पश्चिमी पर्यटकों को देख कर हैरान होता हूँ। बहुत समय पूर्व एक भूपर्यटक लड़की से पहलगाम में मुलाक़ात हुई थी। कन्धों पर रक सेक उठाये मेरे साथ कदम से कदम मिलाती हुई लिद्दर नदी की मौजों का आनंद उठा रही थी। सहसा मैंने उससे प्रश्न पूछा, "सारा,तुम कब से दुनिया की सैर कर रही हो?"
"यही कोई बारह-तेरह साल से। उस समय मैं सत्रह वर्ष की थी। मम्मा के साथ इंग्लैंड में रहती थी क्यूंकि पापा उसको तलाक़ देकर अमेरिका चले गए थे। प्रारंभ में चार-पांच वर्ष यूरोपीय देशों में गुज़ारे, फिर सात वर्ष तक अफ़्रीकी देशों का भ्रमण किया और अब एशिया की सैर कर रही हूँ। बीच बीच में काम करने के लिए वापस अपने देश जाना पड़ता है। भ्रमण के लिए डॉलर भी तो होने चाहियें।
"अकेले यात्रा करने में डर नहीं लगता है?"
"नहीं तो। आज तक कभी कोई कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। हाँ कभी-कभी किसी बुरे आदमी से वास्ता पड़ जाता मगर बच निकलने में कोई दिक्कत नहीं होती। मैं ऐसी बातों के लिए सदा तैयार रहती हूँ और अपना बचाओ करना खूब जानती हूँ।"
"कब तक यूँ ही घुमते रहने का विचार है? घर बसाने का कभी ख्याल नहीं आता?" भारतीय मानसिकता मेरी सोच पर छा गयी।
"अभी तो कुछ देखा भी नहीं। अभी और दस-बारह वर्ष यूँही विश्व का भ्रमण करती रहूंगी। उसके पश्चात् दूसरी बातों पर विचार करों गी।" उसने बड़ी लापरवाही से उत्तर दिया।
"दस बारह वर्ष..........! तब तक तुम चालीस के पेटे में आजाओ गी। फिर विवाह कब करोगी, बच्चे कब पैदा होंगे और उनकी देखभाल कौन करेगा?"
"क्यों..........! इस में कौन सी बड़ी बात है। चालीस वर्ष के बाद क्या विवाह नहीं होता?'
"होता क्यों नहीं मगर जबतक बच्चे आत्मनिर्भर नहीं होते उनके पालन-पोशान के लिए माता पिता का होना ज़रूरी है। जब तक वह जवान हो जाएंगे तुम साठ पार कर चुकी होगी फिर उनकी देख रेख कैसे कर पाओ गी?"
मेरा दिमाग इसके बग़ैर और कुछ नही सोच सका।
"कम ऑन। डोंट बी सिली। मैं सत्रह वर्ष की आयु में विश्व के भ्रमण के लिए निकली। जब वह पैदा होंगे तब तक ज़माना और भी उन्नति कर चूका होगा। क्या ऐसा मुमकिन नहीं कि वह पंद्रह वर्ष ही में मुझे गुड बाई कहकर विश्व के भ्रमण पर निकल पड़ें।"
मैं अपनी मूर्खता पर लज्जित हो गया।
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