Sandooqcha; संदूकचा; صندوقچہ
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ
संदूकचा
वह बूढा जब भी कहीं जाता सब से पहले अपना छोटा धातु का बक्सा उठा लेता। यह देख कर लोगों को लगता था कि हो न हो सन्दूकचे (बक्से) में कोई ऐसी क़ीमती चीज़ अवश्य है जिस को वह अपने से अलग नहीं करना कहता है।
मरने से पहले उसने सन्दूकचे की चाबी अपने बड़े बेटे के हवाले कर दी। बेटा बहुत खुश हुआ जब कि बाक़ी दो बेटों के चेहरे उतर गए।
बूढ़े ने बड़े बेटे से प्रार्थना के स्वर में कहा,"बेटे इस सन्दूकचे में तुम्हारी माँ की अस्थियां हैं जिन्हें मैं अपने से अलग नहीं करना चाहता था। अब जबकि मैं कुछ पलों का मेहमान हूँ, इनको मेरी अस्थियों के साथ ही गंगा में बहा देना।"
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