Monday, March 22, 2021

Corruption; भ्रष्टाचार; کرپشن ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Corruption; भ्रष्टाचार; کرپشن 

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

भ्रष्टाचार 

रक्षा करने वालों ने रक्षा करने के बदले उसकी अपने ही घर में हत्या कर दी। प्रधान मंत्री होने के नाते सारा देश शोक में डूब गया। मैं भी सोच विचार में तल्लीन हो गया। मुझे उसका वह साक्षात्कार याद आ रहा था जिस में उसने महाराष्ट्र मुख्य मंत्री को बचाने के लिए कहा था। 

"करप्शन इज़ ए ग्लोबल फेनोमेनन यानि भ्रष्टाचार एक वैश्विक परिघटना है।"

उसी दिन मुझे शंका हुई थी कि वह स्वयं ही अपना समाधि-लेख लिख रही है। राष्ट्र तो क्या घर में भी माता-पिता अपने बच्चों को यह कभी नहीं कहते कि बेईमानी और भ्रष्टाचार ज़िन्दगी का सही रास्ता है हालाँकि अक्सर लोग हर रोज़ इसी रास्ते पर चलते हैं। 

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिख उस से रुष्ट हो चुके थे और चंद लोग उस की जान के पीछे पड़े हुए थे। किसी ने कुछ सीनियर अफसरों को रिश्वत देकर उन्हें खरीद लिया और उसके सिक्योरिटी स्टाफ में सेंध लगायी। वह दो बागी सिख सिपाहियों को उसके घर के अंदर  एक साथ पोस्टिंग कराने में कामयाब होगए जिन्हों ने यह घिनोना काम आसानी से कर दिया। 

मैंने जब यह समाचार पढ़ा मेरे अंदर से आवाज़ आयी। 

"अगर भ्रष्टाचार वैश्विक प्रकरण है तो यह हमारे सीने में भी गुल खिला सकता है। 


    

Sunday, March 21, 2021

Ek Aur Inquilab; एक और इन्क्विलाब; ایک اور انقلاب ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Ek Aur Inquilab;एक और इन्क्विलाब;

ایک اور انقلاب 

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

 एक और इन्क्विलाब 


तहरीक ज़ोर पकड़ती जा रही थी। नेता ने जनता की दुखती रग पर हाथ  रख कर ऐलान कर दिया "भाइयो और बहनों! सर्कार ने कंपनियों के साथ साज़ बाज़ करके बिजली की दरों  में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की है। जनता पहले ही से महंगाई की मार झेल रही है। प्याज़, टमाटर, सब्ज़ी सब की कीमतें आसमान को छू रही हैं। बिजली महंगी,पानी महंगा, खाने पीने की चीज़ें महंगी, पेट्रोल, डीज़ल और केरोसिन महंगा, सब कुछ महंगा हो गया है। केवल इंसान सस्ता हो गया है। और सत्ता में बैठे लोग हैं कि घोटालों पर घोटाले किये जा रहे हैं। हम ने कई बार गोहार लगाई मगर उनके कान पर जूँ तक न रेंगी। अब लगता है कि हमें ही कुछ करना पड़ेगा।

"ज़रूर, ज़रूर हमें ही कुछ करना पड़ेगा। हम सब तैयार हैं।" दर्शकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की। 

"भाइयो और बहनो। आज के बाद कोई भी आदमी बिजली का बिल नहीं भरेगा जब तक सर्कार  दाम आधे न कर दे।" 

"इन्किलाब ज़िंदा बाद. ..."भीड़ में से नारे बुलंद होते गए और थोड़ी देर के बाद लोग तितर बितर हो गए। 

महीने भर के बाद बिजली के कर्मचारियों ने गरीब कॉलोनियों में बिजली के कनेक्शन काटना शरू कर दिया। कॉलोनियों में हर तरफ अफरातफरी मच गयी।  इस लिए दोबारा जलसे का आयोजन किया गया।  नेता फिर से गरजने लगा, "भाइयो और बहनो ! हमारे घरों में अँधेरा छा गया है। सर्कार टस से मस नहीं हो रही है। आखिर  कब तक हम सर्कार की उपेक्षा बरदाश्त करेंगे। समय आगया है कि इनको सबक़ सिखाया जाये। यह सब चोर और लुटेरे हैं। कंपनियों के साथ  इनकी मिली भुगत है ये कंपनी वाले हमारा खून चूस कर करोड़ों के मालिक बन चुके हैं जबकि ग़रीबों के घरों में बिजली नहीं है। चूल्हे आग ना घड़े पानी। पानी के बदले आंसू बह रहे हैं। हमने फैसला कर लिया है कि हम सब कॉलोनियों में जाकर खुद  ही बिजली के कनेक्शन जोड़ लेंगे और देखेंगे कि कौन माई का लाल हमें रोकेगा। 

फिर लोग ग़रीब कॉलोनियों में खम्बों पर चढ़ कर बिजली के कनेक्शन जोड़ने लगे। क़ानून की धज्जियां उड़ाई गई। सर्कार तमाशाई बनकर देखती रही क्यूंकि कुछ महीनों के बाद  चुनाव के दौरान इन्हीं बस्तियों में वोट मांगने जाना था। 

चुनाव के बाद इन्किलाब आया। अराजकता का हामी नेता क़ानून तोड़ने वाले संगी साथियों समेत  विधान सभा की कुर्सियों पर बिराजमान होकर नए क़ानून बनाने लगा।  

नए क़ानून।  नए अधिनियम। लेकिन फिर भी अव्यवस्था बरक़रार थी। 

एक बूढ़ा  मज़लूम शहरी, जिसने आज़ादी से पहले कई हसीन सपने देखे थे, अब इस तथाकथित लोकशाही से ही निराश हुआ।  वह अपने दिल में सोचने लगा, "इस देश का तो भगवान् ही रक्षक है।  ना जाने कब फिर कोई नेता इन नए क़ानूनों और अधिनियमों की धज्जियाँ  उड़ाने के लिए सामने आये गा।


 


Saturday, March 20, 2021

Muthi Bhar Ret: مٹھی بھر ریت ;मुठी भर रेत ; (Urdu/English); Mini-story;افسانچہ;लघु कहानी



 Muthi Bhar Ret: مٹھی بھر ریت ;मुठी भर रेत 

 Mini-story;افسانچہ;लघु कहानी 

Kal mujhe na jaane kya soojhi ki samander ke saahil par tahalte tahlte achanak ruk gaya. Joote Utare aur wahin par baith gaya
Nikhat ki bahut yaad aa rahi thi. Umar bhar saath nibhane ka waada karke woh na jaane kahan kho gayi. Palat kar bhi nahi dekha. Aur ab main hoon aur meri tanhai.
Tafreehan main ne kai baar apne haath mein rait uthai aur usse mehfooz karne ke liye muthi band kar li. Lekin rait thi ki ungliyon ke beech mein se phisalti chali gayi aur baar baar meri muthi khali hoti gayi.
Mere peeche chand ghair mulki sayah apne uryan jasmon mein sooraj ki tawanayi qaid karne ki koshish kar rahe the jab ki saamne chote chote bache football khelne mein mashgool the. Samander ki maujein musalsal sahil ke saath sar patak rahi thein.
Itne mein aik choti si masoom ladki bheek mangne ki khatir mere saamne khadi ho gayi aur apne haath phailane lagi. Main jhallahat mein us par baras padha," Jao yahan se , tum aur koi kaam kyun nahi karti. Tum logon ko bheek mangne ke siwa aur kuch nahi aata hai."
Dafa'atan mujhe yaad aya ki company mein chatai ki wajah se guzashta do saal se main khud bhi berozgar hoon. Postgraduate hone ke bawajood koi kaam nahi milta. Nikhat bhi isi wajah se mujhe chod kar chali gayi thi.
Mujhe aisa laga jaise woh ladki keh rahi ho, "Kaam nahi milta hai na mile, bheek to maang sakte ho."
(Tafreehan;Just for leisure, mehfooz; secure, ghairmulki sayah; foreign tourists,Uryan ;naked, tawanayi;energy,mashgool; busy,jhallaht; annoyance, dafa'atan;Suddenly



Pehla Clone; पहला क्लोन; پہلا کلون ;Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Pehla Clone; पहला क्लोन; پہلا کلون 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

पहला क्लोन 

क्लोनिंग पर ज़ोरदार बहस चल रही थी। 
इस में कोई दो राय नहीं की हव्वा दुनिया की सबसे पहली क्लोन थी जिस को ईडन उद्यान में आदम की पसली से बनाया गया था। 
फिर यह कोलाहल कैसा कि क्लोनिंग की इजाज़त दी जाये या नहीं। 


Friday, March 19, 2021

Insaaf; न्याय; انصاف ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Insaaf; न्याय; انصاف 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

न्याय 

क्लास में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर ने विद्यार्थियों से पुछा "क्या तुम बता सकते हो कि 'न्याय' क्या होता है।"
सारी कक्षा में सनसनी सी फैल गयी। विद्यार्थी एक दुसरे की तरफ जिज्ञासु नज़रों से देखने लगे मगर कोई कुछ भी न कह पा रहा था। केवल कानाफूसी हो रही थी। 
इतने में आखरी बेंच पर बैठा एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उत्तर देने लगा। 
"सर, न्याय वह होता है जो राजा को आनंदित करे और प्रजा को तसलियाँ देता रहे। 
  

 

Sandooqcha; संदूकचा; صندوقچہ ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Sandooqcha; संदूकचा; صندوقچہ 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

संदूकचा
वह बूढा जब भी कहीं जाता सब से पहले अपना छोटा धातु का बक्सा उठा लेता। यह देख कर लोगों को लगता था कि हो न हो सन्दूकचे (बक्से) में कोई ऐसी क़ीमती चीज़ अवश्य है जिस को वह अपने से अलग नहीं करना कहता है। 
मरने से पहले उसने सन्दूकचे की चाबी अपने बड़े बेटे के हवाले कर दी।  बेटा बहुत खुश हुआ जब कि बाक़ी दो बेटों के चेहरे उतर गए। 
बूढ़े ने  बड़े बेटे से प्रार्थना के स्वर में कहा,"बेटे इस सन्दूकचे में तुम्हारी माँ की अस्थियां हैं जिन्हें मैं अपने से अलग नहीं करना चाहता था।  अब  जबकि मैं कुछ पलों का मेहमान हूँ, इनको मेरी अस्थियों के साथ ही गंगा में बहा देना।"  

 

Thursday, March 18, 2021

Lakshmi Ka Swagat; लक्ष्मी का स्वागत; لکشمی کا سواگت ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Lakshmi Ka Swagat; लक्ष्मी का स्वागत;
لکشمی کا سواگت  
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

लक्ष्मी का स्वागत 

"लक्ष्मी आयी है बीटा लक्ष्मी, हमारे  घर साक्षात् लक्ष्मी आयी है " वधू  के घर में कदम रखते ही विद्यासागर के पिता जी झूम उठे। 
लक्ष्मी उम्मीद से ज़्यादा दहेज लेकर आयी थी।  इस के बावजूद विद्यासागर को संतुष्टि न मिली। वह बचपन  ही से सरस्वती की तलाश में हैरान-ओ -परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि हर वधू  लक्ष्मी का रूप  ही क्यों धारण करती है , सरस्वती का क्यों नहीं ?
सरस्वती की तलाश में विद्यासागर दर दर भटकता रहा। अंततः उसने घर से दूर, बहुत  दूर एक आश्रम में शरण ली और लक्ष्मी को सदा के लिए भूल गया। 


 

Science Aur Mazhab; विज्ञान और धर्म ; سائنس اور مذہب ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ


Science Aur Mazhab; विज्ञान और धर्म ;
سائنس اور مذہب 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

विज्ञान और धर्म 

क्लास में अध्यापक ने विद्यार्थी से पुछा, " विज्ञान और धर्म में क्या फ़र्क़ है ?"
सभी विद्यार्थी सोच में पड़ गए। राजन ने उत्तर देने की गरज़ से अपना दायाँ हाथ उठाया। 
ज्युँही अध्यापक की नज़र राजन पर पडी वह बोल उठा, " हाँ राजन बोलो क्या कहना चाहते हो। "
"सर, विज्ञान में नवीनतम पुस्तक शुद्ध और विश्वसनीय मानी जाती है जब कि धर्म में प्राचीनतम पुस्तक प्रामाणिक मानी जाती है। 

 

Wednesday, March 17, 2021

Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की; تلاش اس لمس کی ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Talash Us Lams Ki; तलाश उस स्पर्श की;
تلاش اس لمس کی 
 Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

तलाश उस स्पर्श की 

तुम मुझसे पूछते हो कि मेरी सोच पर हर दम नारी क्यों सवार रहती है ? कारण जानना चाहते हो तो सुनो :
बात यूँ है कि जब मैं छोटा था..... यही कोई बारह तेरह वर्ष का...... पड़ोस में मेरा एक दोस्त रहता था।  एक रोज़ मैं किसी काम से उस के घर चला गया। कोई रोक टोक तो थी नहीं।  सीधे घर के अंदर चला गया।  
उसकी मां नहा धोकर मैक्सी पहने नीम नगण हालत में अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने श्रृंगार कर रही थी। उसके चेहरे पर अजीब सी चमक और शरीर में चुंबकीय आक्रषण नज़र आ रहा था।  मुझे देखते ही उसकी आँखें खुमार से भर गयी जैसे वह मेरा ही इंतिज़ार कर रही हो। उस ने मुझे सोफे पर बिठाया और धीरे धीरे अपनी मोहब्बतों की वर्षा करने लगी। मैं वशीभूत उसके हर यत्न को सम्मोहित वस्तु की तरह झेलता रहा और आनंदित होता रहा। उसके बदन का वो स्पर्श मेरे लिए एक नया और कोरा तजरुबा था जो मेरे रोम रोम में फैल गया। फिर यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा।  वह जब चाहती मुझे हुकुम देती और अपने क़ाबू में  कर लेती। मैं एक बंधुआ मज़दूर की तरह उसकी हर इच्छा पूरी कर लेता।  उसके विपरीत जब मेरी भावनाएं उत्तेजित हो जाती मैं उनको व्यक्त करने में असमर्थ होता क्यूंकि वह मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी।  उस वक़्त मुझे  उसके पास जाने में भी डर लगता था। मेरे लिए आत्म संतुष्टि के सिवा और कोई चारा न था ।  
उसके बाद मेरी ज़िन्दगी में असंख्य औरतें आईं मगर जो तृष्णा वह छोड़ कर चली गयी थी आज तक न मिट सकी।
वास्तव में वह तृष्णा मेरे व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा बन कर रह गयी है। मैं हर समय उस प्रबल कामना को  मिटाने  के लिए बेकरार  रहता हूँ और  हर औरत में उस स्पर्श को तलाशने की कोशिश करता हूँ।     


 

Dak Khane Ki Mulazmat;डाक खाने की नौकरी; ڈاک خانے کی ملازمت ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Dak Khane Ki Mulazmat;डाक खाने की नौकरी
ڈاک خانے کی ملازمت 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

डाक खाने की नौकरी 

मई का महीना था।  मैं ऑफिस में बैठा मातहत कर्मचारियों का वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिख रहा था। 
एक मेहनती और सत्यवादी पोस्टमॉस्टर ने आत्म मूल्यांकन के कॉलम में अपने कामकाज के बारे में यूँ  लिखा था :
"सताईस साल पहले मैंने पोस्टग्रैजुएशन करने के बाद डाक खाने में नौकरी शुरू की थी और आज तक ईमानदारी से काम कर रहा हूँ।  मेरे सहपाठी, जो राजस्व, एक्साइज और इनकम टैक्स विभागों में मुलाज़िम हो गए, आज लाखों के मालिक हैं जबकि मैं यहाँ इस ठिठुरती सर्दी में हर रोज़ रात के आठ नौ बजे तक  केरोसीन लैम्प की रौशनी में आमदनी और खर्चा मिलाने की कोशिश करता हूँ क्यूंकि हिसाब में सावधानी के बावजूद कहीं न कहीं कुछ पैसों का फ़र्क़ रह ही जाता है।"
मेरी  क़लम रुक गयी।  मुझे समझ  नहीं आ रहा  था की अब मैं उसके बारे   में  लिखूं! 

 

Tuesday, March 16, 2021

Jannat; स्वर्ग; جنّت; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Jannat; स्वर्ग; جنّت 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

स्वर्ग

स्वर्ग के द्वार पर वहां के दरबान ने उसको रोक लिया और पुछा, "तुमने जीवन में ऐसा कौन सा काम किया है कि तुम्हें स्वर्ग के अंदर जाने दिया जाये।" 
"हज़ूर, मैं ने स्वर्ग पाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। तीस नास्तिकों का संहार किया, उन की पत्नियों को विधवा और बच्चों को अनाथ बना दिया जबकि और भी बीस बालक अपाहिज हो गए। इस तरह बाक़ी लोगों को समझ आजाये गा कि नास्तिक होने का परिणाम क्या होता है और खुदा का क़हर किस को कहते हैं। परिणाम स्वरुप वह भविष्य में ईश्वर के आदेशों का नियमित रूप से पालन करें गए।"
"सच, तुम ने तो बहुत बड़ा काम किया है। हमने तुम्हारे जैसे लोगों  के लिए अलग से एक स्थान निर्धारित किया है।  तुम सामने वाली नदी को पार करके सीधे  चले जाओ जहाँ से धुवें के बादल उठ रहे हैं। वहां एक ऐसा ही दरवाज़ा मिले गा। उस जगह पर तुम्हारे स्वागत  के लिए सिकंदर, हलाकू, चंगेज़ खान, तैमूर, हिटलर और मुसोलिनी जैसे बड़े बड़े सूरमा बेचैनी से इंतज़ार कर रहे हूँगे। 

 

Kis Ko Dosh Dun!; किस को दोष दूँ !;!کس کو دوش دوں ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Kis Ko Dosh Dun!; किस को दोष दूँ !
!کس کو دوش دوں 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

किस को दोष दूँ ! 

वह बस में सफर कर रहा था और अपनी क़िस्मत पर चिंतित था। 
पोस्ट ग्रेजुएशन में कम नंबर आने के कारण उससे दो साल से नौकरी नहीं  मिल रही थी। वह किसी और  को नहीं परन्तु अपने आपको ही ज़िम्मेदार मानता था।
दुसरे दिन  उस ने अपने दोस्त को चिठ्ठी लिखी जिसका सार नीचे दे रहा हूँ। 
"यार तुम लोग भाग्यशाली हो। अपनी गलतियों को भगवन के सिर मढ़ते हो   और सोचते हो कि जो हुआ उस की इच्छा से हुआ। मगर मैं तो नास्तिक हूँ। भगवान् के अस्तित्व को नकारता हूँ।  इसलिए सभी मामलों में अपने आप को ही दोषी ठहराता हूँ।  मुझे अपनी पीड़ा बाँटने का  कोई तरीका नज़र नहीं आ रहा है।"


 

Monday, March 15, 2021

Sagon Ka Ped; सागौन का पेड़; ساگون کا پیڑ ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Sagon Ka Ped; सागौन का पेड़; ساگون کا پیڑ 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

सागौन का पेड़ 

कप्तान जसवंत सिंह के यूनिट स्टोर में राशन और दुसरी वस्तओं में विसंगति पाई गयी। इसलिए फार्मेशन ने जाँच पड़ताल का आदेश जारी किया। तकनीकी मामलों में वह मेरे अधीन था परन्तु प्रशासनिक मामले और अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यू ब्रांच के हिस्से में आती थी और उस में मेरा कोई रोल नहीं था। फिर भी न जाने क्यों उससे यक़ीन था कि मैं उस को बचा सकूंगा। उस ने कई बार मेरे घर के चक्कर लगाए और बचाव का रास्ता निकालने के लिए मिन्नत समाजत की। मुझे उसके चार बच्चों की हालत देखकर उस पर तरस आया। इसलिए जितना हो सका उसकी मदद की। अंततः वह आरोपों से बरी हो गया मगर सावधानी के तौर पर फार्मेशन ने उसको वहां से ट्रांसफर करवा  दिया। 
जाने से पहले मैं और मेरी बीवी उसको अलविदा कहने  के लिए उसके घर चले गए। वहां उस का सामान पैक हो रहा था जिसमें एक नया सागौन का सोफ़ा ध्यान आकर्षित कर रहा था। 
दुसरे दिन ऑफिस में पता चला कि जसवंत सिंह ने यूनिट के दो सागौन पेड़ कटवा कर उनका फर्नीचर बनवाया था। यह सुनकर मुझे अपने आप से घृणा  होने लगी कि मैं ने ऐसे आदमी को क्यों बचा लिया। मुझे बार बार कवी 'सौदा' का निम्नलिखित शेर याद आ रहा था। 
          "होगी कब तक बच्चा ख़बरदारी        चोर जाते रहे की अंधियारी" 


 

Parda Fash;पर्दा फाश;پردہ فاش ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

 Parda Fash;पर्दा फाश;پردہ فاش 

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

पर्दा फाश 

आधी रात को जूंही मैंने करवट बदल ली उसकी आवाज़ मेरे कानों से टकराई। वह नींद में बड़बड़ा रही थी। "नहीं, नहीं मुझे छूना नहीं। तुम मेरे लिए मर चुके हो। मुझे हाथ मत लगाना।" शायद कोई स्वप्न देख रही थी। 
मेरी हैरानी की हद न रही। ऐसी गहरी नींद में वह किस को छूने से मना कर रही थी? दिल में कई आशंकाओं ने सिर उभारा है। अवश्य कोई पुराना मित्र होगा जो उसको ख्वाब में छूने की कोशिश कर रहा था। मेरी नींद तो ख़ैर हराम हो ही गयी लेकिन रात भर यह गुथी सुलझ न पायी।  बार बार एक ही सवाल मन में उठ रहा था कि वह कौन था जिस को वह रोक रही थी?
दुसरे दिन उसका चेहरा मुरझाया सा नज़र आ रहा था।  मैं भी रात की घटना के कारण कुछ खिचा-खिचा सा रहा। फिर शाम को जब दफ्तर से लौट आया तो उससे रहा न गया। 
"कल दोपहर के वक़्त मैं टेलर के पास गयी थी। होटल प्लाजा के सामने आपकी कार खड़ी देखी। सोचा कि आपके साथ ही घर चली जाऊँ गी। अंदर झाँका तो आप किसी औरत के साथ मज़े से लंच कर रहे थे। परेशान होकर मैं अकेली ही वापस चली आयी। सारी रात डरावने ख्वाब देखती रही। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि आप ऐसे बेवफा निकलें गे?" उस के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। 

     

Sunday, March 14, 2021

Sawaal; سوال ; सवाल; Mini-Story; افسانچہ; लघु कहानी

Sawaal; سوال ; सवाल
 Mini-Story; افسانچہ; लघु कहानी 

Sawaal

Train mein safar ke dauraan aik musaafir doosre musaafir ko yeh samjha raha tha ki nafarmaani ke sabab Adam ko bahisht se nikala gaya tha.
Apni dharti se ukhdi hui, diabetes se murjhayi hui, aik Kashmiri Panditani, jo apni umar se kahin zyada boodhi lag rahi thi, apne pati Naath ji se baar baar aik hi sawaal pooch rahi thi,
"Mana Adam se Gunah sarzad hua tha lekin hum kis gunah ki paadash mein apni jannat se mehroom kar diye gaye."
                                                ****
(bahisht;paradise, nafarmaani;disobedience, mehroom; thrown out of)

Saturday, March 13, 2021

Martaba; रुतबा; مرتبہ ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Martaba; रुतबा; مرتبہ 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

रुतबा

मैं बाटा की दुकान पर अपने लिए जूता खरीदने गया था कि मेरी बग़ल वाली कुर्सी पर एक आदमी और उसका बेटा आकर बैठ गए। शक्ल-ओ-सूरत से कोई बड़ा अफसर लग रहा था। सेल्समेन ने मुझे छोड़ कर तुरंत उनकी तरफ ध्यान दिया और क़िस्म-क़िस्म के जूते दिखाने लगा। आदमी ने अपने लिए पांच सौ का जूता, जो डिस्काउंट पर मिल रहा था, पसंद किया, जबकि बेटे ने पांच हज़ार का जूता पसंद कर लिया। पिता घबरा गया और दबी आवाज़ में बेटे से कहने लगा। 
"बेटे मेरा पहला वेतन केवल पांच सौ रुपए था और तुम हो कि पांच हज़ार का जूता खरीद रहे हो..... !"
"इस में क्या आपत्ति है। आपके पिता जी हॉस्पिटल में दो सौ रुपए की नौकरी कर रहे थे और मेरे पिता जी फाइनेंस कमिशनर हैं जिनका वेतन साठ हज़ार प्रति महीना है। अपने अपने स्टेटस की बात है। 
बेटे की हाज़िर जवाबी दैख कर पिता लाजवाब होगया।    

 

 

Friday, March 12, 2021

Tooque Ita'at;ग़ुलामी का पट्टा; طوق اطاعت ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Tooque Ita'at;ग़ुलामी का पट्टा; طوق اطاعت 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

ग़ुलामी का पट्टा 

बचपन से मैं राष्ट्रवादी शिक्षकों से यही सुनता आया हूँ कि अंग्रेज़ों ने हमें ग़ुलामी का पट्टा पहना दिया था जिसके कारण हम अबतक मानसिक तौर पर आज़ाद नहीं हो पा रहे हैं। उनकी बातों पर विश्वास करने के सिवा मुझे और कोई चारा न था। 
एक दिन मैं प्राचीन भारतीय इतिहास से जुडा टेलीविज़न सीरियल देख  रहा था जिस में हीरे जवाहिरात से लैस एक तोंदल हिन्दू राजा, गाव तकिये से टेक लगाए और हाथ में जाम लिए नर्तिकयों के नाच से मनोरंजित हो रहा था। वह कभी-कभी अपने गले से हीरे-जवाहिरों की मालाएं उतार कर उन्हें तोहफे के तौर पर दिए जा रहा था। इस दौरान जब भी कोई मनुष्य दरबार में आ जाता वह आदाब बजाने की खातिर ज़मीन पर औंधे मुंह लेट जाता और दोनों बाज़ो आगे खींच कर अपने हाथ जोड़ लेता। यह थी विनम्रता की हिन्दू परम्परा जिससे 'हिन्दू सलाम'  कहना ज़्यादा उचित होगा। 
कुछ महीनों बाद भारतीय इतिहास के मध्यकालीन दौर के विषय में एक सीरियल शरू हुआ जिस में एक मुस्लमान बादशाह की शानो-ओ-शौक़त को दर्शाया गया था। सामने एक खूबसूरत सुंदरी प्याले में मदिरा भर रही थी और स्वयं बादशाह अपनी मेहबूबा की बाँहों में झूलता हुआ तवाइफ़ के गाने से लुत्फ़ उठा रहा था। दीवान-ए-खास में जो कोई भी आता वह अपने जिस्म को कमर से इतना झुका लेता कि समकोण बन जाता, सिर को बिलकुल कमर  की सीध में ले आता और फिर अपने दायें हाथ को कई बार ऊपर नीचे करके सलाम करता। मतलब यह कि वह न तो पूरा ज़मीन पर लेट जाता और न सर्व की तरह खड़ा रहता बल्कि यह उन दो के बीच की दरमियानी कड़ी थी जिस को 'मुस्लिम सलाम' कहना बेहतर होगा। 
फिर कुछ समय गुज़र जाने के बाद आज़ादी की लड़ाई से मुतलक़ एक सीरियल टीवी पर दिखाया गया जिसमें अँगरेज़ वाइसराय शान-ओ-शौक़त से अपनी कुर्सी पर बिराजमान था और हर तरफ तिजारती माहौल नज़र आ रहा था। दरबार से दिलजोई का सारा सामान ग़ायब था। जो कोई भी दरबार में हाज़िरी देता वह खड़े होकर या तो सलूट मारता या फिर अपने सिर को सम्मान से थोड़ा सा झुका कर दोनों हाथ जोड़ कर सलाम करता। यानि न लेटना न झुकना बल्कि सीधे खड़े होकर अंग्रेजी सलाम करना। 
उस दिन मैं सोच में पड़ गया। सलाम भी क्रमागत उन्नति करती हुई यहाँ तक पहुँच गयी थी। मुझे यह एहसास हुआ कि बचपन में हमें गलत पट्टी पढाई जाती थी। वास्तव में अंग्रेज़ों ने हमें ग़ुलामी की बेड़ियाँ नहीं पहनाई बल्कि इसके उलट अपने पाऊँ पर खड़ा होना सिखाया।          



 

Intekhab; चुनाव; انتخاب ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Intekhab; चुनाव; انتخاب 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

चुनाव 

एम् एस सी में फर्स्ट डिवीज़न न मिलने के कारण मैंने नए सिरे से अंग्रेजी में एम् ए करने की ठान ली। मैंने सुना था कि इसके लिए बी एस सी में अंग्रेजी विषय में ऑनर्स होना आवश्यक है। 
संयोग से एक दिन बस में यूनिवर्सिटी के हेड ऑफ़ द इंग्लिश डिपार्टमेंट से भेंट हुई।  मैंने मौक़ा ग़नीमत जानकर उनसे पूछ लिया, "सर मैं ने वनस्पति विज्ञान में एम् एस सी की है मगर अब अंग्रेजी में एम् ए करना चाहता हूँ। क्या मैं ऑनर्स के बग़ैर एम् ए इंग्लिश में सीधे प्रवेश ले सकता हूँ?"
वह मुझे घूरने लगा और फिर मुझे संबोधित किया, "तुम तो साइंस के विद्यार्थी हो फिर आर्ट्स में क्यों आना चाहते हो?"
मैंने उत्तर दिया, "सर हमारे देश में जूते के सांचे से चप्पल निकालने की कोशिश की जाती है। वास्तव में साइंस स्ट्रीम का चयन मेरे माता पिता ने किया था। रुचि न होने के कारण ना डॉक्टर बन सका और ना ही इंजीनियर। अब तो परिणाम देखकर साइंस टीचर बनने की भी उम्मीद नहीं। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अपनी पसंद के मुताबिक़ आगे शिक्षा हासिल करूँ।"
प्रोफेसर साहब यह सुनकर अचंबित हो गए और बोले, "तुम सही कहते हो। हमारे देश में अधिकांश बच्चों का यही हाल है। वह ना शिक्षा अपनी मर्ज़ी से पा सकते हैं और ना ही जीवनसाथी।        


 

Thursday, March 11, 2021

Secularism; सेकुलरिज्म; سیکولر ازم ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Secularism; सेकुलरिज्म; سیکولر ازم 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

सेकुलरिज्म  

सेकुलरिज्म का अर्थ समझाते हुए पिता जी ने अपने बेटे से कहा, "बेटे, सेकुलरिज्म का अर्थ  होता है हर धर्म का समान आदर करना। हमारा देश एक महान सेक्युलर देश है।
बेटे को यह बात हज़म नहीं हुई। बोला, "यह कैसे संभव हो सकता है? हर  धर्म के साथ एक जैसा बर्ताव करना मुमकिन नहीं। पापा, देश के नेता जब बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स का उद्धाटन करते हैं वहां हिन्दू रीति रिवाज से पूजा होती है और नारियल फोड़े जाते हैं।  गाँधी जी अपनी हर सभा का आरंभ राम धुन  से करते थे। किसी दुसरे धर्म  के पाठ  से क्यों नहीं ? क्या इस तरह दुसरे धर्मों की अनदेखी नहीं होती है? बेहतर यह होगा कि धर्म और सरकार को एक दुसरे से अलग रखा जाये। दोनों का अंतमिश्रण देश के लिए लाभदायक नहीं है।"
"यह तो कोई बात नहीं रही, जब दिल में इज़्ज़त हो तो इन चीज़ों से कुछ नहीं होता।"
"पापा ऐसा मुमकिन ही नहीं। सरकार के साथ इंसान का रिश्ता समाजी और आर्थिक होता है जबकि धर्म  इंसान का निजी मामला है जो उस  का  आध्यात्मिक मार्गदर्शन करता है। दोनों के आपसी प्रभाव से देश का भला नहीं  हो सकता।"

 

Aadil Badshah;न्यायप्रिय राजा;عادل بادشاہ ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Aadil Badshah;न्यायप्रिय राजा;عادل بادشاہ  
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

न्यायप्रिय राजा 

"न्याय.....! क्या है न्याय.....! मैं सोच विचार के अथाह समुद्र में डूबकर इस शब्द का सही अभिप्राय ढूंढ रहा था। "न्याय न्याय है और कुछ भी नहीं। अत्याचारी को उस के किये की सज़ा देना और पीड़ित को उस पर हुए अत्याचार से नुक्सान की भरपाई करना न्याय है।" अंदर से आवाज़ आई। 
"झूठ बोल रहे हो। दोनों शर्तें असंभव हैं।"
मुझे दो कहानियां याद आ गयीं। 
एक भारतीय राजा के सामने निस्सहाय व निराश्रय अभियोक्ता हाज़िर हुआ और कहने लगा, "महाराज आप के राजकुमार ने हमारे आश्रम में पल रहे हिरण  को जंगल में मार दिया। मेरे बेटे ने जब तड़पते हिरण को देखा उससे  रहा ना गया। वह उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ा और हिरण को गोद में उठा कर आश्रम की तरफ़ लाने लगा। राजकुमार को ग़ुस्सा आ गया  उसने मेरे इकलौते बेटे का सीना तीरों से छलनी कर दिया। महाराज आप हमारे मालिक हैं। इसलिए आप से न्याय मांगने आया हूँ।"
मामले की छानबीन हुई। सारे सबूत राजकुमार को क़सूरवार ठहराते थे।  इसलिए राजा ने मुजरिम को फांसी की सज़ा सुनाई और अपने खानदान का इकलौता चिराग़ भुजा दिया।लोगों ने राजा के न्याय को सराहा क्यूंकि उसने अपने इकलौते बेटे को भी नहीं बख्शा। 
ऐसी ही एक और घटना चीनी सम्राट के साथ घटी। एक साईस खुले मैदान में घोड़ा निकाल रहा था कि राजकुमार की नज़र उसके घोड़े पर पड़ी। राजकुमार ने उससे घोड़ा माँगा मगर साईस ने मालिक के हुक्म के बग़ैर घोड़ा देने से इंकार किया। राजकुमार को ग़ुस्सा आ गया और उसने तुरंत साईस का सिर काट लिया। साईस का पिता सम्राट क्वे दरबार में हाज़िर हुआ और इन्साफ की दुहाई देने लगा। "गरीबों के रक्षक, आप के बेटे ने बिना किसी कारण के मेरे इकलौते बेटे की हत्या कर दी। इसलिए मैं आपसे इन्साफ मांगने आया हूँ।" सम्राट गहरी सोच में पड़ गया क्यूंकि राजकुमार उसका इकलौता वारिस था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। कुछ समय के बाद उसने  राजकुमार के निजी शिक्षक को दरबार में पेश करने का हुक्म दिया। सभी दरबारी असमंजस में पड़ गए। जब राजकुमार का शिक्षक दरबार में पेश हुआ तो सम्राट ने अपना फैसला सुनाया। "चूँकि राजकुमार नाबालिग है और ज़ाहिर है कि उसकी शिक्षा में कहीं कोई त्रुटि  रही होगी जिसकी वजह से वह सही और गलत में अंतर नहीं कर सका इसलिए मैं राजकुमार के शिक्षक का सिर काटने का आदेश देता हूँ।" फैसला सुनकर जनता सम्राट की बुद्धिमत्ता और कुशलता से प्रभावित  हो गयी और इस तरह शाही सिलसिला भी जारी रहा। 
न्याय के दोनों रुख मेरे सामने हैं। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि इनमें से कौन सा राजा न्यायप्रिय था।                       



 

Wednesday, March 10, 2021

Kuch To Log Kahenge;कुछ तो लोग कहेंगे; کچھ تو لوگ کہیں گے ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Kuch To Log Kahenge;कुछ तो लोग कहेंगे
 کچھ تو لوگ کہیں گے 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 
 
कुछ तो लोग कहेंगे  

बहुत बड़ा भ्रष्टाचारी था वह। संपत्ति इकट्ठा करने के तरीक़े काश कोई उससे सीख लेता। 
एक बार उसकी बीवी कैंसर की जानलेवा बीमारी में ग्रस्त हो गई। लाखों रुपए खर्च करके आखिरकार उसकी बीवी की जान बच गई परन्तु पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाई। अब भी उसके इलाज पर हज़ारों रुपए प्रति वर्ष खर्च हो जाते हैं। 
कुछ लोग कहते हैं कि हराम की कमाई थी,गंदे नाले में बह गई। 
कुछ  लोगों का मानना है कि अंततः रुपया ही काम आ गया।  रुपए न होते तो बीवी का बचना मुश्किल था। 
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अगर वह ब्रष्टाचारी न होता तो उसको यह दिन ना देखने पड़ते। 
लोग बहुत कुछ कहते हैं लेकिन उसे मालूम है कि वह बीते हुए कल को वापस नहीं ला सक्ता। 

 

Jantar Mantar; जंत्र मंत्र; جنتر منتر ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Jantar Mantar; जंत्र  मंत्र; جنتر منتر 
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

जंत्र  मंत्र 
शारदा की ज़िन्दगी कठिनाईयों की खुली पुस्तक थी। दस बरस की उम्र में शादी हो गई। पति का साथ केवल चार साल रहा। उसके बाद तमाम उम्र तपस्वी ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर हो गई। विधवापन के कारण वह उन क्षणों का मूल्य जानती थी जो पति पत्नी एक साथ हंसी ख़ुशी गुज़ारते हैं। यही कारण था कि उसे उन जोड़ों पर तरस आता था जो बात बात पर आपस में लड़ते झगड़ते थे। वह चाहती थी कि किसी भी स्त्री का वैवाहिक जीवन अस्तव्यस्त ना हो। उत्पीड़ित स्त्रियां उसके पास परामर्श लेने के लिए आतीं और संतुष्ट होकर चली जातीं। 
एक रोज़ एक नव विवाहित महिला ने अपना दुखड़ा सुनाया कि उसकी सास और सुसर उठते बैठते उससे कोसते रहते हैं। शारदा चूल्हे के सामने बैठी ध्यान पूर्वक सुनती रही। उसने चूल्हे में से एक जलती हुई लकड़ी निकाली, उसकी छाल का एक छोटा सा टुकड़ा चाकू से छील लिया, जल रहे सिरे को पानी में डबोया, उसपर दो चार फूँक मार दिए और फिर उस नारी को दे दिया। 
"तुम इससे हमेशा अपने पास रख लेना। जब भी कोई तुम्हारे साथ लड़ने झगड़ने पर उतर आये तुम जल्दी से इस को दांतों तले दबा लेना और तब तक नहीं छोड़ना जब तक सामने वाला मनुष्य शांत ना हो जाये।"
महिला ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चली गई और फिर शारदा की बताए हुए उपाय पर पूरी तरह से अमल करने लगी। समय गुज़रने के साथ साथ उसे एहसास हुआ कि सास सुसर दोनों धीरे धीरे शांत होने लगे हैं और अब घर में लड़ाई झगड़ा नहीं हो रहा है। 
महीने भर के बाद वह धन्यवाद देने के लिए शारदा के पास आई और कहने लगी, "मौसी मैं आपका शुक्रिया करने आई हूँ। आपका वह जंत्र बहुत लाभदायक साबित हुआ।" फिर अपनी जिज्ञासा दूर करने के लिए पूछ बैठी, "मौसी मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप ने ईंधन की मामूली सी लकड़ी में इतनी शक्ति कैसे भर ली कि उसने सारे घर का माहौल ही बदल डाला।"
शारदा ने हलकी सी मुस्कराहट बिखेरते हुए उत्तर दिया। "बेटी मैं कोई जंत्र मंत्र नहीं जानती और ना ही मैं ने उस लकड़ी को दम किया था। इतना समझ लो कि झगडे के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। इनमें से अगर एक पक्ष ख़ामोश रहे तो दूसरा स्वयं ही थक हार कर हथ्यार डाल देता है और फिर लड़ाई खुदबखुद बंद हो जाती है।" 


 

Tuesday, March 9, 2021

Mahir-e-Jarahi;शल्य-चिकित्सा विशेषज्ञ; ماہرجراحی ; Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Mahir-e-Jarahi;शल्य-चिकित्सा विशेषज्ञ

 ماہرجراحی  

Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

शल्य-चिकित्सा विशेषज्ञ 

हमारे छोटे से क़स्बे में एक इंटरमीडिएट पास नाई शल्य-चिकित्सा की जानकारी रखता था। फोड़े फुंसियों की चीर-फाड़ का माहिर। कभी कभी नासूरों से भी नजात दिलवाता था। क्या मजाल कि वह हाथ लगाए और बीमार को रोगमुक्ति ना मिले। उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गयी। यह बात जब महाराजा तक पहुँच गई , उसने फैसला कर लिया कि नाई को प्रदेश से बाहिर किसी मेडिकल कॉलेज में शिक्षा दिलवाई जाये ताकि वह मनुष्य के जिस्म की बनावट से परिचित हो जाए और अपनी प्रतिभा में वृद्धि कर सके। 
कॉलेज की क़ैद से छूटते ही वह ग़ायब हो गया। उसकी दुकान पर स्थायी ताला लग गया। सभी लोग परेशान हो गए कि आखिर माजरा क्या है। बहुत समय के बाद जब खबर ठंडी पड़ गई तो उसने बड़े भाई को पत्र लिखा। "भाई जान, मुझे इस बात का एहसास है कि मेरे कारण आप सब लोग परेशान होंगे। वास्तव में जिस कॉलेज में मैंने तीन वर्ष शिक्षा और प्रशिक्षण  हासिल किया वहां मेरी आँखें खुल गईं। इससे पहले मुझे यह मालूम ना था कि मनुष्य के जिस्म की बनावट इतनी जटिल होती है। मैं चाकू उठाता था उससे गर्म करके चीर-फाड़ में लग जाता था। मगर अब पता चला है कि इस कार्यवाही में कितने जोखिम हो सकते हैं। अब मेरा हाथ किसी शरीर को छूने से भी कांपता है, चीर-फाड़ करने की तो बात ही नहीं। मेरे लिए यह व्यवसाय फिर से अपनाना नामुमकिन है। गांव में कोई दूसरा रोज़गार मिलने से रहा, अब मैं किसी को मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहा।  इसलिए यहाँ इस शहर में एक हेयरकटिंग सैलून में बाल काटने का काम करता हूँ।"
भाई की आँखें पत्र पढ़ते पढ़ते भीग गईं।      



 

Wusat-e-Nazar;विस्तृत अभिज्ञता;وسعت نظر ;Ministory;लघु कहानी;افسانچہ

Wusat-e-Nazar;विस्तृत अभिज्ञता;وسعت نظر  
Ministory;लघु कहानी;افسانچہ 

विस्तृत अभिज्ञता 
सीमा पर युद्ध जारी था। 
कप्तान सुरजीत सिंह ने वायरलेस पर अपने कमांडिंग अफसर सुखदेव सिंह
को सूचना दी, "सर, मैं सामने वाली पहाड़ी पर दुश्मन का एक मोर्चा देख रहा हूँ। मुझे जानकारी मिली है कि वहां दुश्मन के केवल दस सिपाही हैं। मैं रात के अँधेरे में अपनी पल्टन के साथ बड़ी आसानी से इस पहाड़ी पर चढाई कर सकता हूँ और दुश्मन का मोर्चा मार सकता हूँ।"
कर्नल साहब ने ऐसा करने से बिलकुल मना कर दिया और अगले आदेश तक यथा स्थिति बनाये रखने को कहा। परिणाम स्वरुप कप्तान सुरजीत सिंह ना केवल निराश हुआ बल्कि अपने कमांडिंग अफसर पर बहुत गुस्सा आया। मन ही मन में सोचने लगा। "यही तो प्रॉब्लम है इन बूढ़े अफसरों के साथ। इन में ना हिम्मत है ना हौसला। वरना क्यों रोक लेता मुझे? ऐसा सुनहरी मौक़ा फिर कभी ना मिले गा।" ज़हर का घूंट पी कर वह खामोश हो गया। 
अगले दिन कर्नल सुखदेव उस के मोर्चे का नीरीक्षण करने आया। कप्तान सुरजीत खिचा खिचा सा लग रहा था और उस के माथे पर शिकनें नज़र आ रही थीं। कर्नल को बात समझ में आ गई। इसलिए पैतृक सहानुभूति से कहने लगा। "बेटे शायद तुम कल की बात पर उदास हो। परन्तु तुम्हें मालूम नहीं कि तुम्हारी नज़र तो केवल एक पहाड़ी पर थी जिस पर तुम विजय प्राप्त करना चाहते थे जबकि मेरी नज़र उसके दाएं बाएं दो और पहाड़ियों पर थी जहाँ दुश्मन की तोपें तुम्हारा इंतज़ार कर रही थीं। अगर तुम अपनी पल्टन ले कर पहाड़ी पर चढ़ भी जाते तो देर सवेर दुश्मन की गोला बारी से सब शहीद हो जाते। मैं व्यर्थ में खून बहाने के हक़ में नहीं हूँ। मैंने इससे पहले भी दो युद्ध लड़े हैं और तुम से अधिक अनुभवी हूँ।"