Qabristan Dot Com;क़ब्रिस्तान डॉट कॉम;
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क़ब्रिस्तान डॉट कॉम
राशिद अली ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग पूरी तो कर ली मगर उसे बेरोज़गारी का सामना करना पड़ा। उसकी समझ में नहीं आरहा था कि कौन सा व्यवसाय अपनाये। एक रोज़ उसे ख्याल आया कि अब देश में इंटरनेट का जाल इतना फैल चूका है कि घर बैठे कोई भी चीज़ मंगवाई जा सकती है। करोड़ों रुपए ई-कॉमर्स और ऑनलाइन बिज़नेस के प्रचार में खर्च किये जाते हैं। इधर शहर में क़ब्रिस्तानों के लिए जगह की कमी हो रही है और लोगों को रिश्तेदारों के मुर्दे दफ़नाने के लिए न केवल भारी कीमतें अदा करनी पड़ती हैं बल्कि लेने और ले जाने के लिए लम्बे-लम्बे फासले तय करने पड़ते हैं।
राशिद ने कई क़ब्रिस्तानों के मैनेजमेंट के साथ संपर्क करके क़ब्रिस्तान डॉट कॉम वेबसाइट शरू कर ली जिस के द्वारा क़ब्रों की उपलब्धता, स्थानों, व्यय और बाक़ी विवरण आसानी से मिलने लगी। उसके बाद वह क़ब्रिस्तानों की एडवांस बुकिंग और कफ़न-दफ़न का इंतज़ाम भी करने लगा। धीरे-धीरे उसकी गिनती शहर के बड़े-बड़े कारोबारियों में होने लगी।
बहुत समय प्रतीक्षा करने के बाद राशिद की माशूका रेहाना ने आखिरकार उसको माता पिता से मिलवाने के लिए अपने घर बुलाया। बातचीत के दौरान रेहाना के दादा ने राशिद अली से पुछा, "बेटे आप क्या काम करते हो?"
"जनाब मैं ऑनलाइन बिज़नेस करता हूँ।" राशिद ने उत्तर दिया।
दादा की समझ में कुछ भी न आया। "बरखुरदार, बिज़नेस का कोई नाम तो होगा। आखिर क्या बेचते हो, यह तो समझ आये।"
राशिद को उत्तर देने के लिए कुछ सूझ ही नहीं रहा था। जी में आई कह दे कि कफ़न बेचता हूँ मगर शब्द गले से निकल नहीं पा रहे थे।
रेहाना को उसकी हालत का अंदाज़ा हुआ। वह झट से बोली, "बहुत अच्छा काम करते हैं दादा जान, सफर करने वालों की एडवांस लॉजिंग और बोर्डिंग बुक करते हैं।"
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