Wusat-e-Nazar;विस्तृत अभिज्ञता;وسعت نظر
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विस्तृत अभिज्ञता
सीमा पर युद्ध जारी था।
कप्तान सुरजीत सिंह ने वायरलेस पर अपने कमांडिंग अफसर सुखदेव सिंह
को सूचना दी, "सर, मैं सामने वाली पहाड़ी पर दुश्मन का एक मोर्चा देख रहा हूँ। मुझे जानकारी मिली है कि वहां दुश्मन के केवल दस सिपाही हैं। मैं रात के अँधेरे में अपनी पल्टन के साथ बड़ी आसानी से इस पहाड़ी पर चढाई कर सकता हूँ और दुश्मन का मोर्चा मार सकता हूँ।"
कर्नल साहब ने ऐसा करने से बिलकुल मना कर दिया और अगले आदेश तक यथा स्थिति बनाये रखने को कहा। परिणाम स्वरुप कप्तान सुरजीत सिंह ना केवल निराश हुआ बल्कि अपने कमांडिंग अफसर पर बहुत गुस्सा आया। मन ही मन में सोचने लगा। "यही तो प्रॉब्लम है इन बूढ़े अफसरों के साथ। इन में ना हिम्मत है ना हौसला। वरना क्यों रोक लेता मुझे? ऐसा सुनहरी मौक़ा फिर कभी ना मिले गा।" ज़हर का घूंट पी कर वह खामोश हो गया।
अगले दिन कर्नल सुखदेव उस के मोर्चे का नीरीक्षण करने आया। कप्तान सुरजीत खिचा खिचा सा लग रहा था और उस के माथे पर शिकनें नज़र आ रही थीं। कर्नल को बात समझ में आ गई। इसलिए पैतृक सहानुभूति से कहने लगा। "बेटे शायद तुम कल की बात पर उदास हो। परन्तु तुम्हें मालूम नहीं कि तुम्हारी नज़र तो केवल एक पहाड़ी पर थी जिस पर तुम विजय प्राप्त करना चाहते थे जबकि मेरी नज़र उसके दाएं बाएं दो और पहाड़ियों पर थी जहाँ दुश्मन की तोपें तुम्हारा इंतज़ार कर रही थीं। अगर तुम अपनी पल्टन ले कर पहाड़ी पर चढ़ भी जाते तो देर सवेर दुश्मन की गोला बारी से सब शहीद हो जाते। मैं व्यर्थ में खून बहाने के हक़ में नहीं हूँ। मैंने इससे पहले भी दो युद्ध लड़े हैं और तुम से अधिक अनुभवी हूँ।"
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