Tooque Ita'at;ग़ुलामी का पट्टा; طوق اطاعت
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ
ग़ुलामी का पट्टा
बचपन से मैं राष्ट्रवादी शिक्षकों से यही सुनता आया हूँ कि अंग्रेज़ों ने हमें ग़ुलामी का पट्टा पहना दिया था जिसके कारण हम अबतक मानसिक तौर पर आज़ाद नहीं हो पा रहे हैं। उनकी बातों पर विश्वास करने के सिवा मुझे और कोई चारा न था।
एक दिन मैं प्राचीन भारतीय इतिहास से जुडा टेलीविज़न सीरियल देख रहा था जिस में हीरे जवाहिरात से लैस एक तोंदल हिन्दू राजा, गाव तकिये से टेक लगाए और हाथ में जाम लिए नर्तिकयों के नाच से मनोरंजित हो रहा था। वह कभी-कभी अपने गले से हीरे-जवाहिरों की मालाएं उतार कर उन्हें तोहफे के तौर पर दिए जा रहा था। इस दौरान जब भी कोई मनुष्य दरबार में आ जाता वह आदाब बजाने की खातिर ज़मीन पर औंधे मुंह लेट जाता और दोनों बाज़ो आगे खींच कर अपने हाथ जोड़ लेता। यह थी विनम्रता की हिन्दू परम्परा जिससे 'हिन्दू सलाम' कहना ज़्यादा उचित होगा।
कुछ महीनों बाद भारतीय इतिहास के मध्यकालीन दौर के विषय में एक सीरियल शरू हुआ जिस में एक मुस्लमान बादशाह की शानो-ओ-शौक़त को दर्शाया गया था। सामने एक खूबसूरत सुंदरी प्याले में मदिरा भर रही थी और स्वयं बादशाह अपनी मेहबूबा की बाँहों में झूलता हुआ तवाइफ़ के गाने से लुत्फ़ उठा रहा था। दीवान-ए-खास में जो कोई भी आता वह अपने जिस्म को कमर से इतना झुका लेता कि समकोण बन जाता, सिर को बिलकुल कमर की सीध में ले आता और फिर अपने दायें हाथ को कई बार ऊपर नीचे करके सलाम करता। मतलब यह कि वह न तो पूरा ज़मीन पर लेट जाता और न सर्व की तरह खड़ा रहता बल्कि यह उन दो के बीच की दरमियानी कड़ी थी जिस को 'मुस्लिम सलाम' कहना बेहतर होगा।
फिर कुछ समय गुज़र जाने के बाद आज़ादी की लड़ाई से मुतलक़ एक सीरियल टीवी पर दिखाया गया जिसमें अँगरेज़ वाइसराय शान-ओ-शौक़त से अपनी कुर्सी पर बिराजमान था और हर तरफ तिजारती माहौल नज़र आ रहा था। दरबार से दिलजोई का सारा सामान ग़ायब था। जो कोई भी दरबार में हाज़िरी देता वह खड़े होकर या तो सलूट मारता या फिर अपने सिर को सम्मान से थोड़ा सा झुका कर दोनों हाथ जोड़ कर सलाम करता। यानि न लेटना न झुकना बल्कि सीधे खड़े होकर अंग्रेजी सलाम करना।
उस दिन मैं सोच में पड़ गया। सलाम भी क्रमागत उन्नति करती हुई यहाँ तक पहुँच गयी थी। मुझे यह एहसास हुआ कि बचपन में हमें गलत पट्टी पढाई जाती थी। वास्तव में अंग्रेज़ों ने हमें ग़ुलामी की बेड़ियाँ नहीं पहनाई बल्कि इसके उलट अपने पाऊँ पर खड़ा होना सिखाया।
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