Sang Tarash; मूर्तिकार; سنگ تراش
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मूर्तिकार
परवीन ने हाल ही में गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ आर्ट एंड म्यूजिक से मूर्तीकार की डिग्री हासिल की थी। अभी उसकी व्यावसायिक जीवन का सफर आरंभ ही हुआ था कि अतिवादियों ने धमकी भरा पत्र भेज दिया। "मूर्ति बनाना हमारे धर्म में कुफ्र है। तुम्हें इसके लिए प्रायश्चित करना पड़ेगा। तीन दिन के अंदर-अंदर अपने घर में बनाई हुई सभी मूर्तियां तोड़नी पड़ें गी।"
मूर्तिकार के लिए उसकी बनाई हुई मूर्तियां बच्चों की मानंद होती हैं। परवीन अपने ही हाथों उन्हें कैसे तोड़ सकती थी। आतंक के इस माहौल में वह डर गई। इसलिए चुपके से वहां से भाग गई। प्रतिकार के तौर पर उसके घर में जितनी भी मूर्तियां थीं वह सब तोड़ दी गईं और घर को आग लगा दी गई। समाचार सुन कर वह ज़ख़्मी हिरणी की तरह दीवानी हो गई। उसकी समझ में नहीं आरहा था कि क्या करे।
एक दिन परवीन के अंदर का शिल्पी दुबारा जाग उठा। वह हथोड़े और छेनी से दीवानों की तरह पथरों पर तब तक चोटें लगाती रही जब तक वह बोल न उठते। कुछ समय के बाद उसकी मूर्तियों की प्रदर्शनी हुई और उसको ललित कला अकादेमी ने अवार्ड से सम्मानित किया। परन्तु उसके ह्रदय में जो कांटा खटक रहा था वह कभी न निकल पाया।
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