Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की;
تلاش اس لمس کی
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ
तलाश उस स्पर्श की
तुम मुझसे पूछते हो कि मेरी सोच पर हर दम नारी क्यों सवार रहती है ? कारण जानना चाहते हो तो सुनो :
बात यूँ है कि जब मैं छोटा था..... यही कोई बारह तेरह वर्ष का...... पड़ोस में मेरा एक दोस्त रहता था। एक रोज़ मैं किसी काम से उस के घर चला गया। कोई रोक टोक तो थी नहीं। सीधे घर के अंदर चला गया।
उसकी मां नहा धोकर मैक्सी पहने नीम नगण हालत में अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने श्रृंगार कर रही थी। उसके चेहरे पर अजीब सी चमक और शरीर में चुंबकीय आक्रषण नज़र आ रहा था। मुझे देखते ही उसकी आँखें खुमार से भर गयी जैसे वह मेरा ही इंतिज़ार कर रही हो। उस ने मुझे सोफे पर बिठाया और धीरे धीरे अपनी मोहब्बतों की वर्षा करने लगी। मैं वशीभूत उसके हर यत्न को सम्मोहित वस्तु की तरह झेलता रहा और आनंदित होता रहा। उसके बदन का वो स्पर्श मेरे लिए एक नया और कोरा तजरुबा था जो मेरे रोम रोम में फैल गया। फिर यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। वह जब चाहती मुझे हुकुम देती और अपने क़ाबू में कर लेती। मैं एक बंधुआ मज़दूर की तरह उसकी हर इच्छा पूरी कर लेता। उसके विपरीत जब मेरी भावनाएं उत्तेजित हो जाती मैं उनको व्यक्त करने में असमर्थ होता क्यूंकि वह मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी। उस वक़्त मुझे उसके पास जाने में भी डर लगता था। मेरे लिए आत्म संतुष्टि के सिवा और कोई चारा न था ।
उसके बाद मेरी ज़िन्दगी में असंख्य औरतें आईं मगर जो तृष्णा वह छोड़ कर चली गयी थी आज तक न मिट सकी।
वास्तव में वह तृष्णा मेरे व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा बन कर रह गयी है। मैं हर समय उस प्रबल कामना को मिटाने के लिए बेकरार रहता हूँ और हर औरत में उस स्पर्श को तलाशने की कोशिश करता हूँ।
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